बतंगड़ बेतुक : किसके हक की लड़ाई है ये

Last Updated 26 Jan 2020 04:29:20 AM IST

आंदोलन से शंकाग्रस्त हुआ झल्लन इधर-उधर ताक रहा था, पहले आंदोलनकारी ने उसकी शंका का समाधान नहीं किया था सो अब वह किसी दूसरे आंदोलनकारी को तलाश रहा था।




बतंगड़ बेतुक : किसके हक की लड़ाई है ये

एक आंदोलनकारी ने छोटा-सा मजमा लगा रखा था और अपने जुझारू तेवरों में मुसलमानों के साथ हुए संवैधानिक अन्याय को समझा रहा था। समझा रहा था कि कैसे बाहर से आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, ईसाई, पारसी सभी को नागरिकता का अधिकार दिया जा रहा है मगर मुसलमानों को इससे वंचित कर भारतीय मुसलमानों के साथ भेदभाव किया जा रहा है। झल्लन इस आंदोलनकारी के निकट सरक आया और धीरे से अपना सवाल दोहराया, ‘भाईजान, आप एक ही लकीर क्यों पीट रहे हैं। जब नागरिकता कानून से भारतीय मुसलमानों का कोई संबंध ही नहीं है तो आप इसमें उन्हें क्यों घसीट रहे हैं?’ आंदोलनकारी बोला,‘हम किसी को नहीं घसीट रहे, हम तो सिर्फ यह कह रहे हैं कि जब सबको नागरिकता का हक दिया जा रहा है तो मुसलमानों से क्यों लिया जा रहा है? जब संविधान ने सबको बराबरी का हक दिया है तो संविधान का उल्लंघन क्यों किया जा रहा है?’

झल्लन बोला, ‘मगर भाईजान, सरकार कहती है कि हिंदू, सिख, बौद्ध वहां से जान बचाकर शणार्थी बनकर आये हैं। इसलिए उन्हें नागरिकता दी जा रही है, किसी की नागरिकता ली नहीं जा रही है।’ आंदोलनकारी बोला,‘यही तो हम कह रहे हैं कि जो मुसलमान यहां आये हैं उनके साथ भेदभाव मत कीजिए, उन्हें भी नागरिकता दीजिए।’ झल्लन बोला,‘लेकिन भाईजान, जो मुसलमान आये हैं वे न तो जान बचाकर आये हैं, न प्रताड़ित होकर आये हैं, वे तो यहां खाने-कमाने या अपना ठिकाना बनाने जबरन चले आये हैं। इनमें और उनमें थोड़ा फर्क तो कीजिए, जिन्हें जुल्म का शिकार होकर वहां से भागना पड़ा है, उन्हें थोड़ी तो हमदर्दी दीजिए।’ आंदोलनकारी बोला,‘देखो मियां, ‘इस मुल्क में पहले से ही गरीबों, मजलूमों, बेरोजगारों की तादात करोड़ों में है फिर औरों को क्यों बुला रहे हो, क्यों उन्हें नागरिकता दिलवा रहे हो?’ झल्लन बोला, ‘पाकिस्तान, अफगास्तिान, बांग्लादेश से जिन्हें भागने को मजबूर किया गया है वे और कहां जाएंगे, यहीं तो आएंगे। यह तो इंसानियत का तकाजा है कि उन्हें पनाह दी जाये, इज्जत की जिंदगी अता की जाये।’ आंदोलनकारी बोला, ‘अगर उन्हें पनाह दे रहे हैं तो बाहर से आये मुसलमानों को भी पनाह दीजिए, भेदभाव मत कीजिए।’
झल्लन ने कहा, ‘भाईजान, आप दो तरह की बात कर रहे हैं। एक तरफ आप कह रहे हैं कि यहां मजलूमों की संख्या पहले से ही बहुत है और मजलूमों को यहां लाने की जरूरत नहीं है और दूसरी तरफ कह रहे हैं कि मुसलमानों को भी नागरिकता दीजिए, मुसलमानों के साथ भेदभाव करना ठीक नहीं है।’ आंदोलनकारी बोला,़‘ठीक समझे मियां,हम यही कह रहे हैं, बुलाना है तो सबको बुलाइए नहीं तो किसी को मत बुलाइए।’ झल्लन बोला, ‘यानी मुसलमानों को शामिल कर लिया जाएगा तो आपको यहां मजलूमों की भीड़ बढ़ने पर कोई एतराज नहीं होगा। तब आपको यह चिंता नहीं होगी कि इस बढ़ी हुई भीड़ के साथ भारत का क्या होगा?’
आंदोलनकारी ने झल्लन को गुस्से से देखा,‘तुम चाहे जो समझो मगर हमारा संविधान हिंदू-मुसलमान का भेदभाव नहीं करता। यही हम तुमको बता रहे हैं, मुसलमानों के साथ गलत हो रहा है। यही हम दुनिया को समझा रहे हैं।’ झल्लन ने कहा, ‘तो आप यह कहना चाहते हैं कि इस्लामी मुल्कों से जो मुसलमान आये हैं वे भी हिंदू-सिखों की तरह जुल्मों-सितम का शिकार होकर आये हैं। लेकिन ऐसी बात न तो आपने कभी बताई, न वहां से आये किसी मुसलमान ने बताई, न ऐसी कोई खबर किसी अखबार में छपी और न कभी किसी चैनल ने दिखाई, जबकि गैर-मुसलमानों पर पड़ोसी मुल्कों में हुए जुल्मों की कहानियां लगातार सामने आती रही हैं, कुछ सताये हुए लोगों की जुबानी आती रही हैं तो कुछ मीडिया की जुबानी आती रही हैं और इंसानियत के हर पैरोकार को सताती रही हैं। भारतीय होने के नाते क्या इनके प्रति आपकी कोई जिम्मेदारी नहीं है?’ आंदोलनकारी बोला,‘हमारी जिम्मेदारी क्या है यह हम बखूबी समझते हैं आप हमें मत समझाइए, जो कुछ समझाना है अपनी सरकार को जाकर समझाइए।’

झल्लन बोला, ‘भाईजान, सरकार को क्या समझाना, सरकार बार-बार समझा रही है कि भारतीय मुसलमानों का इस कानून से कोई लेना-देना नहीं है और सरकार की यह बात हमारी समझ में आ रही है, लेकिन आप उस हक की लड़ाई लड़ रहे हैं जो हक आपसे कभी छिना ही नहीं, यह बात हमारे सर से ऊपर  जा रही है।’ आंदोलनकारी बोला,‘यह कानून मुसलमानों को नागरिकता का हक नहीं दे रहा, यह संविधान का उल्लंघन है, इसी के खिलाफ हमारी जंग है, अगर तुम नहीं समझ पा रहे हो तो तुम्हारा नजरिया तंग है।’ झल्लन बोला, ‘तो आप ये धरना-प्रदर्शन अपने लिए नहीं बाहरी मुसलमानों के लिए कर रहे हैं और जो लड़ाई लड़ रहे हैं, अपने हक के लिए नहीं बल्कि पाकिस्तान-बांग्लादेश से आये मुसलमानों के हक के लिए लड़ रहे हैं?’ आंदोलनकारी ने झल्लन को गुस्से में देखा तो झल्लन झट से कट लिया और पट से अगले आंदोलनकारी की तरफ बढ़ लिया।

विभांशु दिव्याल


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