बीसीसीआई : दादा बन गए बॉस

Last Updated 16 Oct 2019 04:17:49 AM IST

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड अभी कुछ सालों पहले तक इतना ताकतवर था कि उसकी मर्जी के बिना विश्व क्रिकेट में पत्ता तक नहीं हिलता था।


बीसीसीआई : दादा बन गए बॉस

लेकिन पिछले कुछ सालों में उसकी हालत यह हो गई है कि खुद पत्ते की तरह हिल रहा है। ऐसे बोर्ड की हालत सुधारने का जिम्मा पूर्व भारतीय कप्तान सौरव गांगुली को मिला है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बीसीसीआई और राज्य क्रिकेट एसोसिएशनों के संशोधित संविधानों के अनुसार पहली बार होने जा रहे चुनावों में सौरव गांगुली नामांकन की आखिरी तारीख तक अध्यक्ष पद के लिए नामांकन भरने वाले इकलौते हैं, इसलिए 23 अक्टूबर को होने वाली साधारण सभा में उनके अध्यक्ष की घोषणा होना तय है। गृह मंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह का सचिव, अरुण सिंह धूमल का कोषाध्यक्ष, महिम वर्मा का उपाध्यक्ष और जयेश जॉर्ज का संयुक्त सचिव बनना भी तय हो गया है।

एन श्रीनिवासन की अगुआई में बोर्ड के पूर्व दिग्गजों ने मुंबई के पांच सितारा होटल में अनौपचारिक बैठक बुलाई थी। बैठक में पूर्व टेस्ट खिलाड़ी बृजेश पटेल का बीसीसीआई अध्यक्ष बनना तय सा हो गया था। लेकिन बोर्ड के एक पूर्व अध्यक्ष के लगातार दिल्ली में फोन से संपर्क करने पर एकाएक बाजी पलट गई और सौरव गांगुली के नाम पर सहमति बन गई। गांगुली का नाम एकाएक आगे बढ़ने से कहा जा रहा है कि उनकी भाजपा से कोई डील होने की वजह से वह इस पद पर पहुंच पाए हैं। कयास ये भी हैं कि वह 2021 में होने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री पद के दावेदार बन सकते हैं। हालांकि इन खबरों की पुष्टि नहीं हुई है। नये संविधान के अनुसार दादा के नाम से मशहूर सौरव गांगुली इस पद पर 10 माह ही रह सकते हैं। इसके बाद उनका तीन साल तक किसी भी पद से अलग रहने का समय शुरू हो जाएगा। लेकिन हाल में खेल मंत्री रिजुजू द्वारा खेल बिल में सुधार के संकेत देने से संभव है कि दो कार्यकाल तक ही पद पर रहने और 70 साल से ज्यादा उम्र तक पद पर बने रहने की छूट मिल जाए। ऐसा होता है तो दादा कार्यकाल पूरा भी कर सकते हैं।

बीसीसीआई में सुधारों के लिए जस्टिस लोढ़ा समिति की सिफारिशों के अनुरूप नया संविधान बनने पर एक बार को लगा था कि क्रिकेट बोर्ड का हुलिया बदल जाएगा।  दशकों से इस पर काबिज दिग्गजों के हाथ से इसके संचालन की डोर हट जाएगी। पर पहले राज्य क्रिकेट एसोसिएशनों के चुनावों और अब बीसीसीआई के पदाधिकारियों के चयन से साफ है कि क्रिकेट प्रशासन की चाबी दिग्गजों के पास ही रहने वाली है, भले ही वे बोर्ड के पदाधिकारी नहीं बन सके हैं पर उन्होंने अपनों को ही सत्ता की कुर्सी पर बैठाया है। इसमें कोई दो राय नहीं कि सौरव का अध्यक्ष के तौर पर चयन बेहतरीन कदम है। वह टीम इंडिया के कप्तान के तौर पर अपनी नेतृत्व क्षमता की धाक जमा चुके हैं।

बंगाल क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष रहने के दौरान प्रशासन चलाने की क्षमता दिखी है। सौरव के सामने बड़ी चुनौती आईसीसी में भारतीय धाक को फिर से स्थापित करना होगा। ऐसा करके ही भारत रेवेन्यू में अपना सही हिस्सा हासिल कर सकेगा। असल में पिछले तीन साल से बीसीसीआई का संचालन कर रही प्रशासकों की समिति के कार्यकाल में भारत की स्थिति कमजोर हो गई है। यही वजह है कि श्रीनिवासन के आईसीसी चेयरमैन रहने के दौरान बिग थ्री वित्तीय मॉडल बनाया गया था। इसके अंतर्गत भारत को 44 करोड़ डॉलर 2015 से लेकर 2023 तक मिलने थे। यह राशि बढ़कर 54 करोड़ डॉलर तक हो सकती थी। बीसीसीआई के कमजोर होने का फायदा उठाकर आईसीसी ने इस मॉडल को बदल दिया। इस वजह से भारत को इस अवधि में 29.3 करोड़ डॉलर ही मिलेंगे। सौरव ने बीसीसीआई अध्यक्ष पद का नामांकन भरते ही कहा कि बीसीसीआई जिस राशि की हकदार है, वह उसे पिछले तीन-चार साल से मिल रही है। इससे साफ है कि नई टीम पर पूर्व बीसीसीआई अध्यक्ष श्रीनिवासन की सोच का प्रभाव है।

सौरव को हितों के टकराव की समस्या निपटना जरूरी है। वह मानते हैं कि इस वजह से अच्छे क्रिकेटर क्रिकेट प्रशासन से नहीं जुड़ पा रहे हैं। वह खुद इस विवादास्पद नियम का शिकार बन चुके हैं। इसलिए उन्हें क्रिकेट की बेहतरी के लिए अच्छे क्रिकेटरों को जोड़ने का कोई रास्ता तलाशना होगा। एक बात और है कि पदाधिकारियों के चयन में जिस तरह से पूर्व दिग्गजों की चली है, उससे सौरव को खुलकर काम करने की छूट मिल पाएगी, यह भी अहम सवाल है। पर सौरव का जिस तरह का मिजाज है, उससे वह आसानी से दबने वाले तो नहीं हैं। देखते हैं आगे क्या होता है।

मनोज चतुर्वेदी


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