अनु. 370 : इन क्षेत्रों में होगा असर

Last Updated 07 Aug 2019 07:19:50 AM IST

यह लेख कश्मीर में चौका देने वाले त्वरित घटनाक्रम के उपरांत उभर सकने वाले ‘भावी परिदृश्य’ को लेकर है।


अनु. 370 : इन क्षेत्रों में होगा असर

सुरक्षा बिंदुओं, पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे बाह्य कारकों, भारत की घरेलू राजनीति और केंद्र में भाजपा-नीत सरकार के समक्ष संभावित वैधानिक चुनौतियों जैसे तमाम मुद्दों पर गौर करने का प्रयास है। मोदी सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर को विशेष दरजा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित करके केंद्र के अधीन लाने संबंधी फैसलों के तत्काल दो प्रभाव पड़ते दिख रहे हैं : पहला सुरक्षा एवं खुफिया मोच्रे से तो दूसरा पाकिस्तान की संभावित प्रतिक्रिया से जुड़ा है।
देश में पहली दफा हुआ है, जब किसी राज्य को केंद्र-शासित प्रदेश बल्कि जम्मू-कश्मीर के मामले में दो केंद्र-शासित प्रदेशों में बांट दिया गया है। हालांकि 1956 में राज्यों के पुनर्गठन के बाद से इसके विपरीत रुझान चला आ रहा था। यकीनन इसका जम्मू-कश्मीर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा जो तीन दशकों से पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का दंश झेलता रहा है। जम्मू-कश्मीर के दिल्ली और पुड्डुचेरी की भांति विधानसभा वाला केंद्र-शासित प्रदेश बनने (लद्दाख चंडीगढ़ की भांति बिना विधानसभा वाला केंद्र-शासित प्रदेश होगा) का तत्काल प्रभाव तो यह होगा कि वहां सुरक्षा एवं खुफिया तंत्र में सुधार आएगा क्योंकि वह सीधे केंद्र के नियंतण्रमें होगा। केंद्र का न केवल पुलिस और खुफिया अधिकारियों की नियुक्ति में सीधा दखल होगा, बल्कि वह प्राप्त खुफिया जानकारी पर तत्काल तेजी से कार्रवाई करने में भी समर्थ होगा। पहले इस मामले में राज्य सरकार का हस्तक्षेप रहता था, जो अब नहीं होगा। फिर, खुफिया जानकारी इकट्ठे करने, विश्लेषण और कार्रवाई आदि में अनेक प्रशासनिक इकाइयों के चलते अवरोध आता था, जो अब नहीं रहेगा।

आतंकवादी-रोधी कार्रवाई अब पहले से कहीं ज्यादा प्रभावी तरीके से अंजाम दी जा सकेगी। न भूलें कि इस साल 14 फरवरी को पुलवामा में हुए आतंकी हमले की खुफिया जानकारी तत्कालीन जम्मू-कश्मीर सरकार को हमले से चार दिन पहले मिल गई थी, लेकिन उसने खुफिया ब्यूरो (आईबी) और रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) जैसी केंद्रीय एजेंसियों के साथ इसे साझा करने में विलंब कर दिया। लेकिन अब राज्य में केंद्र सरकार की अपनी आतंक-रोधी मशीनरी होने पर संभावित  मुकम्मल तैयारी का अंदाजा लगाया जा सकता है। लेकिन यह भी है कि अब किसी भी सुरक्षा संबंधी खामी से केंद्र पल्ला नहीं झाड़ सकेगा। कहना यह कि अब से केंद्र सरकार उरी या पठानकोट या पुलवामा जैसे आतंकी हमलों या उनसे भी बड़े करगिल जैसे सीमा-पार से चलाए गए अभियान की जिम्मेदारी से नहीं बच सकेगा। अब बात करते हैं पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे बाह्य कारकों की जिनके चलते मोदी सरकार को जम्मू-कश्मीर में त्वरित फैसला करना पड़ा। हालांकि महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड यहां तक कि जम्मू-कश्मीर में भी विधानसभा चुनाव महीनों दूर हैं। जम्मू-कश्मीर में असेंबली चुनाव आगामी नवम्बर के आसपास होने हैं। डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन अफगानिस्तान में अपना सैन्य अभियान समेटने की तैयारी में है।
अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को जल्द से जल्द बाहर निकालने के लिए वह तालिबान से बातचीत में तेजी लाने में जुटा है। इसके लिए पाकिस्तान का साथ चाहता है, और उसने पाकिस्तान को हाथ खोल कर आर्थिक मदद देना शुरू कर दिया है। इससे पाकिस्तान के सैन्य प्रतिष्ठान का हौसला बढ़ गया है, और वह जम्मू-कश्मीर में अपने आतंकी मंसूबे परवान चढ़ाने को तत्पर हो सकता है। हाल में जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान में बने हथियार और गोला-बारूद मिलने से अमरनाथ यात्रा तक को अधबीच रोक देना पड़ा। इससे पता चलता है कि पाकिस्तान सैन्य प्रतिष्ठान फिर से जम्मू-कश्मीर में आतंक बरपाने की तैयारी में है। अब बात करते हैं कि जम्मू-कश्मीर में भारत के फैसले पर पाकिस्तान की क्या प्रतिक्रिया हो सकती है। पहला तो पाकिस्तान पाक-अधिकृत कश्मीर में प्रशासनिक रूप से वही सब कुछ कर सकता है, जो भारत ने जम्मू-कश्मीर में किया है। पाकिस्तान में अभी चार प्रांत-पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान और खैबर पख्तुनखवा (केपी)-और तीन टेरिटरिज-इस्लामाबाद कैपिटल टेरिटरि, गिलगित-बाल्टिस्तान तथा ‘आजाद कश्मीर’-हैं। पाकिस्तान दो टेरिटरिज-गिलगित-बाल्टिस्तान और ‘आजाद कश्मीर’ को प्रांत घोषित कर दे तो हैरत में नहीं पड़िएगा।
ये दोनों अविभाजित जम्मू-कश्मीर का हिस्सा थीं। इस प्रकार वह अपने प्रांतों की संख्या बढ़ाकर छह कर सकता है। ऐसे में पहले से जटिल कश्मीर मुद्दा और जटिल हो जाएगा।  मोदी-शाह ने बड़ी चतुराई से कश्मीर में मास्टरस्ट्रोक जमाया है। जानते हुए कि देश की सबसे बड़ी और पुरानी कांग्रेस पार्टी इन दिनों अपने मुखिया के बिना है, और किसी भी सूरत उनके फैसले का प्रभावी तरीके से विरोध करने में सक्षम नहीं होगी। ऐसा सोचना गलत भी नहीं है। आप स्वयं ही 134 वर्ष पुरानी कांग्रेस में एकजुटता में कमी और परस्पर टांग खिंचाई की बानगी देख सकते हैं। आज वह बुरी तरह से बंटी हुई है। राहुल गांधी ने मंगलवार को कहा : भाजपा सरकार का जम्मू-कश्मीर संबंधी फैसला सत्ता का दुरुपयोग है, जिसका हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।’ लेकिन अनेक कांग्रेस नेताओं ने खुलकर अपनी व्यक्तिगत राय रखते हुए राहुल के कथन के विपरीत कहा है। दीपेंद्र हुड्डा ने कहा : ‘मेरी व्यक्तिगत राय है कि अनुच्छेद 370 की 21वीं सदी में कोई जरूरत नहीं है। इसे निरस्त करने से न केवल देश का भला होगा बल्कि जम्मू-कश्मीर को भी फायदा होगा।’ जनार्दन द्विवेदी ने कहा : ‘मेरा मानना है कि यह राष्ट्रीय संतुष्टि का मसला है। देश की आजादी के समय जो भूल की गई  है, उसे अब जाकर सुधारा जा सका है। भले ही देरी से लेकिन यह अच्छा फैसला है।’
कांग्रेस की सबसे ज्यादा छिछालेदर तो लोक सभा में उसके नेता अधीर रंजन चौधरी के कारण हुई। उन्होंने कहा : ‘जम्मू-कश्मीर भारत का आंतरिक मामला नहीं है क्योंकि कश्मीर तो 1948 से ही संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में है!’ कहना होगा कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में जाना निश्चित है। जैसा कि कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने संकेत भी दिया है। राज्य सभा में सोमवार को उन्होंने यह संकेत दिया। कांग्रेस को सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद होगी कि वह केंद्र के इस फैसले को खारिज कर दे। इस आधार पर कि इसके लिए संविधान द्वारा नियत प्रक्रिया का पूरी तरह से पालन नहीं किया गया है।
(लेखक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक हैं)

राजीव शर्मा


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