पहली ‘फेक न्यूज‘

Last Updated 22 Sep 2019 05:45:37 AM IST

हम तो सोचे बैठे थे कि अब तक ‘फेक न्यूज’ (झूठी खबर) की फैकटरीज बंद हो गई होंगी और ‘नेक न्यूज’ (सच्ची खबर) अपनी जगह लेने लगी होगी लेकिन जब से फेसबुक बॉस जुकरबर्ग जी का नया बयान पढ़ा है कि वह फिर से कुछ ऐसा कुछ करने जा रहे हैं।


पहली ‘फेक न्यूज‘

ताकि ‘फेक न्यूज’ की और भी पक्के तरीके से छंटनी कर दी जाए तो बेहतर होगा वरना फेसबुक की साख पर बटटा लगाता रहेगा। लेकिन‘फेक न्यूज’ बनाने वाले उनके भी बाप निकले और वह रुक न सकी और अब तक आती रही। इसीलिए तो उनको फिर से कहना पड़ा कि इस बार वे कुछ ऐसी एडवांस तकनीक और तरकीब भिड़ाएंगे ताकि वह लोगों को फेक न्यूज तुरंत पकड़ में आ सकें।
‘फेक न्यूज’ है ही ऐसी लीलाधरी वह रोकने पर भी नहीं रुकी। फेसबुक के अलावा वह व्हाट्सएप पर  भी छाई रही। फेसबुक वाले तो बीस-तीस करोड़ ही रहे, जबकि व्हाट्सएप वाले फेसबुक से कहीं अधिक रहे और जब व्हाट्सएप पर समूहों के बीच चलाई और आगे बढ़ाई गई कई फेक न्यूजों और अफवाहों की वजह से ‘लिंचिंगें’ हो गई और कई जगह दंगे हो गए तब सरकार जगी और उसने चाहा कि व्हाट्सएप की हाजिरी लगाई और चाहा कि नकली खबर चलाने बढ़ाने वाले समस्या का समाधन करे।व्हाट्सएप वालों ने भी अपनी भूमिका निभाने की कोशिश की। सरकार से मिले तरीकों पर विचार किया और पाया कि ‘फेक न्यूज’ के खतरों से जनता को अवगत कराया जाना चाहिए कि ताकि वह उसकी शिकार न बने और किसी खबर को बिना सोचे आगे न बढ़ाए। इस बाबत अखबारों में विज्ञापन भी दिए गए। व्हाट्सएप ने इसके बाद सक्रिय ग्रुपों के सदस्यों की संख्या पांच तक सीमित कर दी ताकि ‘फेक न्यूज’ का स्रोत जल्दी ही पकड़ में आ जाए।  लेकिन ‘फेक न्यूज’ थी नहीं मरी।

वह अब भी बहुतों को तंग करती रहती है इसीलिए तो जुकरबर्ग ने कहा है कि इस बार वे कुछ और बेहतर तकनीक लगाएंगे ताकि ‘फेक न्यूज’ की पहले ही छंटनी हो जाए। हमें उम्मीद करनी चाहिए कि जिनने फेसबुक बनाया है, जिन्होंने व्हाट्सएप वाला ‘एप’ बनाया है, वे उसका उपचार अवश्य करेंगे। जिन्होंने दर्द दिया है वही दवा देंगे!  हमें भरोसा है कि एक दिन ऐसा आएगा जब ‘फेक न्यूज’ यानी मिथ्या खबर बंद हो जाएगी और हमें हमेशा सच्ची खबर ही मिला करेगी। यानी कि एक दिन ‘सतयुग’ अवश्य आएगा! हर चैनल सच बताएगा। सच के अलावा, कुछ न बताएगा, लेकिन न जाने क्यों इस बार मुझ जैसी संशयालु आत्मा को यकीन नहीं हो रहा कि फेसबुक वाले या व्हाटसएप वाले ‘फेक न्यूज’ को सचमुच बंद कर पाएंगे। कारण यह है ‘फेक न्यूज’ का मनोविज्ञान यानी खबर के मसालाशास्त्र! यह एक पूरा उद्योग है। इस ‘फेक न्यूज’ इंडस्ट्री’ में बहुत से ‘पेड वर्कर’ काम करते हैं। कारण कि हर ‘सच्ची न्यूज’ की अपनी सीमा हेाती है। पहली बार खुलने के बाद वह बोर करने लगती है और ज्यों ही यह बोरियत शुरू होती है, हमारा ‘लंपट’  और ‘शैतान’ बना  दिया गया दिमाग, अपने फायदे वाला मसाला लगाकर उसका नया ‘मेक अप’ कर, उसे प्रमाणिक जैसा बनाकर आनंद लेता है। और जिन दिनों में ‘हेट’ यानी ‘घृणा’ ही एक मात्र स्थायी भाव रहने दिया जा रहा हो या कोध्र या बैर के भाव को परवान चढ़ाया जा रहा हो, उन दिनों हम कोई खबर तब तक ‘खबर’ नहीं लगती जब तक कि वह हमें किसी के खिलाफ उत्तेजित न करे, हममें बदला लेने के भाव को न जगाए! इसका मतलब साफ है कि हमारे समाज में ‘फेक न्यूज’ कोई अपवाद नहीं एक ‘राजनीतिक प्रोडक्ट’ और ‘राजनीतिक विचारधारात्मक अस्त्र’ है। जिसे बहुत से दिमाग योजना करके बनाते हैं चढ़ाते हैं और बहुत लोगों के दिमागों को संचालित करते हैं।
ऐसे ही लोग आए दिन एक-न-एक फेक न्यूज को असली की तरह पेश करते रहते हैं ताकि लोग आपस में निपटते रहें और यथास्थिति बनी रहे। और अपने यहां तो पहली ‘फेक न्यूज’ महाभारत के युद्ध के बीच  बनाई गई थी, जब युधिष्ठिर ने द्रोणाचार्य को खबर दी थी कि ‘अत्थामा हतो। नरो वा कुंजरो’।। द्रोणाचार्य को ‘अत्थामा हतो’ तो सुनाई पड़ा ‘नरो वा कुंजरो’ धीमे स्वर में कहा गया इसलिए सुनाई न पड़ा और अपने ‘प्रण’ की रक्षा के लिए द्रोणाचार्य ने हथियार रख दिए! इसलिए भी मेरा मानना  है कि फेक न्यूज तो हमारी कल्चर है, उसे हम कैसे खत्म होने देंगे! हम ‘फेक न्यूज’ को एन्जॉय करते हैं और उसमें मजा लेते हैं। जिस समाज में अपने खबरिया चैनल दिन भर ‘नंदी’ को दूध पीते दिखाता रहे और साथ में यह भी बताता चले कि यह ‘आस्था’ का मामला है ‘विज्ञान’ का नहीं, बताइए वहां ‘फेक न्यूज’ कैसे रोकी जा सकती है?

सुधीश पचौरी


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