मीडिया : सब ऊपरवाले की लीला
हाय हाय! कल तक शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेसी नेता कहते रहे कि कल बताएंगे। सारी बातें कल पक्की होंगी और कल शाम को ही सारी बातें बताएंगे।
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संजय राउत बार-बार कहते रहे कि जल्द ही महाराष्ट्र को शिवसेना का मुख्यमंत्री मिलेगा। लेकिन शनिवार की सुबह अचानक फडणवीस मुख्यमंत्री बन गए और अजित पवार उपमुख्यमंत्री!
देश भर की जनता भी शनिवार की सुबह एनसीपी की राजनीतिक ‘रिवर्स स्विंग’ देख अवाक रह गई। खबर चैनल भी एकदम अवाक नजर आए कि यह क्या हो गया? इसे देख कांग्रेस के अभिषेक मनु सिंघवी ने आत्मव्यंग्य में ट्वीट कर शरद पवार को शाबाशी दी कि मान गए आपको महाराज! उनका मानना रहा कि एनसीपी-शिवसेना-कांग्रेस की बातचीत तीन दिन में खत्म हो जानी चाहिए थी। ऐसा हुआ होता तो कांग्रेस की इतनी फजीहत न होती।
एक एंकर चकित होकर बोला कि अपने राजनीतिक इतिहास में ऐसा उलटफेर पहले कभी नहीं हुआ। एक अन्य एंकर शरद पवार पर कुर्बान हुआ बोलता रहा कि शरद पवार आज के सबसे खतरनाक चाणक्य हैं। लेकिन रातों रात एनसीपी का एक बड़ा हिस्सा भाजपा एक साथ आ गए और जिसकी किसी ने कल्पना तक न की थी, वो हो गया। इसे देख राजनीतिक पर्यवेक्षक जितने हैरान था उससे अधिक हैरान वे एंकर-रिपोर्टर थे, जो आये दिन अंदर की बात बताते रहते हैं, और एक से एक गोपनीय फाइल को पढ़ते रहते हैं।
ऐसे तमाम तथाकथित खोजी एंकर, रिपोर्टर खबर लगाने की अपनी असफलता को मानने की जगह कांग्रेस-एनसीपी-शिवसेना के नेताओं के मूर्ख बनने पर चरचा करते रहे। हमारे तथाकथित खोजी मीडिया के रोल की पोल एक बार फिर खुली। एक रिपोर्टर बोला कि यह सब शरद का किया-धरा है। ऊपर से वे कुछ कहें, लेकिन उन जैसे नेता को इस तोड़फोड़ की न भनक हो, इस बात पर यकीन नहीं किया जा सकता। यह सचमुच टॉपक्लास अवसरवादी सुपर यूटर्न रहा कि कांग्रेस के खुर्राट नेता अहमद पटेल तक ठगे से रह गए। एक ने कहा कि यह खेल तभी समझ लेना चाहिए था, जब मोदी पवार की चालीस मिनट तक बातचीत हुई। लेकिन शिवसेना का नेतृत्व अपने पुत्रमोह में लगा रहा और कांग्रेस अपनी भाजपा-विरोधी किंतु अवसरवादी राजनीति में लगी रही। अब एंकर कह रहे हैं कि इस बात को अब समझा जा सकता है कि मोदी व शरद पवार की संसद में हुई बैठक में शायद यह तय हुआ और कांग्रेस इस मीटिंग के मानी तक न समझ सकी। एक एंकर बोला कि अजित पवार और शरद एक दूसरे के पर्याय हैं। ऐसे में कैसे हो सकता है कि अजित उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लें और शरद को मालूम न हो। तब क्या एनसीपी में भाजपा ने दोफाड़ करा दिया या कि चाचे ने भतीजे को उपमुख्यमंत्री बनवाया या कि भतीजे ने चाचे को ही लुढ़का दिया?
रिपोर्टर सिर्फ अनुमान लगाते रहे कि जो हुआ वह कैसे हुआ होगा! फिर भी एक बात सबकी जुबान पर रही कि शरद राजनीति के सर्वाधिक चतुर खिलाड़ी हैं। उनमें से हैं जिनकी जुबान पर कुछ और होता है, और करते कुछ और हैं। इसलिए यकीन करना मुश्किल है कि उन्हें कुछ खबर ही न थी! संजय राउत क्षुब्ध होकर बोले कि शरद इसमें शामिल नहीं हैं। एक चैनल ने लाइन दी कि यह अजित की ‘बैक स्टेबिंग’ है। इस समूची कवरेज ने हम सबको कुछ और चतुर और मक्कार बनने की प्रेरणा दी और समझा दिया कि अब अपनी राजनीति में न कोई उच्च-विचार बचा है, न कोई आदर्श या सिद्धांत बचा है। अवसरवाद ही सबसे बड़ा आदर्श है। ऐसे में कुशल और अचूक अवसरवादी ही आगे बढ़ा करते हैं।
भाजपा का यह धोबीपाट शिवसेना के लिए जितना भारी पड़ा उससे अधिक कांग्रेस के लिए भारी पड़ा। कांग्रेस के पास अवसर था कि शिवसेना के साथ गलबहियां डांस न कर अपने बचे-खुचे सेक्युलरिज्म और वैचारिक आदशरे पर टिकी रहती लेकिन उसने अपनी रही-सही इज्जत को भी बट्टा लगा लिया। एंकर चाणक्य की चरचा करते रहे, लेकिन हमें लगता है कि आज चाणक्य होते तो अपने नेताओं के चेले बन जाते। चाणक्य ने कहा था कि सफल होना है तो किसी को अपने मन की बात न बताओ। इन नये चाणक्यों ने बताया कि झूठ को भी सच की तरह बोलो और मीडिया के आगे भी बॉडी लैंग्वेज को ऐसी रखो कि कोई भांप न पाए कि अंदर क्या चल रहा है। मीडिया कुरेदे तो उसे अपनी भाषायी लफ्फाजी में उलझाते रहो और जब आपके मन की चीती हो जाए तो कहो कि इस सबमें मैं कहां? यह सब ‘ऊपर वाले की लीला’ है!
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