बतंगड़ बेतुक : राजनीति नहीं, प्याज नीति चाहिए

Last Updated 08 Dec 2019 12:32:08 AM IST

झल्लन हमें देखते ही हमारी तरफ लपक लिया, हमें वह कुछ अंडबंड-सा दिखाई दिया। वह बोला,‘अब क्या कहें ददाजू, इत्ती देर से इतें-उतें भटक रहे हैं पर प्याज नहीं मिल रहे हैं।


बतंगड़ बेतुक : राजनीति नहीं, प्याज नीति चाहिए

जो मिल रहे हैं वे या तो बहुत घटिया मिल रहे हैं और जो अच्छे हैं उनके दाम बहुत ऊंचे चल रहे हैं। जो लुटे-पिटे से प्याज हमें बुला रहे थे, वे हमें नहीं सुहा रहे थे और जो तोंदिल ललछोंहे प्याज हमें ललचा रहे थे वे हमारी जेब को जीभ दिखा रहे थे। घटिया खरीदने का मन नहीं है और बढ़िया खरीदने को धन नहीं है। अब आप ही बताइए ददाजू, क्या करें,  बिना प्याज के पेट कैसे भरें?’ हमने कहा, ‘दो दिन प्याज नहीं खाएगा तो मर नहीं जाएगा, बिना प्याज खाना सीख ले, आगे काम आएगा।’
झल्लन बोला, ‘आप भी क्या बात करते हो ददाजू, हर चीज पर तो ‘बिना’ लग गया है। बिना स्वच्छ हवा जीना सीख लिया, बिना साफ पानी जीना सीख लिया, बिना नियम-कानून जीना सीख लिया, बिना शांति-सुरक्षा जीना सीख लिया, दालें चौके से बाहर हुईं तो प्याज का सहारा लिया। अब आप कह रहे हैं कि प्याज भी खाना छोड़ दे, इससे अच्छा तो ये कहते कि बहुत हुआ झल्लन, अब जीना छोड़ दे।’
हम झल्लन की बात पर मुस्कुराए और हमारी जुबान पर एक-दो मजाक थिरक आये। हमने कहा, ‘झल्लन, तू आम आदमी है खास नहीं, उधर प्याज अब राजसी है तेरे जैसे के बस की बात नहीं। प्याज से दिमाग हटा, नमक-मिर्च से काम चला।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, आप पक्के सठिया रहे हैं तभी ऐसे बतिया रहे हैं। बिना प्याज के न चटनी बनेगी न चाऊमीन बनेगा और बिना प्याजी छोेंक के गरीब का काम कैसे चलेगा?’

हमने कहा, ‘यही बात कोई जाके सरकार को समझाए कि और कुछ करे या न करे पर सस्ता प्याज देने का अपना वादा तो निभाए। गरीब के घर और कुछ पहुंचे न पहुंचे पर प्याज तो पहुंचाए।’ झल्लन बोला, ‘क्या ददाजू, प्याज जैसी पिद्दी बात में भी आप राजनीति खोजने लगते हो, मौका हो न हो सरकार को कोसने लगते हो। सरकार राफेल, मंदिर, जम्मू-कश्मीर जैसे बड़े कामों के लिए है या गरीब की रसोई में प्याज परोसने के लिए है। कोई प्याज पैदा करता है, कोई प्याज खरीदता है, पैदा करने वाले और खरीदने वाले के बीच पुल का काम बिचौलिया करता है। प्याज का दाम उठता-गिरता है तो इन्हीं के बीच उठता-गिरता है, इसमें सरकार क्या करे? सरकार एनआरसी लागू करे कि प्याज जैसी बेपेंदा चीज के दाम तय करे?’
हमने कहा, ‘तुझे लगता है प्याज इतना तुच्छ है कि इसे बड़ी-बड़ी जिंसों में दिखना नहीं चाहिए और बड़े-बड़े मुद्दों में इसे गिनना नहीं चाहिए। अगर तू ऐसा सोचता है तो तू प्याज को कमतर आंकता है, इसके बारे में ठीक से नहीं जानता है। प्याज सत्ता पक्ष की खाज है, विपक्ष का बोनस और ब्याज है, राजनीति का एक अंदाज है, कोई इससे नाराज है तो किसी को इस पर नाज है, खबरिया चैनलों की खबर का ताज है, बाजार से बाहर नहीं होता इसलिए जांबाज है, किसानों की दर्दभरी आवाज है, इसका खेल कभी उजागर है तो कभी राज है, पैसों वालों की प्यारी और गरीबों पर गिरती गाज है।’
झल्लन बोला, ‘बस, बस ददाजू, अपने इस राजनीतिक अंदाज पर विराम लगाइए और बाज आइए। प्याज खाइए या न खाइए पर प्याज पर इतने आक्षेप तो मत लगाइए।’ हमने कहा, ‘आक्षेप नहीं लगा रहे हैं, जो हकीकत है वही बता रहे हैं। प्याज सिर्फ एक सहायक सब्जी नहीं बल्कि सब्जियों की नाक का बाल है, सिर्फ खाद्य नहीं बल्कि एक ज्वलंत मुद्दा है, एक जीवंत सवाल है। प्याज एक पैमाना है। इस पैमाने पर आप देश का भविष्य नाप सकते हैं, किसान की किस्मत भांप सकते हैं, उपभोक्ता की हताशा में झांक सकते हैं, सरकार की अक्षमता समझ सकते हैं, प्रशासन की अकर्मण्यता परख सकते हैं। इसमें आप व्यापारियों की दमदारी देख सकते हैं, बिचौलियों की मक्कारी देख सकते हैं, किसानों की लाचारी देख सकते हैं। जब राजनीति की रसोई में प्याज आ जाता है तो विपक्ष की बांछें खिल जाती हैं, सरकार की चूल्हें हिल जाती हैं।’
झल्लन ने अपने कानों पर हाथ रख लिये, ‘बस करिए ददाजू, आप प्याज के बारे में बता रहे हैं या गृह युद्ध की आशंका जता रहे हैं।’ हमने कहा, ‘हम आशंका नहीं, चिंता जता रहे हैं और जो समझ रहे हैं वही तुझे बता रहे हैं। अब सोच, जिस सरकार के राज में प्याज प्याज नहीं रह जाये और जनता के विरोध की आवाज बन जाये, वह सरकार कैसे सरकार हो सकती है और अगर सरकार है तो प्याज की ओर से आंख मूंदकर कैसे सो सकती है?’
झल्लन बोला, ‘ददाजू, आपका बयान भड़काऊ है, हमारा मन भी भड़कने को हो रहा है, मुट्ठी उठाकर सरकार के विरुद्ध कड़कने को हो रहा है। चलिए ददाजू, उठिए, थोड़ी हिम्मत दिखाइए, एक जोरदार नारा लगाइए, हमें राजनीति नहीं प्याज चाहिए।’ हमने कहा, ‘तुझे भड़कना है तो तू भड़कता रह, हम तो घर जाएंगे अगर कहीं प्याज मिल गये तो आमलेट बनाकर खाएंगे।’

विभांशु दिव्याल


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