वैश्विकी : सोरोस नहीं, सर्वेक्षण सही

Last Updated 26 Jan 2020 04:27:15 AM IST

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को नये वर्ष और नये दशक में दो बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इन चुनौतियों से वह कैसे निपटते हैं, इस पर उनके दूसरे कार्यकाल की सफलता या असफलता का निर्धारण होगा।


वैश्विकी : सोरोस नहीं, सर्वेक्षण सही

आर्थिक मंदी और दुनिया में भारत की खराब छवि, ये दोनों चुनौतियां आपस में जुड़ी हैं। यह सच्चाई दावोस (स्विटजरलैंड) में आयोजित विश्व आर्थिक सम्मेलन में उजागर हुई। विश्व की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाने वाले अरबपति निवेशक और उद्यमी जॉर्ज सोरोस ने भारत और मोदी सरकार पर जो प्रतिकूल टिप्पणी की उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने दुनिया में लोकतंत्र विरोधी ताकतों के मजबूत होने, तानाशाही वाले नेताओं के सत्ता में और धर्म-नस्ल के आधार पर बढ़ती असहिष्णुता का उल्लेख किया। कश्मीर (अनुच्छेद 370 हटाना) और नागरिकता संशोधन कानून के बारे में सोरोस ने जो कहा, उसमें तथ्यात्मक गलती थी और अतिरंजना थी।
सोरोस के अनुसार इस समय दुनिया में सबसे चिंताजनक रुझान भारत की ओर से आ रहा है, जहां अर्धस्वायत्तशासी मुस्लिम बहुल राज्य कश्मीर में अधिकारों का हनन हो रहा है तथा देश में लाखों मुसलमानों को नागरिकता से वंचित करने की कोशिश की जा रही है। पर सोरोस का यह बयान तथ्यों पर सही नहीं उतरता, लेकिन जब एक दिग्गज वित्त प्रबंधक की ओर से दावोस में यह बयान आया तो वहां मौजूद दुनिया भर के नेताओं और निवेशकों के ऊपर इसका निश्चित रूप से असर पड़ा होगा। सोरोस हंगरी-अमेरिकी मुद्रा सटोरिया, स्टॉक निवेशक, व्यापारी और राजनीतिक कार्यकर्ता हैं। सोरोस के पहले माइक्रोसॉफ्ट के भारतीय मूल के मुखिया सत्या नडेला ने भी नागरिकता कानून के बारे में कुछ ऐसा ही बयान दिया था।

अमेजन के मीडिया साम्राज्य से जुड़े अखबार ‘वाशिंगटन पोस्ट’ में तो मोदी  विरोधी लेख लगातार छपते रहते हैं। शायद यही वजह थी कि पिछले दिनों भारत यात्रा पर आए अमेजन के मुखिया जेफ बेजोस को प्रधानमंत्री मोदी ने मिलने का समय नहीं दिया था। बाहरी देशों में हो रही आलोचना को मोदी सरकार नजरअंदाज और खारिज कर सकती है, लेकिन विदेशी निवेश को आकषिर्त करने के लिए दिन-रात कोशिश कर रही मोदी सरकार के लिए देश की विपरीत छवि बनना चिंताजनक अवश्य है। प्रधानमंत्री मोदी अपनी विदेश यात्राओं के दौरान निवेशकों के सम्मेलनों को संबोधित करते रहे हैं। मोदी भारत को विदेशी निवेशकों के लिए आदर्श गंतव्य करार देते हैं। एक ऐसा गंतव्य जहां लोकतंत्र है, विधि का शासन है, और स्वतंत्र न्यायपालिका है। घरेलू स्तर पर विरोध, आंदोलन और अराजकता की स्थिति निवेश के लिए प्रतिकूल साबित होती हैं। सही या गलत दुनिया में यदि भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था और विधि के शासन पर सवालिया निशान उठाए जाते हैं, तो बहुत घाकत सिद्ध हो सकता है।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर और विदेश मंत्रालय के अन्य अधिकारियों द्वारा मोदी सरकार के फैसलों के बारे में दी जा रही सफाई कारगर सिद्ध नहीं हो रही है। स्वयं मोदी भी अपने प्रयासों की असफलता को शायद महसूस करने लगे हैं। यदि और कोई अवसर होता तो मोदी स्वयं दावोस जाना पसंद करते, लेकिन इस बार दावोस में भारतीय दल का नेतृत्व रेल,वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने किया। उन्होंने विश्व आर्थिक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था उड़ान भरने को तैयार है। लेकिन सच्चाई तो यह है कि देश की अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए सरकार के सारे प्रयत्न निष्फल हो रहे हैं।
इस बीच, प्राइसवॉटरहाउसकूपर द्वारा किए गए एक वैश्विक सर्वेक्षण में भारत के लिए आशा की किरण दिखाई दे रही है। सर्वेक्षण में सामने आया है कि भारत विश्व का चौथा बड़ा बाजार है, जहां कंपनियों की आय तेजी से बढ़ सकती हैं। मौजूदा समय में देश में चल रहे विरोध आंदोलन के बीच सबकी नजरें अब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन द्वारा पेश किए जाने वाले बजट की ओर लगी हैं। बजट के जरिए कम से कम घरेलू स्तर पर आम आदमी और उद्योग-व्यापार जगत के विश्वास को बहाल किया जा सकता है। अर्थव्यवस्था को फिर तेज आर्थिक वृद्धि की पटरी पर लाने के बाद दुनिया में भारत की छवि को सुधारने की मुहिम शुरू की जा सकती है।

डॉ. दिलीप चौबे


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