अर्थव्यवस्था : निर्यात मोर्चे पर नया मंजर

Last Updated 27 Sep 2019 04:59:36 AM IST

यकीनन इस समय भारत के घटते निर्यात के परिदृश्य के बीच निर्यात बढ़ने की नई संभावनाएं दिख रही हैं। इसका बड़ा कारण अमेरिका और चीन के बीच ट्रेडवॉर गहराने की बढ़ती आशंका है।


अर्थव्यवस्था : निर्यात मोर्चे पर नया मंजर

ट्रेड वॉर बढ़ने से अमेरिका और चीन, दोनों देशों में भारतीय निर्यात बढ़ाने के नये मौके होंगे।
हाल में 24 सितम्बर को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भाषण में कहा जाना कि 2001 में चीन के विश्व व्यापार संगठन में दाखिल होने के बाद अमेरिका के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को भारी हानि उठानी पड़ी है, और चीन ने अमेरिका की 60 हजार फैक्ट्रियों को नुकसान पहुंचाया है। ऐसे में अब अमेरिका वैश्विकरण के बजाय राष्ट्रवाद को अपनाएगा और देशी उद्योगों को संरक्षण देगा। इससे अमेरिका के आयातों में भारी कमी होगी। इसके अलावा, भारत से निर्यात बढ़ने का दूसरा बड़ा कारण संयुक्त राष्ट्र महासभा के इतर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विभिन्न कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हुए भारत की कारोबार अनुकूलता को दुनिया के समक्ष प्रभावशाली ढंग से पेश किया। साथ ही, अमेरिका के ह्यूस्टन में हाउडी मोदी का सफल आयोजन और दुनिया की बड़ी कंपनियों के सीईओ के साथ मोदी की कारोबार वार्ता से भी निर्यात की नई संभावनाएं बढ़ी हैं। उल्लेखनीय है कि सरकार घटते निर्यात को बढ़ाने के लिए आगे बढ़ रही है। नये निर्यात प्रोत्साहनों और नई राजनीति के साथ पिछले दिनों 16 सितम्बर को वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि सरकार वित्त वर्ष 2019-20 में निर्यात ऋण आवंटन 30 फीसदी बढ़ाएगी। निर्यातक ऋण का दायरा बढ़ाया जाएगा।

जांच नियमों को आसान बनाया जाएगा और निर्यातकों की प्रोफाइल को दुरुस्त किया जाएगा। साथ ही, निर्यात दावों का त्वरित निपटान किया जाएगा। इसी तरह 14 सितम्बर को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने निर्यात क्षेत्र में तेजी लाने के लिए कई अहम घोषणाएं कीं। निर्यात बढ़ाने के लिए 50 हजार करोड़ रु पये का फंड बनाया गया है। निर्यातकों के लिए ऋण प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के लिए ऋण आवंटन के संशोधित नियम सुनिश्चित किए गए हैं। निर्यातकों को ऋण के लिए पीएसएल नियमों की समीक्षा की जाएगी। मुक्त व्यापार समझौता उपयोग मिशन की भी स्थापना होगी। इसका मकसद निर्यातकों को उन देशों से शुल्क छूट दिलाने में मदद करना है, जिनके साथ भारत ने संधि की है। निर्यात ऋण गारंटी निगम, निर्यात ऋण बीमा योजना का दायरा बढ़ाया जाएगा। इस पहल की सालाना लागत 1,700 करोड़ आएगी। निर्यात को बढ़ावा देने के लिए अंतर-मंत्रालयी कार्य समूह बनाया जाएगा।
निश्चित रूप से वित्त मंत्री सीतारमण ने देश के घटते निर्यात को थामने और निर्यात की बेहतरी के लिए जिस नई प्रोत्साहन योजना का ऐलान किया है, वह विश्व व्यापार संगठन के नियमों के अनुकूल है। एक ऐसे समय में जब चालू वित्त वर्ष 2019-20 में  निर्यात का ग्राफ तेजी से घट रहा है, तब निर्यात बढ़ाने के नये ऐलान लाभप्रद होंगे। निर्यात का ग्राफ बता रहा है कि अगस्त, 2018 के मुकाबले पिछले माह अगस्त, 2019 में निर्यात करीब 6 प्रतिशत घटा है।
इसमें कोई दोमत नहीं है कि मोदी सरकार द्वारा देश की अर्थव्यवस्था को वर्ष 2024-25 तक पांच हजार अरब डॉलर तक पहुंचाने का जो लक्ष्य रखा गया है, उसमें देश में तेजी से निर्यात बढ़ने की अहम भूमिका संजोई गई है। पिछले वित्त वर्ष 2018-19 में भारत के निर्यात नौ फीसदी बढ़कर 331 अरब डॉलर पर पहुंच गए, यद्यपि निर्यात का यह रिकॉर्ड स्तर है लेकिन निर्यात के 350 अरब डॉलर के लक्ष्य से कम ही है। स्थिति यह है कि अब घटता निर्यात देश की विकास दर को प्रभावित कर रहा है। निस्संदेह वैश्विक सुस्ती के वर्तमान दौर में भी निर्यात की नई मदों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। हाल में देश के प्रमुख उद्योग संगठन भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) द्वारा प्रकाशित शोध पत्र ‘इंडियन एक्सपोर्ट-द नेक्स्ट ट्रैजेक्टरी मैपिंग प्रोडक्ट्स एंड डेस्टिनेशंस’ में ऐसी 37 प्रमुख वस्तुओं को चिह्नित किया गया है, जिनमें भारत से निर्यात बढ़ाने की क्षमता बहुत अधिक है। इनमें महिलाओं के परिधान, दवाएं, फर्नीचर, साइकिल, हाइड्रोकार्बन जैसी वस्तुएं प्रमुख हैं। ये ऐसी वस्तुएं हैं, जिनके निर्यात में भारत प्रतिस्पर्धा में अच्छी स्थिति में है, और इनका निर्यात प्रमुख आयातक देशों अमेरिका और चीन आदि को किया जाता है। शोध पत्र में कहा गया है कि इन मदों पर नये सिरे से फोकस करके भारत अपने घटते निर्यात को बढ़ा सकेगा और साथ ही वैश्विक निर्यात स्थिति में सुधार कर सकेगा। उल्लेखनीय है कि कुल वैश्विक आयात में भारत के निर्यात की हिस्सेदारी केवल 17,958 अरब डॉलर है अर्थात 1.65 प्रतिशत है। देश में निर्यातकों को सस्ती दरों पर और समय पर कर्ज दिलाने की व्यवस्था सुनिश्चित की जानी होगी। चूंकि पिछले कुछ सालों में निर्यात कर्ज का हिस्सा कम हुआ है, ऐसे में किफायती दरों पर कर्ज सुनिश्चित किया जाना जरूरी है। सरकार द्वारा अन्य देशों की गैर-शुल्कीय बाधाएं, मुद्रा का उतार-चढ़ाव, सीमा शुल्क अधिकारियों से निपटने में मुश्किल और सेवा कर जैसे निर्यात को प्रभावित करने वाले कई मुद्दों से निपटने की रणनीति अपनाया जाना जरूरी है। कर प्रक्रियाओं को सहज बनाना आवश्यक है। यह भी जरूरी है कि सरकार द्वारा विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) में इकाइयों के कर संबंधी लाभ को हटाने की समय सीमा बढ़ाई जाए। सरकार ने घोषणा की थी कि आयकर संबंधी लाभ सेज की केवल उन्हीं नई इकाइयों को मिलेंगे जो 31 मार्च, 2020 से पहले कार्य करना शुरू कर देंगी। आयात एवं निर्यात खेपों के जल्द से जल्दी मंजूरी के लिए मानक परिचालन प्रकिया लागू की जानी चाहिए।
हम आशा करें कि सरकार 14 सितम्बर को घोषित किए गए नये निर्यात प्रोत्साहनों के साथ-साथ निर्यातकों के लिए ढांचागत सुविधाओं पर भी ध्यान देगी। निर्यात क्षेत्र में वैश्विक मानकों को अपनाया जाएगा। निर्यात मंजूरी संबंधी कामों को डिजिटल किया जाएगा। वैश्विक बंदरगाहों पर जिस तरह जहाज आधे दिन और ट्रक आधे घंटे में हट जाते हैं, वैसा ही लक्ष्य हमें भारतीय बंदरगाहों के लिए भी सुनिश्चित करना होगा। इससे निर्यात प्रतिस्पर्धा में बड़ा सुधार आएगा। इससे निर्यात बाजार में तेजी से आगे बढ़ने और वर्ष 2020 तक वैश्विक निर्यात में भारत का हिस्सा दो फीसदी तक पहुंचाने के लिए निर्यात की नई संभावनाओं को साकार करने में यकीनन मदद मिलेगी।

जयंतीलाल भंडारी


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment