मौद्रिक नीति : नीतिगत दर में कटौती की आस
आगामी मौद्रिक नीति समीक्षा ऐसे समय में की जा रही है, जब अमेरिका 250 अरब डॉलर का शुल्क चीनी उत्पादों पर लगा चुका है।
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अमेरिका ने यह भी घोषणा की है कि 300 अरब डॉलर के चीनी उत्पादों के निर्यात पर 10 फीसद कर लगाया जाएगा। प्रत्युतर में चीन ने भी अमेरिकी उत्पादों पर 110 अरब डॉलर का शुल्क लगाया है। बहरहाल, दोनों देशों के बीच चल रहे कारोबारी जंग से वैश्विक कारोबार पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। इधर,भारत में ऑटोमोबाइल क्षेत्र में सुस्ती का माहौल बना हुआ है। एनबीएफसी अभी भी नकदी की समस्या से रूबरू हैं। इस साल मॉनसून में अपेक्षित बारिश नहीं हुई है। कर संग्रह में भी गिरावट दृष्टिगोचर हो रहा है।
अमेरिका ने ब्याज दरों में 0.25 फीसद की कटौती की है और आगामी महीनों में ब्याज दरों में और भी कटौती के संकेत दिए हैं।
गौरतलब है कि वित्तीय और कमोडिटी बाजारों पर फेड रेट में कटौती का व्यापक असर पड़ता है। बाकी देश भी इससे प्रभावित होते हैं। वर्तमान में, सभी प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्था नीतिगत दरों में कटौती कर रही हैं। हालांकि, थाईलैंड और मैक्सिको मामले में अपवाद हैं, जिन्होंने दिसम्बर 2018 में नीतिगत दरों में 25 बीपीएस की वृद्धि की थी। हालांकि, ये दोनों देश भी आगामी मौद्रिक समीक्षा में नातिगत दरों में कटौती करेंगे की उम्मीद की जा रही है। थाईलैंड फिलहाल भयंकर सूखे का सामना कर रहा है, जबकि मैक्सिको, अमेरिका के नक्शे-कदम पर चलेगा की उम्मीद की जा रही है। ऐसे में उभरती हुई अर्थव्यवस्था वाले देश नीतिगत दरों में कटौती करेंगे, इसकी उम्मीद की जा सकती है।
लैटिन अमेरिकी देश ब्राजील, चिली, मैक्सिको, कोलंबिया और पेरू, एशियाई देशों में इंडोनेशिया एवं श्रीलंका सहित कुछ अन्य देश जिन्होंने वर्ष 2018 के अंत में नीतिगत दरों में कटौती की थी,आगामी महीनों में मौद्रिक समीक्षा में नीतिगत दरों में कटौती कर सकते हैं।
अगर वर्ष 2008 की मंदी से मौजूदा मंदी की तुलना करें तो वर्ष 2019 में बड़ी संख्या में देशों ने मौद्रिक दरों में कटौती का विकल्प चुना है। लगभग 7 प्रमुख देशों ने वर्ष 2008 में नीतिगत दरों में बढ़ोतरी की थी, लेकिन इस बार मैक्सिको और थाईलैंड के अलावा इंग्लैंड और कनाडा ने नीतिगत दरों में इजाफा किया है, लेकिन अन्य देशों ने नीतिगत दरों में कटौती का विकल्प चुना है। समग्र अग्रणी संकेतक (सीएलआई) जो 33 प्रमुख संकेतकों का समूह है, वित्त वर्ष 2020 की पहली तिमाही में वृद्धि के मामले में यथास्थिति की प्रवृत्ति दर्शाता रहा है। सीएलआई के अनुसार चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में वृद्धि प्रतिशत 45 से कम होकर 26 हो गया है। कयास यह भी लगाए जा रहे हैं कि जीडीपी वृद्धि दर वित्त वर्ष 2019 की चौथी तिमाही में 5.8 प्रतिशत से वित्त वर्ष 2020 की पहली तिमाही में ऑटोमोबाइल बिक्री में कमी, एयर ट्रैफिक मूवमेंट में मंदी, सरकारी खर्च में कमी आदि के कारण कम होकर 5.6 प्रतिशत हो जाएगी।
इस तरह चालू वित्त वर्ष में 7 प्रतिशत के विकास लक्ष्य को हासिल करना आसान नहीं होगा। वित्त वर्ष 2020 में जीडीपी वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत के स्तर पर रह सकती है, जिसे चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के आंकड़ों के आधार पर संशोधित किया जा सकता है। ऑटोमोबाइल क्षेत्र में मंदी संरचनात्मक एवं चक्रीय मुद्दा है। इस क्षेत्र में गिरावट का मुख्य कारण पूंजी की कमी के कारण एनबीएफसी द्वारा जरूरतमंदों को कम ऋण मुहैया कराना, ग्रामीण क्षेत्र में वाहन की मांग में कमी, बीमा लागत में वृद्धि, पुरानी कार बाजारों में वृद्धि आदि हैं। इसके अलावा, वर्ष 2020 से सरकार द्वारा यूरो ईधन निकासी नीति से यूरो ईधन निकासी नीति मानदंड पर स्थानांतरित करने की नीति की वजह से उपभोक्ता नये वाहन खरीदने से परहेज कर रहे हैं।
अग्रणी संकेतकों से यह भी पता चलता है कि सेवा क्षेत्र की गतिविधियों में वृद्धि स्थिर हो गई है। रेलवे माल ढुलाई वृद्धि में कमी आई है। घरेलू हवाई और रेलवे यात्री यातायात वृद्धि मई महीने में कम हुई है, जिसमें जून महीने में मामूली वृद्धि हुई, लेकिन इसे संतोषजनक नहीं कहा जा सकता है। निर्माण गतिविधियां जैसे सीमेंट व इस्पात उत्पादन वृद्धि दर भी जून महीने में धीमी रही है। बीएसई लिस्टेड कंपनियों का मार्केट कैपिटलाइजेशन भी पिछले तीन महीनों में कम हुआ है। यह मई महीने के 154.38 लाख करोड़ रुपये से घटकर 1 अगस्त 2019 को 139.87 लाख करोड़ रुपये रह गया है। मौजूदा वैश्विक और घरेलू आर्थिक पृष्ठभूमि में भारतीय रिजर्व बैंक को 7 अगस्त को होने वाली मौद्रिक समीक्षा में रेपो दर में 25 बीपीएस की कटौती करनी चाहिए ताकि बैंक आगामी महीनों में उधार दरों में कटौती करें, जिससे बाजार में मौजूद सुस्ती दूर हो सके।
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