कर्नाटक : असल चुनौती अब

Last Updated 31 Jul 2019 05:49:37 AM IST

कर्नाटक में क्या बीएस येदियुरप्पा (बीएसवाई) सरकार सुरक्षित है? बेशक नहीं। बीएसवाई की वास्तविक चुनौती तो अब शुरू हुई है क्योंकि उन्हें आठ और विधायक अपने पाले में लाने हैं।


कर्नाटक : असल चुनौती अब

बागी विधायकों को देखना है क्योंकि कांग्रेस-जदस गठजोड़ भाजपा पर गिद्ध की भांति झपट्टा मारने को नजरें गड़ाए हुए है ताकि अपनी पीड़ाकारी पराजय से मिले घावों को सहला सकें। कहना होगा कि कर्नाटक के नये मुख्यमंत्री बुकानाकेरे सिद्धलिंगप्पा येदियुरप्पा या बीएसवाई, जैसा कि उन्हें राज्य में पुकारा जाता है, के लिए यह सही मायने में इन दिनों असली चुनौती दरपेश है। अमित शाह के नेतृत्व में उच्च कमान असमंजस में था, नहीं चाहता था कि येदियुरप्पा विश्वास मत हासिल करने को दबाव बनाएं। कारण था कि संख्या बल के मामले में भाजपा की स्थिति कोई सुखद नहीं है। विश्वास मत के दौरान बागी अठारह विधायकों को लेकर भी खासा संशय था।
जगदीश शेट्टार और अरविंद लिंबावल्ली के नेतृत्व में दो दिनों के भीतर अमित शाह से राज्य के भाजपा नेता तीन से ज्यादा बार मिले ताकि  उन्हें आस्त कर सकें कि भाजपा के पास विश्वास मत जीतने के लिए पर्याप्त अवसर है। मगर अमित शाह राज्य के भाजपा नेताओं से अपनी व्यस्ताओं का हवाला देकर बचना चाह रहे थे। संकेत दे चुके थे कि बैठकों में व्यस्त रहने के चलते उनके पास समय नहीं है। इतना भी नहीं कि उनसे विश्वास मत जीतने की रणनीति को जान पाएं। शाह उस समय भी संतुष्ट नहीं दिखे जब बागियों की तरफ से संदेश मिल चुका था कि वे कांग्रेस-जद (एस) गठजोड़ में नहीं लौटेंगे। बागियों का कहना था कि वे उस मुकाम पर पहुंच चुके हैं, जहां से लौटना संभव नहीं है। ऐसा करने के बजाय सक्रिय राजनीति छोड़ देंगे।

इस फैसले को मानने से पहले शाह ने विश्वास मत जीतने के पश्चात आने वाली भाजपा सरकार के गिरने की आशंका और उसकी चुनौतियों को लेकर कई सवाल उठाए थे। जब राज्य भाजपा के नेताओं ने चिंता जताई कि बागियों के समर्थन से कांग्रेस-जद (एस) गठबंधन  फिर से सरकार बना सकता है, तब जाकर अमित शाह ने भाजपा की सरकार बनाने पर सहमति जताई। अमित शाह का प्रमुख सवाल यही था कि विधानसभा में संख्या बल से जीत के पश्चात बनने वाली भाजपा सरकार 14वीं विधानसभा के बाकी साढ़े तीन साल के कार्यकाल को सफलतापूर्वक पूरा कर सकेगी। अमित शाह को चिंता थी कि अभी-अभी केंद्र में भाजपा सरकार ने दूसरा कार्यकाल आरंभ किया है, ऐसे में कर्नाटक में भाजपा की सरकार एकाएक गिरी तो पार्टी की छवि को धक्का लग सकता है, और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रतिष्ठा को लेकर सवाल खड़े हो सकते हैं। शाह एक बड़ा सवाल भी कर रहे थे, वह था कि राज्य भाजपा को 18 विधायकों के इस्तीफे या उनके अयोग्य घोषित होने से खाली होने वाली विधानसभा सीटों में कम-से-कम 8 सीटें जीतनी होंगी। कर्नाटक विधानसभा में कुल 225 सीटें हैं (224 निर्वाचित विधायक और एक सीट पर एंग्लो इंडियन समुदाय का नामित विधायक) और बहुमत के लिए 113 सीटें होनी चाहिए। इतनी सीटें हासिल कर लेने पर ही कोई पार्टी राज्य में सरकार बना सकती है।
अभी की स्थिति में कांग्रेस-जद (एस) के पास 99 सीटें हैं, और इसमें निवर्तमान स्पीकर को भी जोड़ लिया जाए तो इस गठबंधन की सीटों की संख्या 100 हो जाती है। भाजपा के पास 105 सीटें है, और एक निर्दलीय का उसे समर्थन प्राप्त है। इस तरह उसके पास 106 सीटें हैं। अभी विधानसभा की प्रभावी संख्या 206 है, यानी विधानसभा में 18 विधायक  कम हैं। बहरहाल, अमित शाह ने भाजपा सरकार बनाया जाना तो मंजूर कर ही लिया। लेकिन क्या इसका मतलब है कि येदियुरप्पा सरकार सुरक्षित है? बेशक नहीं, येदियुरप्पा की असल चुनौती तो अब शुरू हुई है। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने बीएसवाई के विश्वास मत हासिल करते ही विधानसभा में पहली प्रतिक्रिया यह जताई कि ‘आप (बीएसवाई) के पास लोगों का जनादेश नहीं है, और कुछ महीनों के भीतर आपकी सरकार का गिरना तय है।’ उनका कथन उचित है क्योंकि बीएसवाई की सरकार का टिके रहना या गिर जाना सीधे-सीधे 18 सीटों पर होने वाले उपचुनावों पर निर्भर करेगी। भाजपा को आठ सीटें जीतनी होंगी। इससे कम रही तो कांग्रेस गठजोड़ के लिए फिर से सरकार बनाने का मौका बन सकता है।
बीएसवाई के लिए दूसरी सबसे बड़ी चुनौती पार्टी के भीतर मौजूद बागियों से पार पाना है। जैसे ही वह अपने मंत्रिमंडल की घोषणा करेंगे बागियों के तेवर सामने आ जाएंगे। केवल 34 विधायकों को मंत्री पद से नवाजा जा सकता है, जबकि मंत्री पद चाहने वालों की संख्या पचास को पार कर चुकी है। कर्नाटक भाजपा में दो धड़े हैं। एक का नेतृत्व बीएसवाई कर रहे हैं, तो दूसरा धड़ा ईश्वरप्पा का है। दोनों खेमों के समर्थकों की संख्या बराबर है। वे एक दूसरे को नुकसान पहुंचाने की स्थिति में हैं। दोनों खेमे अपने ज्यादा से ज्यादा लोगों को मंत्री पद दिलाना चाहेंगे। कोई भी असंतुष्ट रहा तो संकट पैदा होना तय है। तीसरी चुनौती है कि सुप्रीम कोर्ट ने 18 विधायकों की अयोग्यता पर स्टे कर दिया तो तकनीकी रूप से वे कांग्रेस और जद (एस) के विधायक रहेंगे। ऐसी स्थिति में छह माह बाद भाजपा सरकार के लिए बहुमत साबित करने की चुनौती होगी क्योंकि विपक्षी पार्टियां विश्वास मत हासिल करने के लिए सरकार से मांग कर सकती हैं। छह माह का समय कम नहीं होता। हो सकता है कि इस दौरान बागियों का मन बदल जाए और वे अपनी पार्टी के साथ लामबंद हो जाएं। ऐसे में बीएसवाई सरकार गंभीर खतरे में पड़ जाएगी।
खतरा यह भी है कि कांग्रेस और जद (एस) भाजपा के विधायकों पर डोरे डालना शुरू कर सकती है। कांग्रेस-जद (एस) अपने बागियों के कारण शिकस्त खा बैठी हैं, यही कड़वी गोली भाजपा को भी खिलाना चाहेंगी और इस फेर में भाजपा के असंतुष्ट विधायकों को अपने साथ लाने के खेल में जुट सकती हैं। ऐसे में भाजपा सरकार अपने ही भार से गिर सकती है, जिसकी शंका शाह को लगती है। बहरहाल, बीएसवाई परिपक्व और जमीनी सच्चाई  समझने वाले नेता हैं। चतुर नेता हैं। ऐसा न होता तो चार दशकों से राजनीति में टिके न रहते। विश्वास मत जीतने के तत्काल बाद उन्होंने विधानसभा में कहा था, ‘बदले की राजनीति नहीं करता। सभी राजनीतिक पार्टियों के सहयोग से राज्य के कल्याण से जुड़े मुद्दों को हल करूंगा।’ इसी से लगता है कि साढ़े तीन का कार्यकाल उनकी सरकार पूरा कर सकती है।

बी. शेखर


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