पाकिस्तान : सही रास्ते पर भारत
एक कहावत है, हारे को हरिनाम। पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी कह रहे हैं कि बातचीत का निर्णय अब भारत को करना है, हम न तो जल्दबाजी में है और ही हमें कोई समस्या है।
पाकिस्तान : सही रास्ते पर भारत |
जब भारत तैयार होगा, हम भी तैयार मिलेंगे। प्रश्न है कि पाकिस्तान के पास चारा क्या है? भारत उसके साथ बातचीत की शुरुआत करे इसके लिए वह जितनी कोशिश कर सकता था करता रहा। प्रधानमंत्री इमरान खान ने दो बार पत्र लिखा। बार-बार बयान दिया कि हम बातचीत द्वारा सभी मुद्दों का शांतिपूर्वक समाधान करना चाहते हैं। ईद के दिन पाकिस्तान के विदेश सचिव भारत आ गए, जामा मस्जिद में नमाज अदा की। इसके द्वारा पाकिस्तान संदेश देना चाहता था कि ईद के दिन तो हम सारे गिले-शिकवे दूर कर गले मिलते हैं।
भारत को अब पुरानी बातें भूलकर गले मिलने का नया अध्याय आरंभ करना चाहिए। बेचारे विदेश सचिव कब यहां से गए किसी को नहीं पता। किर्गिजस्तान में शंघाई सहयोग संगठन एससीओ को वह बड़े अवसर के रूप में देख रहा था। किंतु भारत ने अपनी पाकिस्तान नीति की गाड़ी को सही जगह ले जाकर खड़ा कर दिया है-आतंकवाद का प्रायोजन बंद करो, आतंकवाद के ढांचे खत्म करने का प्रमाण दो, जो देश बातचीत करने की सलाह दें; वे गारंटी लें कि पाकिस्तान आतंकवादी हमले नहीं कराएगा, जम्मू-कश्मीर में हस्तक्षेप बंद करो, हुर्रियत या अन्य अलगाववादियों से संपर्क न रखो। बालाकोट के बाद इसमें भारत ने यह भी जोड़ दिया है कि आप आतंकवाद के ढांचे खत्म नहीं करोगे तो हम करेंगे।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं उनके रणनीतिकारों को पता था कि कुछ देश बातचीत के लिए आग्रह कर सकते हैं। इसलिए वातावरण ऐसा बनाओ कि कोई सलाह देने का साहस ही न करे। कूटनीति में आप जो चाहते हैं अपने हाव-भाव से, वह सारे संदेश प्रेषित कर सकते हैं। प्रधानमंत्री ने बिश्केक जाने के लिए पाकिस्तान द्वारा अपना वायुमार्ग खोलने की घोषणा के बावजूद उसका इस्तेमाल नहीं किया और दूर के रास्ते से गए। इससे संदेश चला गया कि भारत का आंतकवाद को लेकर पाकिस्तान के प्रति रु ख ज्यादा कड़ा है। पाकिस्तानी स्रोत पर निर्भर रहने वाले भारत के कुछ महान पत्रकारों ने खबरा चला दी कि बिश्केक में मोदी-इमरान वार्ता हो सकती है। सरकार ने खबर को पहले चलने दिया ताकि पाकिस्तान की प्रतिक्रिया आ जाए। बिश्केक रवानगी से कुछ समय पहले यह साफ किया गया कि बातचीत का सवाल ही नहीं है। सम्मेलन जब तक औपचारिक रूप से चलता रहा; दोनों नेता सात बार सभी नेताओं के साथ आए, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने इमरान की ओर देखा तक नहीं। सम्मेलन में वातावरण बन गया था कि भारतीय प्रधानमंत्री का रु ख एकदम कड़ा है, इसलिए पाकिस्तान को लेकर कोई बात भारत के अनुकूल नहीं हुई तो सम्मेलन विफल हो जाएगा। हालांकि सम्मेलन की समाप्ति के बाद लीडर्स लाउंज में दोनों का आमना-सामना हुआ और शिष्टाचार के नाते सभी नेताओं के सामने कैसे हैं आदि सामान्य बातें हुई।
अब पाकिस्तान इसका जितना प्रचार करे सच सबको पता है। प्रधानमंत्री ने चीन के राष्ट्रपति शि जिनपिंग से मुलाकात में साफ कह दिया कि पाकिस्तान के व्यवहार में अंतर नहीं आ रहा है। जैसा चीन की शिन्हुआ न्यूज एजेंसी ने खबर दी शि ने पाकिस्तान से बात करने का वायदा किया। यह बहुत बड़ी बात थी। सम्मेलन में मोदी ने अपने भाषण में आतंकवाद को प्रमुखता से उठाते हुए कहा कि आतंकवाद को प्रोत्साहन, समर्थन व वित्तीय मदद प्रदाने करने वाले राष्ट्रों को जिम्मेवार ठहराना होगा। स्थिति ऐसी हो गई कि सभी नेताओं को समर्थन देना पड़ा। पहली बार किसी संगठन के घोषणा में आतंकवाद के साथ सीमा पार शब्द प्रयोग हुआ। इसमें कहा गया कि आतंकवाद और आतंकवाद की विचारधारा उन मुद्दों में शामिल है, जिन पर विशेष ध्यान देना जरूरी है क्योंकि इसकी प्रकृति सीमा पार (क्रॉस बार्डर इन नेचर) है। ऐसा भारत के दबाव में ही हुआ और इमरान की उपस्थिति में। इसमें यह भी लिखा है कि अपने किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आतंकवादियों, उग्रवादियों एवं अतिवादियों का उपयोग करना बिल्कुल अस्वीकार्य है। यह भी भारत की ही पंक्ति है।
पाकिस्तान कह रहा है कि उसमें किसी देश का नाम नहीं है। भारत के प्रधानमंत्री ने भी अपने भाषण में किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन सबको मालूम था कि निशाना कौन है। घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करते समय सभी देशों को मालूम था कि इशारा किसकी ओर है। इसके अर्थ भी गंभीर है। यह इन देशों द्वारा इस बात की स्वीकृति है कि जम्मू-कश्मीर की हिंसा आतंकवाद है और इसका संबंध सीमा पार से है। इसलिए भारत सीमा पार सैन्य कार्रवाई करता है तो वह आतंकवाद के खिलाफ होगा पाकिस्तान के नहीं और कोई देश मुखालफत भी नहीं करेगा। वैसे भी 26 फरवरी को पाकिस्तानी सीमा में घुसकर की गई हवाई बमबारी का किसी ने विरोध नहीं किया। तो कहा जा सकता है कि आजादी के बाद भारत की पाकिस्तान नीति पहली बार भावुकता से परे सही दिशा में है। मोदी ने पेरिस से लेकर उफा तक खुले दिल से कोशिश की। तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के एक फोन पर बिना पूर्व कार्यक्रम के लाहौर चले गए। पठानकोट हमलों के विश्वास करके उनकी जांच टीम को हमले की जगह तक ले गए। परिणाम क्या हुआ? पता नहीं नवाज शरीफ भारत के साथ संबंधों को लेकर कितने ईमानदार थे, मगर सेना, शासन के कट्टरपंथियों को यह स्वीकार नहीं हुआ और उनकी दशा सामने है। भारत ने उसके बाद से अपनी नीति को सही पटरी पर लाया और उरी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक किया। इमरान कुछ भी कर लें सरकार का रवैया बदलने वाला नहीं।
इमरान ने ताश न्यूज एजेंसी को साक्षात्कार देते हए कहा कि हम भारत से इसलिए संबंध सुधारना चाहते हैं ताकि रक्षा पर खर्च कम करके सामाजिक-आर्थिक विकास पर फोकस कर सकें। किंतु यह समस्या तो पाकिस्तान ने स्वयं भारत को हजार घाव देने और गजवात-ए-हिन्द के तहत इसको पाकिस्तान का अंग बनाने की अपनी उन्मादी नीति से पैदा किया है। तो भुगतो। भारत का लक्ष्य साफ है, पाकिस्तान से आतंकवाद के ढांचे को नष्ट करना और पाक अधिकृत कश्मीर को वापस लेना। बस, भारत बलूचिस्तान, सिंध और पख्तूनिस्तान के आजादी के संघर्ष की अहिंसक धाराओं को हर प्रकार समर्थन देने को अपनी नीति में शामिल करे और उसको परिणाम तक ले जाने तक कायम रहे। इसके बाद पाकिस्तान नीति पूर्ण हो जाएगी।
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