आम बजट : किसान को चाहिए बेहतर कीमत

Last Updated 15 Jan 2020 05:27:51 AM IST

आम बजट से पूर्व 8 जनवरी को देश के किसान संगठनों ने राष्ट्रीय स्तर पर ‘ग्रामीण भारत बंद’ आन्दोलन कर किसानों की मांगों को सरकार के संज्ञान में लाने का मजबूत प्रयास किया है।


आम बजट : किसान को चाहिए बेहतर कीमत

इस बाबत आन्दोलन के क्रम में सभी कस्बों तथा जिलों से प्रथम सप्ताह के 5 जनवरी तक राष्ट्रपति के यहां भी पत्र भेजकर किसानों की  समस्याओं पर सरकार को निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। किसानों  की  समस्याएं  दिनानुदिन गंभीर बनती जा रही है और अपनी समस्याओं  के  प्रति  किसानों  में जागरूकता भी बढ़ी है। किसान अपने दुखों पर सवाल खड़ा करने से नहीं चूकते। बावजूद  किसान  अपनी उपेक्षा  से दुखी हैं। हालांकि उन्हें आने वाले आम बजट से ढेरों उम्मीदे हैं।
हाल ही में सरकार के राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने 2016 में किसानों  की  आत्महत्या  का आंकड़ा जारी किया  है, जिसमें हर माह 948 तथा हर दिन 31 किसानों की आत्महत्या का खुलासा हुआ है। एक तो सरकार ने तीन वर्ष पूर्व का आंकड़ा जारी किया है और उसमें भी किसान और मजदूरों की आत्महत्या का आंकड़ा अलग-अलग  कर आंकड़े को कम दिखाने का प्रयास  किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि आंकड़े इससे अधिक ही होंगे। देश में किसानों की  आत्महत्या  रुकने का नाम नहीं ले रही है और सरकार  को इसे गंभीरता  से लेने की जरूरत है। इसके अलावा किसानों के कई सवाल सरकार के समक्ष लंबित हैं, जिसका किसानों  के जीवन से सीधा सबंध है। किसानों  के कृषि  उत्पादों की बढ़ती लागत के बावजूद कृषि उत्पादों के सीटू फार्मूले पर ड्योढा दाम तथा सभी प्रकार के कृषि  ऋणों से मुक्ति की मांग ज्यों की त्यों है, उल्टे जो भी एमएसपी तय हो रहा है  उसपर भी कुछ राज्यों को छोड़कर कोई  सरकारी खरीद नहीं हो रही है। किसान औने-पौने भाव में बिचौलियों के मार्फत अपना कृषि  उत्पाद बेचने को विवश है।

वाणिज्यिक फसल गन्ना के एफआरपी में केंद्र तथा एसएपी में राज्य सरकारों ने नये पेराई  सत्र में कोई मूल्य वृद्धि नहीं की है। पिछले वर्ष के हजारों करोड़ रुपये गन्ना मूल्य का भुगतान लंबित है। बिजली दर, डीजल, मजदूरी, उर्वरक, कीटनाशकों तथा बीजों की बढ़ती कीमतों से खेती की लागत बढ़ती जा रही है। कृषि उत्पादन लागत में कमी की दिशा में कोई ठोस सरकारी प्रयास नहीं है। नदी जलप्रबंधन तथा सिंचाई के विस्तार  की दिशा मे प्रयास शिथिल है। लघु तथा सीमांत किसानों की संख्या में 10वीं कृषि  जनगणना 2015-16 के आंकड़ों में 90 लाख की वृद्धि  के बाद  84.6 फीसद से बढ़कर 86.2 फीसद हो गई  है। आंकड़े बताते हैं कि 2019 की दूसरी तिमाही में कृषि अर्थव्यवस्था 4335.47 अरब रुपये थी, जो तीसरी तिमाही में गिरकर 3651.61 अरब पर पहुच गई है, जबकि 2011 से 2019 तक कृषि  अर्थव्यवस्था का औसत 4126.42 था यानी कृषि की स्थिति दिनानुदिन कमजोर होकर करीब  2 फीसद विकास दर के आसपास  है। कृषि क्षेत्र की उपेक्षा  करके भी प्रधानमंत्री 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था का सपना संजोये हुए हैं, जबकि अभी देश की अर्थव्यवस्था प्रधानमंत्री के सपने से आधे से थोड़ा अधिक 2.9 ट्रिलियन की ही है और विशेषज्ञ  का मानना है कि 5 ट्रिलियन तक पहुंचने  के लिए अर्थव्यवस्था को कम-से-कम 8 फीसद का विकास दर चाहिए।
देश के सबसे बड़े क्षेत्र कृषि की उपेक्षा कर यह मुकाम पाना नामुमकिन है। पिछले आम बजट को ही देखा जाए तो वित्त मंत्री ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का नाम लेकर बजट की शुरुआत की और कहा बजट का केंद्र गांव, गरीब तथा किसान  होगा। किसानों  की आत्महत्या को रोकेंगे, किसानों की आय दोगुनी करेंगे, मंडी कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था होगी, किसान अन्नदाता के साथ ऊर्जादाता बनेगा। ग्रामीण क्षेत्र के  पारम्परिक  उद्योग का विकास होगा। जीरो बजट फार्मिग होगी। बजट प्रावधान  में कुल बजट 27.86 लाख करोड के बजट में  कृषि  बजट 1 लाख 30 हजार करोड़ का यानी 4.6 फीसद आवंटन मिला। उसमें भी 75000 करोड़ रुपये ‘प्रधानमंत्री किसान योजना’ मद का आवंटन था। अन्य  योजनाओं  के  लिए महज 55 हजार करोड़ ही शेष रहा। बजट में पाया गया है कि सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली, सूखे के समस्याओं के समाधान, हर खेत को पानी, आर्गेनिक खेती, कृषि विपणन पर एकीकृत योजना के बजट में कटौती कर दी गई। हर वर्ष 22 फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय होता है। एमएसपी सीटू फार्मले पर तय करने की बात दूर कुछ वस्तु की कीमत लागत से भी कम और कुछ में तो कुछ परिवर्तन नहीं कर जस-का-तस छोड़ दिया गया।
अब तो 2020-21 का बजट सामने है। सरकार को पिछली घोषणाओं पर कार्रवाई  की प्रगति रिपोर्ट देश को देनी होगी तथा किसानों  को बताना होगा कि गांव, गरीब  और किसानों की प्राथमिकता के ऐलान पर क्या हुआ? आय दोगुनी करने, किसानों की आत्महत्या रोकने, अन्नदाता को ऊर्जादाता बनाने, ग्रामीण  पारम्परिक उद्योगों  के विकास, जीरो बजट खेती के विकास पर सरकार कितने कदम बढ़ी है। कृषि संबंधी कार्यक्रमों के बजट में कमी क्यों की गई? पिछले बजट से आस लगाए किसान आज निराश हैं। अगर आम बजट में किसानों की मांगों पर ठोस एलान नहीं होता है तो किसान पुन: संघर्ष के नये तेवर के साथ अपने हक के लिए  सरकार से दो-दो हाथ करने को तैयार होंगे। आगामी  बजट किसानों का बजट हो, बजट आवंटन  किसानों  की  समस्याओं  तथा उसकी बड़ी आबादी  के  हिसाब से तय हो। किसानों  के  उपज का बेहतर कीमत तथा विपणन, भंडारण तथा परिवहन की व्यवस्था सुनिश्चित  हो।
सिंचाई क्षेत्र में कृषि के ढांचागत सुविधा में निवेश बढ़े, मृदा जांच तथा सूक्ष्म पोषक तत्वों  की कमी की जांच के लिए आधुनिक प्रयोगशालाओं  की व्यवस्था, 86.2 फीसद छोटे तथा लघु किसानों  के लिए ब्याज मुक्त तथा समय पर कृषि ऋण, फसल पशुधन और किसानों के फसल बीमा तथा स्वास्थ्य बीमा के ठोस प्रबंधन  की व्यवस्था, प्राकृतिक आपदाग्रस्त इलाकों में जलप्रबंधन तथा खेती की सुरक्षा पर बजट में विशेष प्रबन्ध कर अन्नदाता को संकट से बचाने की जरूरत है। गांवों  से खेतिहर मजदूरों  का पलायन रोकने तथा मजदूरों को खेतों में रोकने के लिए मनरेगा नियमों में परिवर्तन कर मनरेगा को खेतों के साथ जोड़ने तथा उनकी मजदूरी बढ़ाकर उसका आधा-आधा किसान  तथा सरकार  द्वारा  भुगतान  का प्रावधान करने की जरूरत है।

डॉ. आनन्द किशोर


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