जम्मू-कश्मीर : बदल गया नक्शा

Last Updated 06 Aug 2019 05:37:27 AM IST

किसी ने कल्पना तक न की थी कि ऐसा हो सकता है। लेकिन ऐसा हुआ और बड़े ही नाटकीय अंदाज में हुआ। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने यह कर दिखाया।


जम्मू-कश्मीर : बदल गया नक्शा

और इस प्रकार श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 66 साल पहले जो सपना देखा था-एक संविधान, एक निशान और एक प्रधान-पूरा हो गया। यह एक या दो या तीन का नहीं, बल्कि चार ऐतिहासिक बिलों का मसला है, जो 5 अगस्त को राज्य सभा और लोक सभा में गृह मंत्री अमित शाह ने पेश किए।
इन क्रांतिकारी बिलों में पृथकतावादी व विनाशक अनुच्छेदों 35ए और 370 के खात्मे की बात थी, जम्मू-कश्मीर राज्य का दो केंद्र-शासित प्रदेशों (जम्मू कश्मीर तथा लद्दाख) के रूप में विभाजन का प्रस्ताव था और अब से जम्मू कश्मीर व लद्दाख नाम से पुकारे जाने वाले इन केंद्र-शासित प्रदेशों में आर्थिक रूप से कमजोर वगरे को 10 प्रतिशत आरक्षण की बात थी। अनुच्छेद 35ए तथा अनुच्छेद 370 ने जम्मू-कश्मीर राज्य का भारतीय गणराज्य से पृथक गणराज्य बना रखा था। पृथकतावाद और सांप्रदायिकता का वहां घिनौना रूप देखने को मिल रहा था। राज्य में महिलाओं पुरुषों के बीच अन्यायपूर्ण और अपमानजनक भेदभाव को प्रोत्साहन मिल रहा था। राज्य के नागरिकों के समक्ष शेष के बाकी नागरिकों की नागरिकता दोयम दरजे की बन गई थी। शेष के बाकी हिस्सों के नागरिकों को राज्य में कहीं भी अचल संपत्ति रखने का अधिकार नहीं था। यह सब नेहरू सरकार का करा-धरा था। जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के भारत में समग्र और समुचित विलय की मांग करने वाले एसपी मुखर्जी, बंगाल के शेर, को 23 जून, 1953 को इसके लिए अपने प्राणों की आहूति देनी पड़ी। तभी से जम्मू और लद्दाख के लोग मुखर्जी द्वारा दिखाए गए मार्ग पर ही अग्रसर थे, और राष्ट्र निर्माण की इस प्रक्रिया में उन्हें तमाम तकलीफें उठानी पड़ीं। 

जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के इतिहास में 5 अगस्त, 2019 युगांतकारी परिघटना के रूप में दर्ज हो गया है। राष्ट्र के इतिहास में भी यह तारीख ऐसे दिन के रूप में दर्ज होगी जब प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के  कुशल एवं प्रभावी नेतृत्व में उन्होंने एक वास्तविक भारत की इबारत को चरितार्थ किया।   अपने संकल्प और कार्य से साबित कर दिया कि यह अब कोई बनाना रिपब्लिक नहीं है, जहां कभी सात दशकों तक दो परिवारों की संतति ने राज किया और न ही वे जम्मू, कश्मीर और लद्दाख है, जहां एक दूसरे की मदद करते परिवारों की सत्ता के हाथों न केवल राज्य के सामाजिक-सांस्कृतिक ताने-बाने बल्कि राज्य के राजनीतिक-आर्थिक हालात को खासा नुकसान हुआ। लेकिन पांच अगस्त मात्र इसलिए ही नहीं बल्कि इसलिए भी याद रखा जाएगा कि भारत सरकार ने अधिक स्वायत्तता (अर्ध स्वतंत्रता), सेल्फ-रूल (करीब-करीब स्वतंत्रता), भारत-पाकिस्तान के संयुक्त नियंत्रण, दोहरी मुद्रा तथा कश्मीर स्थित पाकिस्तान के एजेंटों शत-प्रतिशत सफल स्ट्राइक की। इन ने इस भारतीय राज्य को भीतरी और बाहरी नुकसान पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
भारत से इसे पृथक करने की पुरजोर कोशिश की और एक खास हिस्से में आबाद लोगों में यह भाव पैदा कर दिया था कि वे एक विशेष नस्ल हैं, उन्हें इस राज्य को लूटने-खसोटने का अधिकार है। न केवल इतना बल्कि जम्मू और लद्दाख को वे अपने दो उपनिवेश मान बैठे थे, जहां के अवाम के जीवन और उसकी राजनीतिक और आर्थिक महत्त्वाकांक्षाओं का उनकी नजर में कोई मूल्य नहीं रह गया था। जहां मोदी सरकार ने राज्य को पूरी तरह से भारत में समाहित करने में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है, वहीं अन्ना द्रमुक, अकाली दल, वाईएसआर कांग्रेस, बीजद, आप (हैरत में डालते हुए), बसपा और सपा ने भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होेंने चार बिलों को प्रेरक समर्थन दिया। इससे साबित हो गया है कि पूरा देश उन लोगों के खिलाफ एकजुट हो गया जो हमेशा से कहते आए हैं कि राज्य एक विवादित क्षेत्र है, उन लोगों के खिलाफ एकजुट हो गया जो भारत के संविधान का विरोध करते रहे हैं। समूचा देश अलगाववादी अनुच्छेदों 35ए और 370 के खात्मे और करदाताओं के धन को बचाने के लिए एकजुट हो गया। कांग्रेस, द्रमुक, जदयू, टीएमसी, एनसी, पीडीपी तथा वामपंथी दलों तथा एमडीएमके ने इन ऐतिहासिक बिलों का विरोध किया, लेकिन उन्हें और उम्मीद भी नहीं थी। वे इन बिलों के विरोध में उतरे तो इसलिए कि भारत की उनकी अवधारणा तमाम खामियों से भरी पड़ी है।
मोदी सरकार द्वारा पेश बिल राज्य सभा में पारित हो गए हैं। पहले से इनके पारित होने का विश्वास था। हालांकि राज्य सभा में भाजपा के पास संख्या बल कम है। इससे स्पष्ट हो गया है  कि राष्ट्रीय मानस किस कदर राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर एकजुट है। जम्मू और लद्दाख के लोगों तथा जम्मू, लद्दाख और कश्मीर में महिलाओं और जम्मू में 1947 के बाद से ही पाकिस्तान से शरणार्थी के रूप में आकर बस जाने वाले शरणार्थियों में इनके पारित होने से भारी उत्साह है। उन्हें लगने लगा है कि उनके दुखों और संताप के दिन अब लदने वाले हैं। उनका जीवन में नया उजाला आने वाला है। नई आशाओं का संचार होने वाला है। उनकी आकांक्षाओं की पूर्ति की घड़ी आ चुकी है। वे गलत भी नहीं है। अब से जम्मू और कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में पुकारा जाएगा। उस पर सीधे नई दिल्ली का नियंत्रण होगा यानी ये केंद्रशासित प्रदेश सीधे नई दिल्ली से शासित होंगे। बेशक, वहां मुख्यमंत्री होगा, लेकिन शासन भारतीय संविधान के तहत चलेगा न कि जम्मू-कश्मीर के पृथक संविधान के तहत।
पाकिस्तान से पहुंचे शरणार्थियों को अनुच्छेद 35 एक और 370 के चलते नागरिकता देने से इनकार कर दिया गया था, लेकिन वे अब से राज्य के बाकायदा नागरिक बन जाएंगे। चूंकि अब अनुच्छेद 35ए का वजूद नहीं रहा। इस अनुच्छेद के चलते कश्मीरी नेतृत्व को वीटो जैसी ताकत मिली हुई थी, जिससे कश्मीरी-वर्चस्व और घाटी-केंद्रित नेतृत्व को हमेशा लगा कि राज्य में किसी व्यक्ति या व्यक्ति-समूह को नागरिकता देना या नहीं देना उनके अधिकार में है। अब राज्य की उन बेटियों को भी राज्य में अपनी पैतृक संपत्ति पर अधिकार होगा जिनने राज्य से इतर किसी व्यक्ति से विवाह किया है। प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने पांच अगस्त को एक तरह का इतिहास रच दिया है। लेकिन उन्हें दो और बातें करनी होंगी। पहली, जम्मू को कश्मीर से पृथक करके उसे राज्य का दरजा दें और इसे उन सात लाख कश्मीरी हिंदुओं का घर बनाएं जिन्हें राज्य से पलायन करना पड़ा था।

प्रो. हरिओम


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