जनादेश 2019 : प्रतिमान रचा मोदी ने

Last Updated 24 May 2019 07:06:44 AM IST

लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार प्रचंड जीत हुई है। भाजपा और सहयोगी दलों अर्थात एनडीए को 2014 के मुकाबले और ज्यादा यानी लगभग 348 सीटें मिली हैं।


जनादेश 2019 : प्रतिमान रचा मोदी ने

उनका वोट प्रतिशत भी बढ़ा है। पश्चिम बंगाल, कर्नाटक के नतीजे भाजपा के लिए काफी उत्साहवर्धक हैं। पर दक्षिणी राज्यों केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में उसे अपनी पैठ बनानी होगी। भाजपा की वापसी को 22 विपक्षी दलों द्वारा संभवत: पहले ही स्वीकार कर लिया गया था और उसी के चलते देश में ईवीएम से छेड़छाड़ की संभावना और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न खड़े किए गए। यह देश की जनता के साथ छल है। अभी कुछ महीने पहले उसी ईवीएम के माध्यम से मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में गैर-भाजपाई और कांग्रेसी सरकारें बनी थी।
लोकतंत्र में जीत और हार होती रहती है। राजनीतिक दलों को जहां विजय पर संयम और शालीनता बरतनी होगी, वहीं पराजय को जनता का आदेश मानकर शिरोधार्य करना होगा। कोई भी पार्टी हमेशा सत्ता में नहीं रहती। इसलिए आज जो दल विपक्ष में हैं, उनको अभी से अगले चुनाव की तैयारी में जुट जाना चाहिए और संगठन, विचारधारा, नीतियों और नेतृत्व के स्तर पर स्वयं को चुस्त-दुरुस्त करने की कोशिश करना चाहिए।

मोदी सरकार की वापसी विपक्षी दलों को भले ही न सुहाए, लेकिन जनता का निर्णय तो स्वीकार करना ही पड़ेगा। इसलिए, यह जानना जरूरी है कि आखिर मोदी जीते क्यों? नरेन्द्र मोदी सरकार की विगत पांच वर्षो की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि उसने देश को एक साफ-सुथरी सरकार दी। केंद्रीय स्तर पर भ्रष्टाचार, लालफीताशाही और फिजूलखर्ची पर लगाम लगाई। शासन और प्रशासन दोनों स्तरों पर एक ‘व्यवस्था’ बनाई, जिससे केंद्र सरकार के दफ्तरों में पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और समयबद्धता बढ़ी। पर ज्यादातर राज्यों में भाजपा या राजग सरकार होने के बावजूद राज्यों में भ्रष्टाचार, लालफीताशाही और फिजूलखर्ची नहीं रु की।
प्रधानमंत्री मोदी ने समावेशी और विकासात्मक राजनीति को न केवल अपना प्रमुख एजेंडा बनाया वरन उसे लागू करने का भी पुरजोर प्रयास किया है। इससे देश की जनता के मन में यह भाव भर गया कि मोदी सरकार जाति-धर्म से ऊपर उठ कर काम कर रही है। यदि विकास का लाभ बिना भेद-भाव के हो तो जनता को जाति-धर्म के आधार पर मतदान करने से क्या लेना-देना? वह तो जाति-धर्म को इसलिए मतदान का आधार बनाती है क्योंकि उसे लगता है कि अपनी जाति या धर्म का प्रतिनिधि उसका काम करा सकेगा। लेकिन यदि एक साफ-सुथरी प्रशासनिक व्यवस्था बन जाए, जिसमें सभी के काम त्वरित और बिना भ्रष्टाचार के हो जाए तो जनता को भारी राहत मिलेगी और सजातीय प्रतिनिधि चुनने की उसकी विवशता खत्म हो जाएगी। आज यदि सभी जाति और धर्म के लोग मोदी की ओर आकृष्ट हो रहे हैं तो उसका सबसे बड़ा कारण यही है कि जैसे उनको विश्वास हो चला है कि मोदी के रहते विकास और सरकारी सुविधाओं को पाने में किसी भाई-भतीजावाद की गुंजाइश नहीं। मोदी की विजय में समावेशी विकास और समावेशी राजनीति को व्यावहारिक स्वरूप देने का भी बड़ा योगदान है। 
मोदी ने ‘जातिवादी-राजनीति’ के प्रभुत्व का मिथक तोड़ दिया। उन्होंने ‘सबका साथ-सबका विकास’ के संकल्प को धरातल पर उतारा और ऐसा करके अपनी पार्टी के जनाधार में क्रांतिकारी परिवर्तन किया। आज की भाजपा 1980 और 1990 के दशक वाली भाजपा नहीं रही, जिसे ‘ब्राह्मण, बनिया, शहरी और मध्यम-वर्ग’ की पार्टी के रूप में जाना जाता था। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में-जहां जातिवादी राजनीति एक अनिवार्यता बन गई थी; मोदी ने जातीय आधार पर दलीय अस्तित्व का वर्चस्व तोड़ दिया। आज भाजपा का ग्रामीण जनाधार भी उतना ही सशक्त है जितना शहरी; उसे दलितों और पिछड़ों का उतना ही समर्थन है जितना अगड़ों का। यह भारतीय राजनीति में नयापन है। मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल की शुरु आत से ही लुटियन-दिल्ली का कोप देखा है। वे उसका हिस्सा न बन सके और सत्ता के गलियारों में जुगनू की तरह चमकने वाले लोगों के लिए वे ऐसा उजाला बन गए, जिसने उन जुगनुओं की चमक छीन ली। उन पर अमीरों का दोस्त और गरीबों का दुश्मन होने की तोहमत मढ़ दी गई और इसकी कमान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को दी गई, जिन्होंने सभी हदें पार कर प्रधानमंत्री को ‘चोर’ तक कह डाला। मगर मोदी ने प्रतिक्रियात्मक राजनीति न कर एक ‘प्रोएक्टिव’ और सकारात्मक राजनीति का सहारा लिया।
जनधन से शुरू कर ‘उज्ज्वला’ और ‘आयुष्मान’ और ढेरों सरकारी योजनाओं का सीधा लाभ गरीबों के बैंक में डालकर उनका दिल जीत लिया। परिणामस्वरूप, गठबंधन और महागठबंधन के प्रयासों को जब मोदी ने ‘महा-मिलावटी’ कह कर निशाना बनाया तो वह अचूक साबित हुआ और उन्हें भारी जन-समर्थन मिला। मोदी ने गांव-देहात से लेकर वैश्विक पटल तक अपना परचम लहराया। सम्पूर्ण विश्व एक समय मोदी को एक ‘विलेन’ के रूप में देखता था। पर प्रधानमंत्री बनने के बाद उसी विश्व ने उन्हें एक बड़े नेता के रूप में सराहा। इतना ही नहीं, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति से नावाकिफ होने के बावजूद मोदी ने बहुत जल्दी स्वयं को विश्व के एक बड़े नेता के रूप में स्थापित कर लिया।
पाकिस्तान और चीन के साथ ऐसे संबंध बनाए कि आगे आने वाले कई दशकों तक उसे ‘मोदी-मॉडल’ डिप्लोमेसी के रूप में याद किया जाता रहेगा। मोदी के सुशासन और विकास के प्रयोगों में एक खास बात यह रही कि वे प्रत्येक मंत्रालय और विभाग से कुछ बड़ा और नया सोचने को कहते रहे। इसी के चलते देश की अर्थव्यवस्था में अनेक गंभीर सुधार की पहल हुई। उसका विरोध भी हुआ किंतु मोदी जनता को समझाने में सफल रहे कि परिवर्तन गरीबों की जिंदगी में सुधार लाने, देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने, आतंकवाद को जड़ से नष्ट करने और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बहुत जरूरी है। हां, यह जरूर है कि जिन लोगों और राजनीतिक दलों को इसके चलते घबराहट हुई उन्होंने खूब हो-हल्ला मचाया।
क्या जनता नहीं जानती कि किस कदर राजनीति का अपराधीकरण हो गया है और केवल अपने स्वार्थ के लिए अपराधी राजनीति का प्रयोग करने लगे हैं? लोगों को मोदी के कड़े कदम सहना मंजूर है, पर वर्तमान स्थिति से तो किसी तरह निजात मिले। जनता को विश्वास हो गया है कि मोदी का अपना कोई स्वार्थ नहीं है, इसलिए उनके प्रति जनता के नजरिए में एक अजीब सा बदलाव आ गया है। हां, जो विचारधारा के आधार पर विरोध करते हैं वे अपनी जगह बिल्कुल सही हैं; लोकतंत्र उसकी इजाजत देता है।

डॉ. ए.के. वर्मा


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