हे साध्वी तुम कभी मत बदलना

Last Updated 28 Jul 2019 07:03:35 AM IST

हे साध्वी, तुम धर्म की रक्षक हो, धर्मद्रोह की भक्षक हो, निकृष्ट श्रम विरोधी शुचिता, पवित्रता की संरक्षक हो।


हे साध्वी तुम कभी मत बदलना

तुम मनसा-वाचा-कर्मणा शुद्ध जीवन की उपासक हो, मलिनता की मृत्यु हो और अशुद्धता की विनाशक हो। इसलिए तुम्हें जो करना हो वही करना और जो कहना हो वही कहना, तुम कभी मत बदलना।
हे साध्वी, तुम्हारा कार्य धर्म की झाड़ू से मनुष्य के मन के मैल को साफ करना है, उसकी मलिन आत्मा का अपमार्जन करना है, उसके अंदर धर्म प्रसूत ईश्वरीय गुणों का संचार करना है, उसे परम पद के लिए प्रस्तुत करना है। इसलिए तुम्हारे ये वचन सत्य हैं, संगत हैं कि हम नाली और शौचालय साफ करने के लिए नहीं चुने गए हैं, हम नाली साफ करवाने के लिए नहीं बने हैं, हम आपका शौचालय साफ करवाने के लिए बिल्कुल नहीं बनवाए गए हैं। हे साध्वी, तुम्हारे ये वचन धर्म सम्मत हैं, सत्य हैं। तुमने घर-परिवार को तिलांजलि नाली और शौचालय साफ करने के लिए नहीं दी है, तुमने जीवन की समस्त सुख-सुविधाओं का त्याग शौचालय साफ करने के लिए नहीं किया है, तुमने गेरुआ धारण करके संन्यास गली-मोहल्लों में झाड़ू लगाने के लिए नहीं लिया है। तुम सही कहती हो कि तुम्हें जिस काम के लिए बनाया गया है, वह काम तुम ईमानदारी से कर रही हो। हिंदुओं के रक्त में श्रम विरोधी अध्यात्म का संचार कर रही हो। तुम्हारा काम अपने धर्म की ध्वजा फहराना है, धर्म की रंगत को गहराना है, धर्म की राह के अधर्मी रोड़ों को राह से हटाना है। तुम साध्वी हो, तुम्हारी साध्विता ने तुम्हारे लिए यही कर्म निश्चित किया है जिसका अनुपालन तुम पूरी निष्ठा से कर रही हो, निष्प्राण होते हुए धर्म में नये प्राण भर रही हो।

यह वह महान कर्म है, जिसे कोई महान साध्वी ही कर सकती है, और इस महाकर्म की महत्ता को स्थापित कर सकती है। तुम्हारा कार्य क्षुद्र मनुष्य को धर्म प्राण बनाकर उसमें अध्यात्म का संचार करना है, धर्म की महत्ता का प्रचार करना है, धर्म के गुणों का प्रसार करना है। और धर्म कब कहता है कि बगल में कूड़े की टोकरी दबाओ, गली-मोहल्लों में झाड़ू लगाओ, इन्हें साफ-सुथरा करने के लिए गंदगी उठाओ। जो तुमसे यह अपेक्षा करते हैं कि तुम झाड़ू उठाओगी या उठवाओगी, गंदगी साफ करोगी या करवाओगी उनकी बुद्धि पर सिर्फ तरस आता है, क्योंकि एक सामान्य-सा चिरपोषित तथ्य उनकी समझ में नहीं आता है कि तुम्हारी दैहिक और वास्त्रिक पवित्रता ही वास्तविक पवित्रता है, इसका अध्यात्म से सीधा नाता है, और इसमें भौतिक गंदगी का विचार दूर-दूर तक नहीं आता है।
जब वे तुम्हारे सच्चे बयान पर, तुम्हारे मन की बात पर माथा पटकते हैं, हाथ-पैर झटकते हैं, तुम पर आरोप धरते हैं या तुम्हारी निंदा करते हैं, तो वे तुम्हारे गौरव और गरिमा को नहीं पहचानते हैं, वे सिर्फ अपनी क्षुद्र राजनीति को देखते हैं, उसे ही जानते हैं। वे तुम्हें तुम्हारी पवित्र पीठ से उठाकर अपने स्वार्थ के लिए जबरन राजनीति में लाए हैं। तुम्हें धर्म के पवित्र प्रवाह से निकाल कर नेतागिरी के पंक में घसीट लाए हैं। वे चाहते हैं कि तुम वह बोलो जो तुम बोलना नहीं चाहतीं, वह कहो जो तुम कहना नहीं चाहतीं, वह दिखो जो तुम दिखना नहीं चाहतीं, वह लिखो जो तुम लिखना नहीं चाहतीं। राजनीति में लोग जो होते हैं वह दिखते नहीं हैं, और जो दिखते हैं वो होते नहीं हैं। वे चाहते हैं कि तुम भी यही पाखंड रचती रहो और अपनी पवित्र आस्था का समर्पण राजनीति की झाड़ू के आगे करती रहो।
हे साध्वी, तुम सर्वज्ञाता, सर्वशक्तिमान साध्वी हो इनके झांसे में मत आना, इनके हाथ का निवाला मत खाना। वे तुम्हारी आध्यात्मिक शक्ति का लाभ लेना चाहते हैं, और अपने स्वार्थ के लिए तुम्हारे हाथ में झाड़ू देना चाहते हैं। मगर तुम उनके छलावे में मत फंसना और गांव-शहर जो गंदगी पसरी हुई है, उसमें कभी मत धंसना। तुम मानव समुदाय की शीर्ष हो, मस्तक हो, उन्नत भाल हो, तुमसे पांव का काम नहीं लिया जा सकता, तुम्हारी आध्यात्मिक शुचिता को भौतिक गंदगी में लिप्त नहीं किया जा सकता।
गली में, घर में, गांव में, शहर में, हाट में, बाजार में, विचार में और व्यवहार में, गंदगी का हर ढेर हमारी राष्ट्रीय पहचान है, और इस ढेर को हटाने का उपाय खोजना हमारी चिरपोषित धार्मिक संस्कृति का भयावह अपमान है। एक बेचारा प्रधानमंत्री चाहता है कि देश इस व्यापक गंदगी से मुक्त हो जाए, गंदगी से मुक्ति के इस कार्य में हर देशवासी हिस्सा बटाए, नेता हो या मतदाता झाड़ू उठाए, सफाई के काम में जुट जाए। अब जिसे उठना हो वो उठे और जिसे जुटना हो वो जुटे, लेकिन क्षुद्र सफाई-स्वच्छता कर्म साधु-साध्वियों पर क्यों थोपा जाए? उनकी पवित्र धार्मिकता में गंदगी का अपवित्र बीज क्यों रोंपा जाए? सफाई वे करें जिनका काम सफाई करना है, जो सफाई करते आए हैं, और जो सफाई करते-करते, मैला ढोते-ढोते पीढ़ियां गुजार आए हैं। हे साध्वी, तुम सफाई संवाहक नहीं धर्म ध्वजावाहक हो, सो धर्म ध्वजा फहराती रहना, सफाई-स्वच्छता के हो-हल्ले पर कान मत धरना, तुम कभी मत बदलना।

विभांशु दिव्याल


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