सामयिक : देश का ध्यान रखे कांग्रेस

Last Updated 30 Aug 2019 05:11:29 AM IST

यह अच्छी बात है कि पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने पिछले बयान को सुधारते हुए कहा कि ‘जम्मू-कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है और पाकिस्तान या कोई दूसरा देश इसमें दखल नहीं दे सकता।'


सामयिक : देश का ध्यान रखे कांग्रेस

'राहुल ने यह कहकर अपनी स्थिति और भी साफ कर दी कि ‘कश्मीर में हिंसा पाकिस्तान फैला रहा है न कि भारत।’    राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार राहुल कांग्रेस को बिखर जाने से रोकना चाहते हैं, तो उन्हें ऐसे नाजुक अवसर पर ऐसे बयान देने चाहिए।
अब तक कांग्रेस के अधिकतर नेता पाकिस्तान बनाम हिंदुस्तान के मुद्दों पर सिर्फ  इसी बात को ध्यान में रखकर बयान देते रहे हैं ताकि उससे इस देश की अल्पसंख्यक आबादी को अच्छा लगे। यदि कांग्रेस सिर्फ  मुसलमानों को खुश रखने का ही यत्न करती रहेगी तो बाकी वोट उससे हटते चले जाएंगे। कश्मीर समस्या को लेकर कांग्रेस को यह बात समझ लेनी होगी कि वहां के अलगाववादी तत्व, जिन्हें पाक से हर तरह की मदद मिल रही है, स्वायत्तता के लिए नहीं बल्कि जेहाद के लिए लड़ रहे हैं। यानी हथियारों के बल पर कश्मीर को हमसे छीन लेना चाहते हैं। जनता इस बात को समझ रही है। इसलिए मोदी सरकार के साथ है, जिस तरह इस देश की अधिकांश जनता 1965 और 1971 के युद्ध के समय केंद्र की कांग्रेस सरकार के साथ थी। चूंकि तब अधिकतर जनता सरकार के साथ थी, इसलिए तब के प्रतिपक्षी दलों ने भी केंद्र की कांग्रेस सरकार का साथ दिया। इस बात को आज के प्रतिपक्ष खासकर कांग्रेस को समझने की जरूरत है। आखिर किसी अगले चुनाव में अल्पसंख्यक वोट उन स्थानों में कांग्रेस को मिलेंगे ही, जहां कांग्रेस से सीधा मुकाबला भाजपा या राजग का  होगा। 1965 और 1971 की कहानी याद कर लेना प्रासंगिक होगा। 1965 के भारत-पाक युद्ध के समय लगभग पूरा प्रतिपक्ष शास्त्री सरकार और सेना के साथ था।

नतीजतन, उस समय की सरकारी पार्टी कांग्रेस को 1967 के आम चुनाव में उस युद्ध में शानदार विजय का भी कोई चुनावी लाभ नहीं मिल सका क्योंकि युद्ध में जीत का श्रेय सिर्फ  कांग्रेस को नहीं मिला। प्रतिपक्ष ने अपनी दूरदृष्टि से ऐसा होने नहीं दिया। नतीजतन, 1967 की लोक सभा में कांग्रेस की सीटें 1962 के मुकाबले घट गई। साथ ही, नौ राज्यों में भी गैर कांग्रेस दलों की सरकारें बन गई। 1967 तक लोक सभा और विधानसभाओं के चुनाव एक ही साथ होते थे।
1971 में कांग्रेस की सरकार ने बांग्लादेश युद्ध में अभूतपूर्व विजय हासिल की। पाकिस्तान दो टुकड़ों में बंट गया तो उसका श्रेय भी काफी हद तक इंदिरा गांधी, उनकी सरकार और पार्टी को ही मिला। हालांकि पूरा श्रेय नहीं मिला, जिस तरह बालाकोट एयर स्ट्राइक का पूरा श्रेय मोदी सरकार को मिल गया। बालाकोट पर कांग्रेस लगातार शंका पैदा करती रही। ऐसा बयान दे रही थी जिससे पाक को अच्छा लगे पर 1971 में तब का प्रौढ़ प्रतिपक्ष लगभग पूरी तरह इंदिरा गांधी के साथ था। नतीजतन उस युद्ध का भी कांग्रेस को आधा-अधूरा चुनावी लाभ ही मिल सका।
1972 के विधानसभा चुनाव में तो कांग्रेस जरूर जीत गई। पर, अगले लोक सभा चुनाव के समय तक बांग्लादेश युद्ध में विजय के यश का नामोनिशान तक नहीं रहा था। दूसरा ही मुद्दा 1977 के चुनाव में हावी हो गया। कल्पना कीजिए कि बांग्लादेश युद्ध के समय गैर-कांग्रेसी दलों ने वही भूमिका निभाई होती जैसी भूमिका आज कांग्रेस निभा रही है तो क्या होता? इंदिरा जी ने उसका चुनावी लाभ कम से कम एक हद तक तो उठा ही लिया होता। क्या प्रतिपक्ष को जनता की नजरों में गिरा देने का अवसर इंदिरा गांधी को नहीं मिल गया होता? वैसे 1977 में इमरजेंसी का मुद्दा बड़ा प्रभावकारी था। इन ऐतिहासिक घटनाओं से नहीं सीखकर आज की अप्रौढ़ कांग्रेस ने पुलवामा-बालाकोट घटना में ऐसी विवादास्पद भूमिका निभाई, जिसका चुनावी लाभ 2019 के लोस चुनाव में राजग को मिल गया। पाक प्रधानमंत्री इमरान खान ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया कि भारत ने बालाकोट में स्ट्राइक किया था। पुलवामा हमले के 13वें दिन भारतीय वायुसेना ने 26 फरवरी, 2019 को जब सीमा से 80 किमी. अंदर जाकर एयर स्ट्राइक किया तो पाक ने उस हमले की खबर को ही गलत बता दिया। पर उसने संवाददाताओं को घटनास्थल पर जाने से रोक दिया था। वहां आतंकी ठिकाना तबाह हो गया था और लगभग 350 आतंकी ढेर हो गए थे। वह न सिर्फ पाकिस्तान पर हमला था, बल्कि उस हमले से इस देश के प्रतिपक्ष ने अपना विवेक खो दिया। उसे लगा कि अब तो हम चुनाव में गए। नतीजतन वे सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगने लगे। उस सफल सर्जिकल स्ट्राइक पर प्रतिपक्षी नेताओं ने जो कुछ कहा, उसका चुनावी लाभ राजग को 2019 के लोक सभा चुनाव में हुआ।
गत मार्च में कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि ओसामा बिन लादेन के खिलाफ ऑपरेशन की तरह बालाकोट एयर स्ट्राइक के सबूत मिलने  चाहिए। उन्होंने यह भी जोड़ा कि पुलवामा हमला दुर्घटना है। पुलवामा दुर्घटना के बाद हमारी एयरस्ट्राइक पर कुछ विदेशी मीडिया को संदेह है। कांग्रेस नेता हरि प्रसाद ने कहा कि पुलवामा हमला मोदी-इमरान में मैच फिक्सिंग था। अब इतने पर राजग को चुनावी लाभ नहीं मिलता तो कब मिलता? जब पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर के मामले पर संयुक्त राष्ट्र के समक्ष अपनी याचिका में राहुल के बयान का हवाला दे दिया तो कांग्रेस को लग गया कि इसका नुकसान कांग्रेस को होकर रहेगा। नतीजतन, राहुल पिछले बयान से पलट गए।
राहुल गांधी को एक और काम करना होगा। अपनी पार्टी के अंदर वैसे नेताओं को मर्यादित करना होगा, जो देश के बदले अपने वोट बैंक को ध्यान में रखकर बयान देते रहते हैं। ऐसे ही कारनामों से कांग्रेस कमजोर होती जा रही है। कई नेता कांग्रेस को डूबता जहाज समझकर छोड़ जाने का बहाना ढूंढ़ रहे हैं, जबकि वे जो कुछ हैं, कांग्रेस के बूते ही बने हैं। कोई कह रहा है कि प्रधानमंत्री की हर बात के लिए आलोचना सही नहीं तो कोई कुछ अन्य बातें बोल रहा है। इस विषम परिस्थिति में जबकि इस देश को एक बार फिर युद्ध के मुहाने पर खड़ा कर दिया गया है, प्रतिपक्ष को भी संभलकर अपनी भूमिका निभानी है। वैसी ही जैसी 1965 और 1971 के युद्धों के समय तब की अधिकतर गैर-कांग्रेसी पार्टयिों ने निभाई थी।

सुरेंद्र किशोर


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