नशे की तस्करी : होनी चाहिए सर्जिकल स्ट्राइक

Last Updated 23 Oct 2019 04:46:32 AM IST

इसमें शक नहीं कि बीते अरसे में युवा पीढ़ी को गिरफ्त में लेने वाले नशे को लेकर जो बदनामी पंजाब ने झेली है, उसका मुकाबला देश का कोई अन्य राज्य फिलहाल नहीं कर सका है।


नशे की तस्करी : होनी चाहिए सर्जिकल स्ट्राइक

लेकिन देश की राजधानी दिल्ली में एक के बाद ड्रग्स की बड़ी खेपों की बरामदगी से नीचे से लेकर ऊपर तक बैठे आला अधिकारियों के कान नहीं खड़े हुए तो दिल्ली-एनसीआर को पंजाब बनते देर नहीं लगनी। हकीकत यही है कि पिछले कुछ वर्षो में दिल्ली-एनसीआर नशीले पदार्थों की तस्करी का बड़ा अड्डा बन गया है। यमुना किनारे खुलेआम तो कभी गुपचुप होने वाली रेव पार्टियों में प्रतिबंधित ड्रग्स का इस्तेमाल बताते हैं कि नौ-दस गुना तक बढ़ गया है।

मादक पदार्थों यानी ड्रग्स के रूप में नशे के बढ़ते चलन की टोह इससे लग जाती है कि हाल के महीनों में ड्रग्स तस्करी के कई बड़े रैकेटों का भंडाफोड़ हुआ है, और एक ही बार में करोड़ों-करोड़ रुपये की आधुनिक नशे की खेपें बरामद हुई हैं। मसलन, हाल में म्यांमार से पहले मणिपुर-बिहार और फिर दिल्ली तक लाई गई 25 किलो हेरोइन की खेप (जिसकी बाजार कीमत 125 करोड़ रुपये है) पकड़े जाने से एक बड़े रैकेट का भंडाफोड़ हुआ है। पुलिस के मुताबिक हेरोइन की यह खेप दिल्ली-एनसीआर, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान भेजी जानी थी। दावा है कि दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने पिछले दो सालों में 10 बड़े ऑपरेशन अंजाम देकर करीब 24 सौ करोड़ की हेरोइन बरामद की है, और इनमें कभी नाइजीरियाई तो कभी अफगानी नागरिकों को गिरफ्तार किया गया है। बीते तीन-चार वर्षो में यहां ड्रग्स तस्करों की आवक और गिरफ्तारियां भी बढ़ी हैं। कहा जा रहा है कि दिल्ली में नशीले पदार्थ सबसे ज्यादा अफगानिस्तान और उसके बाद नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार के रास्ते पहुंचते हैं, और यहां खपाए जाने के बाद ड्रग्स की ये खेपें दिल्ली से यूरोप, ब्रिटेन और लैटिन अमेरिकी देशों तक में सप्लाई की जाती हैं। इन खेपों में एक से बढ़कर एक प्रतिबंधित ड्रग्स जैसे डायजेपाम, मंड्रेक्स, एफेटेमिन, मॉर्फिन, केटामाइन, मेथमफेटामाइन, एमडीएमए, पेंटाजोकिन, स्यूडोफिड्रिन, म्याऊं-म्याऊं और कॉडिन जैसी ड्रग्स शामिल हैं।
वैसे तो ड्रग्स तस्करी पर काबू पाने वाली सरकारी एजेंसियां मुस्तैदी का दावा करती हैं, इन मामलों में कभी अफगानियों तो कभी नाइजीरियाई नागरिकों की धरपकड़ भी करती हैं, लेकिन कोई बड़ा मामला थोड़ा ठंडा पड़ते ही नशे का कारोबार पहले से भी ज्यादा रफ्तार से दौड़ने-भागने लगता है। सवाल उठता है कि दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल समेत हमारी सुरक्षा एजेंसियां आखिर क्या कर रही हैं, जो बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, म्यांमार और नेपाल से आने वाली ऐसी खेपों को रोक नहीं पाती हैं। बड़ा सवाल नशा छुड़ाने वाली तकनीकों और इलाज की पद्धतियों का भी है। हमारी सरकार की मौजूदा नीति ड्रग्स एडिक्शन से निपटने के लिए सिंगल कोर्स ट्रीटमेंट देने की है, जिसमें नशे के शिकार शख्स को चार से छह हफ्ते तक वैकल्पिक दवाओं से ट्रीटमेंट दिया जाता है। संयुक्त राष्ट्र नशे के इलाज की इस पद्धति को मान्यता तो देता है, लेकिन मौजूदा संसाधनों में आज के घोषित नशेड़ियों का इलाज शुरू किया जाए तो उन सभी का इलाज करने में दस से बीस साल तो लग ही जाएंगे। एक समस्या यह भी है कि भले ही नशे के आदी युवक को उसके परिजन इलाज दिलाना चाहते हैं, लेकिन अक्सर उन्हें इन चिकित्सा पद्धतियों और इलाज के केंद्र का पता ही नहीं होता।
ऊपर से सरकार का ज्यादा ध्यान सिर्फ  पुनर्वास और सुधार केंद्रों पर टिका है, जिससे समस्या का संपूर्ण निराकरण संभव नहीं है। दिक्कत यह भी है कि नशा सिर्फ  एक खास इलाके तक सीमित नहीं रहता है, बल्कि नशे के कारोबारी धीरे-धीरे आसपास के इलाकों में भी अपना जाल फैला लेते हैं। जैसे, नशे की समस्या आज पंजाब तक सीमित नहीं है, बल्कि पड़ोसी राज्य हरियाणा इसकी चपेट में है, दिल्ली के स्कूल-कॉलेजों के सामने भी बच्चों को नशे से दूर रखना चुनौती बन गया है। हालात ये हैं कि राजस्थान का कोटा ड्रग्स का गढ़ माना जाने लगा है, उत्तराखंड के देहरादून में शाम ढलते ही नशे का धुआं और शराब की गंध माहौल में फैलने लगती है। असल में यह सामाजिक समस्या भी है, जो परंपरागत पारिवारिक ढांचों के बिखराव, स्वच्छंद जीवनशैली, सामाजिक अलगाव आदि के हावी होने और नैतिक मूल्यों के पतन के साथ और बढ़ती जा रही है। सरकार और समाज, दोनों को इस समस्या से निपटने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक जैसी कार्रवाई करने की जरूरत है- यह समझ अब तक पैदा हो ही जानी चाहिए थी।

अभिषेक कु. सिंह


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment