वैश्विकी : तुलसी बचाएगी विध्वंस से

Last Updated 12 Jan 2020 04:15:48 AM IST

अमेरिका द्वारा ईरान के प्रमुख सैनिक कमांडर कासिम सुलेमानी की हत्या और ईरान की जवाबी कार्रवाई के बाद दोनों देशों के बीच संघर्ष विराम के हालात हैं।


वैश्विकी : तुलसी बचाएगी विध्वंस से

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने ईरान को लगभग सीधे तौर पर निशाना बनाया था। जवाब में ईरान ने भी ऐसा ही किया था। दोनों देशों के नेताओं की सोच और अतीत में उनकी कार्रवाइयों की जानकारी रखने वाले लोग बड़े पैमाने पर युद्ध छिड़ने की आशंका व्यक्त कर रहे थे। सोशल मीडिया पर तो विश्व युद्ध-3 का हैशटैग शुरू हो गया था। ये सारी आशंकाएं फिलहाल सही साबित नहीं हुई लेकिन इससे यह नतीजा निकालना सही नहीं होगा कि क्षेत्रीय या विश्व पैमाने पर युद्ध के बादल छंट गए हैं। वास्तव में दोनों देश जरूरत पड़ने पर सैनिक कार्रवाई करने का दृढ़ निश्चय कर चुके हैं तथा फिलहाल वे अब तक हुए घटनाक्रमों और अपनी तुलनात्मक सैनिक शक्ति का जायजा ले रहे हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भले कहा हो कि ईरान के मिसाइल हमले में उसका कोई सैनिक हताहत नहीं हुआ और इराक में उसके सैनिक अड्डे पर नुकसान भी मामूली हुआ, लेकिन ईरान की ओर से ऐसा हमला किया गया। यही एक खतरे की घंटी है। वास्तव में ईरान ने अमेरिकी सैनिक अड्डे की ओर जो मिसाइल छोड़ी थीं, उनसे अमेरिकी सैनिक साज-सामान को भारी नुकसान हुआ था। ट्रंप और अमेरिकी सेना ने इस हमले के बारे में कोई ब्योरा या तस्वीरें जारी नहीं कीं। लेकिन व्यावसायिक संस्थानों ने जो उपग्रह चित्र हासिल किए हैं, उनसे स्पष्ट है कि दागी गई मिसाइल बहुत सटीक थी और उन्होंने निशाने पर सीधी चोट की। सैन्य अड्डे पर अमेरिका की मिसाइल प्रतिरोधी प्रणाली ईरानी मिसाइलों को नहीं रोक पाई। ईरानी मिसाइलों की इस मारक क्षमता से अमेरिका ही नहीं, बल्कि इस्रइल में भी चिंता व्याप्त हो गई है। यदि अमेरिका ईरान के खिलाफ भविष्य में कोई सैनिक कार्रवाई करता है तो उसे इसी तरह के या इससे भी अधिक घातक हमलों का सामना करना पड़ेगा जिससे बचाव की कोई गारंटी नहीं है। ईरान खाड़ी क्षेत्र में स्थित अमेरिका के सैन्य और व्यापारिक संसाधनों को भारी नुकसान पहुंचा सकता है।

पूरे घटनाक्रम में एक महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि करीब सत्तर साल पहले कोरिया युद्ध के दौरान अमेरिकी ठिकानों पर हुए मिसाइल हमलों के बाद यह पहली बार है कि अमेरिका के खिलाफ ऐसा हमला हुआ है। सैन्य विशेषज्ञों के अनुसार इराक, सीरिया, लेबनान और यमन समेत पश्चिमी एशिया मेंअनेक ऐसे लड़ाकू संगठन है, जो सीधे ईरान से जुड़े हैं।
ऐसा सबसे ताकतवर संगठन लेबनान का हिज्बुल्ला है जिसके पास हजारों मिसाइलें हैं और जो सीधे इस्रइल को निशाना बना सकती हैं। आने वाले दिनों में यह संगठन अमेरिका और इस्रइल के खिलाफ छिटपुट हमले कर सकते हैं। अमेरिका और ईरान के बीच बड़े पैमाने पर संघर्ष शुरू होने की स्थिति में ये लड़ाकू संगठन पूरी ताकत से खुलकर मैदान में आ जाएंगे। युद्ध के भावी परिदृश्य में केवल अमेरिका और इस्रइल ही नहीं, बल्कि पश्चिम एशिया के अन्य देशों को भी एक के बाद एक शामिल होना पड़ेगा। यह एक भयावह स्थिति होगी और पहले से ही संकटग्रस्त विश्व अर्थव्यवस्था के लिए घातक सिद्ध होगी। यह युद्ध अकल्पनीय मानवीय त्रासदी का कारण बनेगा।
युद्ध के जाने-अनजाने नतीजों का एक उदाहरण पिछले दिनों ईरान में यूक्रेन के एक यात्री विमान को मार गिराया जाना है। विमान के करीब 180 यात्रियों को अपनी जान इसलिए गंवानी पड़ी कि सैन्य तनाव के माहौल में ईरान ने इस विमान को दुश्मन का युद्धक विमान समझ कर मार गिराया। ईरान ने अपनी गलती के लिए यूक्रेन से माफी मांगी है, लेकिन जो नुकसान हुआ उसकी क्षतिपूर्ति नहीं हो सकती। यह घटना अमेरिका और ईरान ही नहीं, बल्कि दुनिया के अन्य देशों के लिए भी एक सबक है। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के एक संभावित उम्मीदवार और अमेरिकी सेना में कार्यरत मेजर तुलसी गबार्ड को पश्चिम एशिया में युद्ध के मोच्रे पर तैनात होने का अनुभव है। उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को चेतावनी दी है कि ईरान के साथ युद्ध बहुत महंगा पड़ेगा। इतना भयावह होगा कि उसके सामने इराक में हुआ युद्ध पिकनिक जैसा प्रतीत होगा। अमेरिकी सांसद की इस प्रतिक्रिया पर दुनिया के नेता गौर करेंगे तभी पश्चिम एशिया में युद्ध के बादल छंट सकते हैं।

डॉ. दिलीप चौबे


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