नोबेल : केरल दौरे से मिली निराशा

Last Updated 24 Oct 2019 12:03:49 AM IST

अर्थशास्त्र में 2019 के नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी और उनकी पत्नी एस्तेर दुफ्लो ने केरल की विकास परियोजना में भागीदार बनने के लिए 2016 में उस राज्य का दौरा किया था।


नोबेल : केरल दौरे से मिली निराशा

भारतीय मौद्रिक निधि के वर्तमान मुख्य आर्थिक सलाहकार गीता गोपीनाथ जब केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की आर्थिक सलाहकार थीं, तब वे दोनों केरल आए थे। सरकार के प्रतिनिधियों के साथ हुई उनकी चर्चा के दौरान गीता गोपीनाथ भी उनके साथ थीं। दुनिया से गरीबी मिटाने के लिए उनके जिस परीक्षण के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार दिया गया है, उसी पर आधारित विकास परियोजना तैयार करना उनके दौरे का लक्ष्य था।

राज्य के सारे सरकारी अस्पतालों की बुनियादी सुविधाओं में वृद्धि करके मरीजों के लिए अच्छी स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराना ही ‘आर्दरम’ योजना का उद्देश्य है। इसके तहत सारे स्वास्थ्य केंद्रों की गुणवत्ता बढ़ेगी और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सतत विकास होगा। सरकारी अस्पतालों के माहौल को रोगी के साथ की मित्रता के माहौल में परिवर्तित करके, उनके इलाज का खर्चा भी काफी हद तक कम करके, वहां प्राप्त इलाज की गुणवत्ता भी बढ़ाएंगे तो सरकारी स्वास्थ्य सुविधा के प्रति उनका विश्वास बढ़ेगा। ‘आर्दरम’ योजना के अंतर्गत सरकार आम जनता के लिए यही सब कुछ करना चाहती है। यह योजना कारगर सिद्ध हुई तो स्वास्थ्य के क्षेत्र में बहुत बड़ी क्रांति आएगी। इसी के मद्देनजर दोनों अर्थशास्त्रियों को केरल आने का न्योता दिया गया था। वे दोनों भी केरल के स्वास्थ्य के क्षेत्र के कथित विकास के आधार पर अपना योगदान भी निर्धारित करके आए थे, लेकिन उन्हें अपने लक्ष्य में सफलता नहीं मिल पाई। जब पति-पत्नी विकास परियोजना से संबंधित चर्चा में भाग लेने तिरुवनंतपुरम पहुंचे तब गीता गोपीनाथ भी उनके साथ थीं।

उन्हें परिवार स्वास्थ्य एवं आर्थिकता पर आधारित एक अन्य योजना ‘कुटुम्बश्री’ से अवगत कराया गया। ‘कुटुम्बश्री’ योजना के अंतर्गत गरीब परिवार की महिलाओं को स्वयं सहायता प्राप्त करने के लक्ष्य के साथ पहले उन्हें घर के इलाके में ही छोटे-छोटे ग्रुपों में बांटा जाता है। इसके बाद उपलब्ध संसाधनों की सहायता से ग्राम पंचायतों की देखरेख में इन्हें अपने-अपने कार्यक्षेत्र की कुशलता पर आधारित कोई भी व्यवसाय शुरू करने के लिए आर्थिक सहायता के साथ अन्य आवश्यक मदद भी की जाती है। इसी दौरान, अस्पताल में बाहरी मरीजों की सेवा में नियुक्त डाक्टरों के ड्यूटी समय में सरकार द्वारा वृद्धि किए जाने पर सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों ने उसके विरुद्ध हड़ताल कर दी।

हड़ताल के बीच ही विकास परियोजना पर चर्चा करने के लिए बैठक बुलाई गई, लेकिन चर्चा ज्यादा नहीं चल पाई थी कि उसका रुख ही बदल गया। चर्चा के दौरान स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी को हड़तालियों के साथ बातचीत करने के लिए बुला लिये जाने पर ऐसा हुआ था। इस संबंध में एस्तेर दुफ्लो ने 23 जनवरी, 2017 में छपे अपने शोध प्रबन्ध में लिखा,‘यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार के उच्च नीति निदेशकों के पास परियोजना से जुड़ी विस्तृत जानकारी देने का समय नहीं होता है।

इसलिए उनके प्रतिनिधि के रूप में सारी जिम्मेदारी ‘विशेषज्ञों’ के कंधों पर डाल देते हैं। दुफ्लो ने यह भी लिखा कि विशेषज्ञों के साथ उनके संवाद के दौरान उन्होंने परियोजना से संबंधित कुछ सवाल पूछे। लेकिन उनके लिए यह बहुत ही आश्चर्य की बात थी कि दोनों विशेषज्ञों को उनके सवालों के जवाब नहीं मालूम थे। साथ ही उन लोगों ने सवालों पर ध्यान देने में कोई विशेष रुचि भी नहीं दिखाई। वे दोनों एक ही रट लगाते रहे कि डॉक्टर और स्थानीय सरकार पर ज्यादा कुछ करने के लिए जोर नहीं डाल सकते हैं। उनके रवैये से लग रहा था कि वे दोनों उनके सवाल सुनना ही नहीं चाहते थे। उनसे सरकारी नीति के बारे में विस्तार से जानने की कोशिश की गई, लेकिन वे उनसे कुछ भी नहीं जान पाए।

एस्तेर दुफ्लो के अनुसार उन्हें एक और बैठक में शरीक होना था, इसलिए उसके बाद जब वे अपराह्न तीन बजे तक लौट आए तो उन लोगों ने ‘पॉवर प्वाइंट प्रस्तुति’ के लिए एक ‘प्रोजक्टर’ तैयार कर रखा था। उन्होंने सोचा कि उनकी अनुपस्थिति में भी वे लोग परियोजना को आगे बढ़ाने के संबंध में काफी गंभीरता से विचार कर रहे थे। मगर यह जानकर उन्हें निराशा हुई कि वहां जो ‘पॉवर प्वाइंट प्रस्तुति’ हो रही थी, वह संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास के उद्देश्यों पर आधारित थी। इनके बावजूद उन्होंने बताया कि सामाजिक विकास के मामले में केरल भारत का सबसे विकसित राज्य है। लेकिन विकसित राष्ट्रों में उच्च रक्तचाप, मधुमेह आदि जो स्वास्थ्य समस्याएं पनप रही है, उन्हें केरल को भी झेलना पड़ रहा है।

बाबू राज के नायर


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