वैदेशिक : भारत-अमेरिका के बीच नई केमिस्ट्री
ह्यूस्टन के एनआरजी स्टेडियम से शुरू हुई प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमेरिका यात्रा के कई आयाम हैं, जो भारतीय विदेश नीति की दिशा बदलते दिख रहे हैं।
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इस यात्रा में मोटे तौर पर दो बातें अधिक महत्त्वपूर्ण दिखीं। एक थी भारत की विदेश नीति पूरी तरह से इंडिया सेंट्रिक दिखी; और दूसरी मोदी सेंट्रिक। ऐसा इसलिए हुआ कि ह्यूस्टन में मोदी अनुच्छेद 370 के फेयरवेल के बाद पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से पराजित करके विजेता के रूप में पहुंचे थे। शायद यही वजह है कि वहां न केवल अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, बल्कि अमेरिकी सांसदों की हिस्सेदारी भी दिखी।
ह्यूस्टन में मोदी ने लगभग 60 हजार भारतवंशियों से सीधा संवाद किया। उन्हें एहसास दिलाया कि उनकी उपस्थिति केवल अरिथमेटिकल महत्त्व नहीं रखती, बल्कि यह नये इतिहास की रचना करने में समर्थ है। हालांकि हाउडी मोदी में प्रधानमंत्री का कहना, ‘एक बार फिर ट्रंप सरकार’ कुछ हद तक अस्वीकार्य सा लगा। लेकिन इसका दूसरा सिरा यह भी हो सकता है कि वे दो शिखर नेताओं के बीच की नई केमिस्ट्री के जरिए उन देशों को कुछ पैगाम देना चाहते हों जो पाकिस्तान को ताकत दे रहे हैं। जिस तरह से ट्रंप ने प्रधानमंत्री और उनके कार्यक्रमों में रुचि ली, उसका अर्थ यही निकलता है कि भारत-अमेरिका संबंधों में अब वैयक्तिक कूटनीति प्रमुख आयाम ग्रहण कर रही है। हालांकि बदलती विश्व व्यवस्था में इस प्रकार के संबंधों की खास भूमिका होती है क्योंकि जब वैश्विक व्यवस्था रिसेपिंग के दौर से गुजर रही हो तो इस तरह की विशेषताएं भारत को मजबूती दे सकती हैं। लेकिन ट्रंप सबसे अनिश्चिततापरक विदेश नीति के दौर में अमेरिका को ले जाने वाले राष्ट्रपति हैं। ऐसे में भारत-अमेरिकी राजनीति में भारत की सक्रियता और भारत के आंतरिक मामलों में ट्रंप की टिप्पणियों की बारम्बारता विदेश नीति की गंभीरता को कमजोर कर सकती है।
हमें गंभीरता से विचार करने की जरूरत है कि आखिर, अमेरिकी राष्ट्रपति भारत के आंतरिक मामले में बार-बार दखल देने का प्रस्ताव क्यों दे रहे हैं? या इमरान खान और पाकिस्तान को इतना महत्त्व क्यों दे रहे हैं। उदाहरण के तौर पर उन्होंने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ प्रेस वार्ता में स्पष्ट कहा कि, ‘मेरे साथ यह जो शख्स बैठा है पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान है, मैं इन पर पूरा भरोसा करता हूं।’ यहां तक कि उन्होंने आतंकवाद के मुद्दे पर भी एक जवाब में कह दिया कि उनका इशारा पाकिस्तान नहीं बल्कि ईरान की तरफ था। ये वक्तव्य ट्रंप के भारत के प्रति मैत्री भाव को संदिग्ध बना देते हैं।
उल्लेखनीय है कि ह्यूस्टन में प्रधानमंत्री ने कहा था कि आंतकवाद का साथ देने वाले और उसे पालने वाले के खिलाफ निर्याणक लड़ाई का वक्त आ गया है। पाकिस्तान की ओर इशारा करते हुए कहा था अमेरिका में 9/11 हो या मुंबई में 26/11 हो, उसके साजिशकर्ता कहां पाए जाते हैं। इस पर ट्रंप ने ‘हाउडी मोदी’ की मेगा रैली की तारीफ करते हुए कहा कि रैली में प्रधानमंत्री मोदी का ’बेहद आक्रामक बयान’ सुना है। तो क्या वास्तव में ऐसा सुनकर ट्रंप कुछ असहज हुए थे, जैसा कि वे बाद में स्वीकार करते दिखे? ऐसा है तो ट्रंप के साथ प्रधानमंत्री मोदी की बॉण्डिंग की समीक्षा करनी होगी? पिछले कुछ समय से अमेरिका जिस तरह से भारत के साथ लव-हेट गेम खेल रहा है, उस पर ध्यान देना जरूरी है। उसने ईरान के साथ जब न्यूक्लियर डील खत्म करने की एकपक्षीय घोषणा की तो कुछ समय बाद ही भारत सहित कई एशियाई देशों से ईरान के साथ व्यापार खत्म करने को कहा।
भारत को जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रिफरेंसेज के तहत मिल रही सुविधाओं को भी समाप्त कर दिया। भारत के कुछ उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाकर भारत को ट्रेड वॉर के मैदान तक ले जाने की कोशिश की। अपने काटसा (काउंटरिंग अमेरिकाज् एडवरसरीज थ्रू सैंक्शंस एक्ट) के तहत भारत को रूस से एस-400 डिफेंस मिसाइल सिस्टम खरीदने से रोका। साथ ही भारत का सबसे बेहतर दोस्त बताया है। इसमें संशय नहीं कि ट्रंप की विदेश नीति में अनिश्चितता है, लेकिन भारत आज अमेरिका के लिए जरूरत है। चाहे पूरब में कोई सामरिक-आर्थिक गठबंधन बने या पश्चिम में, बिना भारत के निश्चित आकार नहीं ले सकता। उम्मीद है कि भारत चुनौतियों से टकराते हुए सफलता हासिल करेगा।
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