मीडिया : थनबर्ग का पर्यावरण चिंतन
जब से हमने अपने खबर चैनल में पर्यावरण की रक्षा के लिए सोलह बरस की स्वीडिश बिटिया ग्रेटा थनबर्ग की ‘हाउ डेअर यू’ छाप फटकार लाइव सुनी है, और उस पर दुनिया भर के महामहिमों की तालियां सुनी हैं, तब से समझ नहीं आ रहा है कि उस बालिका की फटकार सही थी कि लोगों की तालियां सही थीं?
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एक ओर फटकार दूसरी ओर तालियां! विचित्र अनुभव था। या तो वो ‘फटकार’ फटकार नहीं थी या वो ‘तालियां’ तालियां नहीं थीं। ताली पर ताली कामेडी में तो पड़ सकती है यूएन की जनरल असेंबली में भला कैसे हो सकती हैं? पर्यावरण की इतनी ही फिक्र थी तो तालियों को भी वहीं ‘शट अप’ करते हुए वह कह सकती थी कि पर्यावरण बिगाड़ने वालो! ‘हाउ डेअर यू’ यानी तुम लोगों की ताली बजाने की हिम्मत कैसे हुई यू शट अप! लेकिन वह तालियों की ‘बदतमीजी’ पर चुप रही; शायद मन ही मन खुश भी हुई होगी। इसका मतलब यही कि है कि वो चाहती थी कि उसकी फटकार पर तालियां पड़ें। उसकी फटकार एक ‘परफॉरमेंस’ थी, जिसे उन्हीं महामहिमों ने पहले से प्लान किया हुआ था! वरना यूएन की जनरल असेंबली में क्या हर कोई घुस सकता है, और बिना तयशुदा टाइम और पूर्व योजना के क्या इस तरह से कोई बोल सकता है जैसा थनबर्ग ने बोला!
कई चैनलों पर बिटिया ग्रेटा थनबर्ग के ‘पर्यावरण रक्षा’ के सूत्रों के कुछ भाष्यकार भी बैठ गए और बताने लगे कि हम लोगों ने अपना पर्यावरण बरबाद करके अपना वर्तमान चौपट कर लिया लेकिन नये बालक-बालिका अपने भविष्य के प्रति सजग हो चले हैं। ऐसी ही एक भद्र चरचा में टीवी स्क्रीन के आधे हिस्से में कुछ छात्र स्कूल की ड्रेस में अंग्रेजी में लिखी ‘मेरी धरती खराब न करो’, ‘पर्यावरण बचाओ’ आदि की तख्तियां लिए प्रदर्शन करते दिखे। भाष्यकार थनबर्ग की हिम्मत पर देर तक मुग्ध रहे। एक ओर आत्मग्लानि कि हमने पर्यावरण बिगाड़ा और दूसरी ओर आशा कि चलो हमारे बाद हमारे बच्चे और उनके बच्चों को स्वस्थ पर्यावरण मिलेगा! लेकिन बुरा हो सोशल मीडिया का कि कुछ देर बाद ही वह थनबर्ग की महानता से ऊब गया और कुछ दुष्ट लोग खोज खोज कर बताने गले कि ग्रेटा थनबर्ग कोई मामूली बिटिया नहीं। भाषण के बाद ही पर्यावरण को धुएं से न बिगाड़ने वाली चार लाख डॉलर की कीमत वाली ‘याट’ (पाल नौका) पर समुद्र प्रदूषण के प्रति ‘जन जागरण’ करने निकल गई है! इसे कहते हैं ‘होनहार बिरबान के होत चीकने पात!’ मन किया कि हम भी ताली मारें और कहें कि बिटिया एक बार भारत आकर हमें भी धिक्कार जाओे ताकि हम भी कुछ परवाह करने लगें। यों हे बिटिया थनबर्ग! जिस तरह से तुम पर्यावरण बचाने में लगी हो और नई खबरों के अनुसार जिसके कारण तुम एक ‘वैकल्पिक नोबेल’ के योग्य हो चली हो, अपना यहां के दो अंग्रेजी खबर चैनल तुम्हारी ही तरह दिन-रात पर्यावरण की चिंता में दुबले होते हुए नजर आते हैं।
एक स्वच्छ पानी के लिए समर्पित है, तो दूसरा ‘स्वस्थ भारत, स्वच्छ भारत’ बनाने में लगा रहता है, और हर रोज किसी हीरो, हीरोइन, सेलीब्रिटी या किसी सोशलाइट के जरिए समझाता रहता है कि पानी को बचाओ। बचाओ। ऐसे हर प्रोग्राम के साथ-साथ फर्श साफ करने वाले केमीकल्स की एक ब्रांड बोतल भी दिखती रहती है, जो इशारे से कहती रहती है कि इस अभियान की प्रायोजक उसकी कंपनी है। आप इसे खरीदो, एक चम्मच पानी में डालो, फर्श साफ करो, बाथ रूम साफ करो, गंदगी दूर करो तभी तो स्वच्छ और स्वस्थ रहोगे। इसी तरह दूसरा चैनल भी हमारे शरीर के कीटाणुओं को मारने वाली दवाई की एक बोतल को दिखा-दिखाकर समझाता रहता है कि इसे खरीदो, पानी में मिलाकर इस्तेमाल करो और कीटाणुओं से अपने को मुक्त रखो और इस तरह सदा स्वस्थ-सुखी रहो।
इसलिए हे बिटिया! जो कीटाणुनाशक केमीकल्स रोज पानी को जहर बनाते रहते हैं, ये भी कई बार बच्चों से ऐसी-ऐसी क्रांतिकारी बातें कहलवाते रहते हैं कि जैसी तुमने कीं। कभी इसका जवाब भी देना बिटिया कि पर्यावरण बिगाड़ने वाले ही पर्यावरण की सबसे अधिक चिंता कर रहे हैं। जिन केमीकल्स ने पर्यावरण को नष्ट किया वही पर्यावरण के बचाने के नाम पर बेचते हैं जहरीले केमीकल्स! ये भी तरह-तरह के प्रदूषण को दोषी ठहराते रहते हैं। कुछ पर्यावरणविद् तुम्हारी तरह ही हम सबको फटकारते रहते हैं, लेकिन किसी केमीकल कंपनी, पेट्रोल या डीजल कंपनी या किसी कार कंपनी को कोई नहीं फटकारता! कारण यह कि वही टीवी के मालिक हैं! वही दर्द देते हैं, और वही दवा भी देते हैं!
ऐसा है ‘पयार्वरण चिंतन’!
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