पी.चिदंबरम : कांग्रेस की असली परीक्षा

Last Updated 04 Sep 2019 05:59:01 AM IST

शीर्ष र्कांग्रेस नेता एवं महत्त्वपूर्ण सीसीएस (कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्यूरिटी) मंत्रालयों-गृह तथा वित्त मंत्रालयों-की कमान संभाल चुके पी. चिदंबरम की गिरफ्तारी 134 साल पुरानी कांग्रेस, जो 2014 के आम चुनाव में कड़ी शिकस्त के बाद से अस्तित्व के सर्वाधिक गंभीर संकट का सामना कर रही है और जिसे 2019 के आम चुनाव के नतीजों से कड़ा झटका लगा है और इस चुनाव में 2014 में मिलीं अपनी सीटों की संख्या 44 में मात्र 8 सीटों का इजाफा कर सकी है, के लिए अंतिम चेतावनी माना जाना चाहिए।


पी.चिदंबरम : कांग्रेस की असली परीक्षा

जिस तरह कांग्रेस उतार पर है, उससे मजाक चल पड़ा है कि कांग्रेस संसद में सादा बहुमत भी अगली सदी में ही हासिल कर सकेगी।
चिदंबरम की गिरफ्तारी गांधी परिवार-अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी, उनके पुत्र राहुल और पुत्री प्रियंका-को मोदी सरकार का कड़ा संदेश है कि उनका भी यही हश्र हो सकता है। पहली दफा है जब किसी पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री को सींखचों के पीछे पहुंचाया गया है। तेजी से बढ़ती भाजपा और तेजी से ढलान पर फिसलती कांग्रेस के बीच राजनीतिक शतरंज की बाजी में  चिदंबरम की हैसियत किसी वजीर या क्वीन से कम नहीं थी। जो लोग शतरंज का खेल जानते हैं, वे अच्छे से जानते हैं कि वजीर के गिरने से राजा का अंत भी निकट होता है। यहां मामला अनूठा है जहां राजा पहले गिर चुका है, वजीर के गिरने से भी काफी पहले जब 2019 के चुनावी नतीजों के तत्काल बाद हार से दुखी राहुल गांधी ने कांग्रेस का अध्यक्ष पद छोड़ दिया। गांधी परिवार, निर्निवाद रूप से कांग्रेस का प्रथम परिवार है और हाल के दशकों में देश का भी प्रथम परिवार रहा है, के लिए आज दीवार पर लिखी इबारत बिल्कुल साफ है। इस परिवार का वर्चस्व कांग्रेस और देश में भी मोदी-युग आरंभ होने से पहले तक ही देखने को मिलता था।

मोदी के मई, 2014 में पहली दफा प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने के बाद से ही गांधी परिवार के राजनीतिक रूप से दुर्दिन आरंभ हो गए। लेकिन अब चिदंबरम की गिरफ्तारी के बाद जैसे आग की लपटें गांधी परिवार के दरवाजे पर ही पहुंच गई हों। और ऐसा भी नहीं कि वे इससे बेखबर हों! लेकिन कांग्रेस और गांधी परिवार की समस्या यह है कि वे कुछ ज्यादा नहीं कर पा रहे। हालांकि चिदंबरम की गिरफ्तारी का गांधी परिवार ने मुखर विरोध किया है। लेकिन बीते माह सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इंवेस्टिगेशन (सीबीआई) द्वारा अपने शीर्ष नेता को गिरफ्तार किए जाने के बाद वे उन्हें अदालत से भी राहत नहीं दिला पाए हैं। सुप्रीम कोर्ट तक से राहत नहीं दिला सके हैं। वह भी तब जब चिदंबरम के वकील अदालत में जोरदार दलील दे रहे थे कि आईएनएक्स मीडिया मामले की एफआईआर में आरोपी के रूप में चिदंबरम का नाम नहीं है, मामले के आरोप पत्र की तो बात ही छोड़िए जो अभियोजन पक्ष द्वारा पेश की जानी है। आईएनएक्स मीडिया से जुड़ा घटनाक्रम चिदंबरम के खिलाफ है या  नहीं लेकिन तथ्य यह है कि भाजपा कांग्रेस के साथ करीब-करीब वैसा ही करती दिखाई दे रही है जैसा कांग्रेस ने कोई एक दशक पूर्व भाजपा के साथ किया था। 2010 में चिदंबरम जब केंद्रीय गृह मंत्री थे, तो उन्होंने अमित शाह को गिरफ्तार कराया था। अब नौ साल बाद अमित शाह केंद्रीय गृह मंत्री हैं, और उन्होंने चिदंबरम को गिरफ्तार करा दिया है। उस समय अमित शाह को तीन महीने जेल में रहना पड़ा था, जबकि चिदंबरम का अभी उस कालावधि का मात्र दसवां हिस्सा ही हिरासत में गुजरा है। इस हिसाब से देखें तो राजनीतिक प्रतिशोध के इस दौर में कांग्रेस के दिग्गज वकील उन्हें अदालतों से बरी नहीं करा पाते हैं, तो चिदंबरम को कम से कम तीन महीने तो हिरासत में रहना ही चाहिए।
विडंबना देखिए कि चिदंबरम को जिस हवालात (सीबीआई की इमारत में स्थित इसे जांच एजेंसी का ‘गेस्ट हाउस’ बताए जाने पर सुखाभास होता है) में रखा गया है, उसके उद्घाटन अवसर पर  चिदंबरम स्वयं केंद्रीय गृह मंत्री के रूप में मौजूद थे। उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने किया था। लेकिन चिदंबरम सीबीआई गेस्ट हाउस से तिहाड़ जेल भेजे जाने की स्थिति को हर हाल में टालना चाहते हैं। उनके वकीलों ने पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई है कि उनके मुवक्किल अभी कुछ और दिन सीबीआई की हिरासत में रहना चाहते हैं। किसी अभियुक्त की ओर से रखा गया यह अभूतपूर्व आग्रह है।   
सीबीआई की टीमों द्वारा चिदंबरम के आवास पर छापेमारी और कांग्रेस मुख्यालय में मीडिया को उनके द्वारा संबोधित करने के बाद कुछ सीबीआई कर्मियों द्वारा राज्य सभा सांसद के दिल्ली स्थित आवास की दीवारों पर चढ़ जाना अपने आप में काफी कुछ कहता है। सरकार की मंशा और इरादे किसी से छिपे नहीं रह गए हैं। सरकार को इस तथ्य से कोई मतलब नहीं था कि उनके खिलाफ कोई मामला नहीं है। सीबीआई ने तमाम नाटक किया। इस तथ्य के बावजूद कि वह किसी घोषित भगोड़े या जघण्य अपराध के आरोपी को नहीं पकड़ने वाली थी। चिदंबरम के खिलाफ जो आरोप हैं, वे मनमोहन सिंह सरकार में उनके वित्त मंत्री रहने के समय से जुड़े हैं। सीबीआई ने मई, 2017 केस दर्ज किया। आरोप लगाया गया कि विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफआईपीबी) की आईएनएक्स ग्रुप द्वारा 2007 में विदेश से 305 करोड़ रुपये का धन प्राप्त करने के लिए दी गई मंजूरी में अनियमितताएं बरती गई। उसके अगले साल 2018 में प्रवर्तन निदेशालय ने भी धन शोधन का मामला दर्ज कर लिया। चिदंबरम के बुरे दिन उस समय शुरू शुरू हुए जब दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस सुनील गौड़ ने अपनी सेवानिवृत्ति से एक दिन पहले फैसला दिया कि चिदंबरम को ‘हिरासत में लेकर पूछताछ किया जाना’ जरूरी है, क्योंकि वह इस साजिश में ‘कर्ता-धर्ता’ थे। जस्टिस गौड़ ने संसद से भी सिफारिश की कि गिरफ्तारी से पहले जमानत संबंधी प्रावधानों को निष्प्रभावी करने के लिए कानून में संशोधन किया जाए और इस जैसे आर्थिक अपराधियों के हाई प्रोफाइल मामलों में तो जमानत संबंधी कानून लागू ही न हो।
हैरत ही तो है कि न्यायाधीश अपना आदेश पारित करते समय भूल गए कि जमानत प्रत्येक नागरिक का बुनियादी अधिकार है। अपवादस्वरूप मामलों में ही जमानत देने से इनकार किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी चिदंबरम के मामले में संज्ञान नहीं लिया। बहरहाल, आने वाले दिनों में देखा जाना है कि कोर्ट चिदंबरम के मामले में क्या फैसला देता है। यह भी जरूरी है कि कानून पूरी निष्पक्षता और पारदर्शी तरीके से अपना काम करे। किसी अपराध के बारे में फैसला करना अदालत का अधिकार है। यदि चिदंबरम भ्रष्टाचार के दोषी हैं, तो उनके राजनीतिक कद को एक तरफ रखते हुए फैसला दिया जाना चाहिए। लेकिन सरकार और अदालतों का दायित्व है कि राजनीतिक बदले से कुछ न हो।

राजीव शर्मा


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