आतंकवाद पर हमारा प्रलाप

Last Updated 16 Jun 2019 07:16:29 AM IST

वह उखड़ा-उजड़ा सा, गुस्साया-बौखलाया सा हमारे पास आया और बोला, ‘देखा दद्दा, सरकार के सारे दावे धरे रह गये।


आतंकवाद पर हमारा प्रलाप

आतंकवादियों ने फिर हमला कर दिया, फिर हमारे बहादुर जवान शहीद हो गये।’ वह उबल रहा था, लगा अगर कोई आतंकवादी उसके हत्थे चढ़ जाये तो नंगे हाथों से उसकी गर्दन मरोड़ दे या बीच से उसकी रीढ़ तोड़ दे। इधर हम हर पल आ रही हिंसा-बलात्कार की बेहूदा खबरों के आतंक से पीड़ित थे, अखबार-टीवी के संपर्क से किनारा करे बैठे थे, इसलिए थोड़ा भरे बैठे थे। हमारे मुंह से निकला, ‘क्या करें हमने तो बहुत कोशिश की पर रोक नहीं पाये। आतंकवादी हमारे हाथ नहीं आये।’ उसने अचकचाकर हमें ऐसे देखा जैसे कुछ अनसुनी सुन रहा हो और जो सुना है उस पर भरोसा नहीं हो रहा हो। वह बोला, ‘क्या दद्दा, इतनी सीरियस बात पर आप मजाक कर रहे हैं, आतंकवादी हमले पर हमला कर रहे हैं, कितने निदरेष लोग मर रहे हैं।’ ‘मगर उससे ज्यादा तो सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं, कुपोषण और बिना उचित इलाज के मारे जाते हैं, नकली शराब और ड्रग्स से मारे जाते हैं, हत्या-आत्महत्याओं में मारे जाते हैं ..’ हमने बेमतलब तर्क दिया।
वह झुंझलाकर बोला, ‘क्या दद्दा, और वजहों से और लोग मारे जाते हैं तो इससे क्या आतंकवादी सही हो जाते हैं?’ हमने कहा, ‘हमने कब कहा कि आतंकवादी सही हो जाते हैं। जिस तरह इंसान की लापरवाही से दुर्घटनाओं में लोग मारे जाते हैं, उसी तरह आतंकवाद भी इंसानियत की दुर्घटना है, उसमें भी लोग मारे जाते हैं। इसमें अलग से क्या रोना और क्या धोना। जब हम आये दिन की दुर्घटना के बावजूद लोगों को नियम से चलना नहीं सिखा पाते हैं तो हम आतंकवादियों से शराफत की उम्मीद क्यों लगाते हैं?’ हमारी बात सुनकर वह कुछ भ्रमित सा हुआ। उसने हमारा गोड़ छुआ और बोला,‘आखिर ये आतंकवादी चाहते क्या हैं?’ हमने कहा, ‘ये विश्व शांति चाहते हैं।’ उसका भ्रम गहराकर उसके चेहरे पर छप आया, हमें थोड़ा सा मजा आया। वह बोला,‘दद्दा, हम बहुत सीरियस हैं, सीरियस सवाल कर रहे हैं और आप हैं मजाक-पर-मजाक कर रहे हैं।’

हमने कहा, ‘हमारी सच्ची बात को तुम मजाक मानते हों। आखिर आतंकवादियों के बारे में तुम क्या जानते हों? वे सचमुच दुनिया को शांत चाहते हैं, इसलिए इतना बवाल काटते हैं।’ वह बोला,‘कहां की बात कहां ला रहे हो। हम सीरियस हैं और आप पहेलियां बुझा रहे हो।’ हमने कहा, ‘देख भाई, आतंकवादी चाहते हैं कि दुनिया उनकी मानें, उनकी सुनें और उनकी तरह चले। जो उनसे नाइत्तिफाकी रखता है या वे जिनसे नाइत्तिफाकी रखते हैं उन्हेंवे दुनिया के नक्शे से हटा देंगे। उनका नामोनिशान मिटा देंगे। जब सब मिट जाएंगे तो उनकी मनचाही हो जाएगी, दुनिया शांत हो जाएगी।’ वह बोला, ‘तो आप कहना चाहते हैं कि जब तक उनका हर विरोधी मिट नहीं हो जाएगा तब तक आतंकवाद खत्म नहीं हो पाएगा। इनकी आपस में भी असहमति होती है, उसका क्या? ये आपस में भी लड़ते हैं, उसका क्या?’ हमने कहा,‘बिल्कुल होती है, बिल्कुल लड़ते हैं। जब असहमति को मिटाते-मिटाते केवल दो लोग रह जाएंगे तो इनमें इस बात पर असहमति होगी कि ऊपर वाले ने दुनिया को शांत करने का जिम्मा इसे दिया है या उसे। यह तय करने के लिए दोनों एक-दूसरे की तरफ गोलियां चलाएंगे और दुनिया को पूरी तरह शांत करने के लिए शहीद हो जाएंगे।’
उसने हमारी तरफ ऐसे देखा जैसे किसी उजबक को देख रहा हो। वह बोला,‘आतंकवाद दुनिया को कंपा रहा है और आपको मजा आ रहा है।’ हमने कहा,‘आतंकवाद दुनिया के बहुत काम आ रहा है। बहुतों के घर चला रहा है, बहुतों के कैरियर बना रहा है।’ वह बोला, ‘आप फिर पहेली बुझा रहे हैं, दिमाग का दही बना रहे हैं।’ हमने कहा, ‘अगर आतंकवाद नहीं होता तो सेना, सुरक्षा बल, सुरक्षा एजेंसियां क्या पकाते? खाली बैठे-बैठै थक जाते या फिर जंग खा जाते। आतंकवाद इन्हें  चाक-चौबंद रखता है, तैयार-मुस्तैद रखता है, इनमें देशप्रेम जगाता है और इन्हें इनके होने का अहसास कराता है। आतंकवाद नहीं होता तो हमारे नेतागण किसके नाम पर चिल्लाते, किसके नाम पर जनता में जोश जगाते और किसको दुश्मन बताकर उकसाते, भड़काते, अपनी राजनीति चलाते? सोच भई, अगर पुलवामा नहीं होता तो बालाकोट नहीं होता, बालाकोट नहीं होता तो सत्ता दिलाऊ वोट नहीं होता। आतंकवाद नहीं होता तो देश के बुद्धिजीवी किस पर जुगाली करते, हमारे महावीर एंकर उछलबच्चे किस पर चीखते-चिल्लाते? किस पर मोमबत्तियां जलतीं और किस पर जुलूस निकलते? आतंकवाद नहीं होता तो न लोगों में देशभक्ति पनपनती, न जुबानें कड़कतीं न भुजाएं फड़कतीं। और सबसे बड़ी बात यह कि आतंकवाद दुनिया को पास ला रहा है। बता, प्रधानमंत्री का दुनिया को एकजुट करने का आह्वान किसके नाम पर आ रहा है?’ वह हमें घूर रहा था जैसे उसके ज्ञानचक्षु खुल गये हैं और हम सोच रहे थे कि चंद मेंढ़कों की समुद्र फतह मंशा पर हम न जाने क्या-क्या कह गये।

विभांशु दिव्याल


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