विश्लेषण : सभ्य समाज को गाली

Last Updated 14 May 2019 02:23:46 AM IST

आम आदमी पार्टी (आप) की पूर्वी दिल्ली क्षेत्र की लोक सभा प्रत्याशी आतिशी मार्लेना के विरुद्ध जो पर्चा बांटा गया उसमें सिर पंक्ति से लेकर अंतिम पंक्ति तक जहर भरा हुआ था।


विश्लेषण : सभ्य समाज को गाली

यह पर्चा केवल आतिशी को नहीं, बल्कि एक सभ्य समाज को दी गई अश्लील गाली था-उन सभी वैचारिक मूल्यों और संवेदनाओं को गाली था जिन्हें एक आधुनिक गतिशील समाज अपनी शीर्ष प्राथमिकताओं पर रखता है। जिस या जिन व्यक्तियों ने इस पच्रे की परिकल्पना की, लिखा, छपवाया और बंटवाया, वे निश्चित तौर पर आतिशी और उनके शीर्ष संरक्षकों को सीधे-सीधे सड़कछाप गाली देना चाहते थे।
गाली देने वाला अपनी गाली के प्रभाव के तौर पर गाली खाए व्यक्ति या व्यक्तियों में जो तिलमिलाहट पैदा करना चाहता है, वह तिलमिलाहट भी पच्रेवालों ने बखूबी पैदा की। लेकिन शायद उन्हें समझने में समय लगे कि उनकी गाली आतिशी और शीर्ष आप नेतृत्व के साथ-साथ नागर समाज के मेरे जैसे उन लोगों को भी लगी है, जिनका आतिशी और उनके सहयोगियों से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है। गाली देने वाले आतिशी को उस क्षेत्र के मतदाताओं की नजर में सांसदीय प्रत्याशिता के लिए पूरी तरह अयोग्य ठहराना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने गाली की निर्मिति जिन तत्वों से की उसे पच्रे की वस्तु से समझा जा सकता है। इसमें औरत विरोधी वह मानसिकता गुथी हुई है, जो औरत को पुरुष की तुलना में हेय और स्वतंत्र अस्तित्व के लिए अपात्र मानती है। वह सवर्णवादी मानसिकता निहित है, जो किसी भी हिंदू औरत को न किसी विधर्मी पुरुष के संपर्क में देखना चाहती है और न उसको यौन स्वातंत्र्य देना चाहती है।

यह मानसिकता इन्हें मर्यादाओं का उल्लंघन मानती है और अगर कोई औरत उनकी इन मर्यादाओं को तोड़े तो वह औरत सिर्फ ‘वेश्या’ हो सकती है, राजनेता नहीं। पच्रे में विधर्मियों के प्रति गहरा विद्वेष भरा हुआ था जो आतिशी के विधर्मी से विवाह के संदर्भ में निहित था। इसमें दलितों की अवमानना का गहरा भाव भी निहित था। मनीष सिसोदिया को जो गाली दी गई थी, वह जाति के आधार पर ही दी गई थी। कुल मिलाकर सवर्ण कट्टर हिंदूवादी मानसिकता से निर्मित गाली थी। दूसरे शब्दों में, यह वह मानसिकता है, जिसके विरुद्ध न जाने कितने परिवर्तनवादी और महिला-अधिकारवादी आंदोलन चले हैं और जिसे भारतीय संविधान में निषिद्ध ठहरा दिया गया है। उदार हिंदू इस मानसिकता को निरंतर सभ्य समाज का कलंक ठहराते रहे हैं। सवाल है कि पर्चावालों ने तब इस मानसिकता के आधार पर गाली को क्यों तैयार किया और क्यों माना कि उनकी गाली चुनाव में आतिशी को क्षति पहुंचाएगी? इसका एक ही तर्क है कि वे मानते हैं कि उनके क्षेत्र में औरत विरोधी सवर्ण मानसिकता के मतदाता भारी संख्या में हैं, जो गाली को अपनी मानसिकता के आधार पर सही पाएंगे, आतिशी को चरित्रहीन मानकर उसके विरुद्ध हो जाएंगे और उसके विरोध में मतदान करेंगे। उनका सोचना गलत नहीं था। आज भी यह मानसिकता व्यापक तौर पर घर किए बैठी है। देश की कुलीन राजधानी दिल्ली भी इसका अपवाद नहीं है। दुखद है कि कोई पार्टी भी अपवाद नहीं है। तथापि पच्रे में बहुत कुछ ऐसा भी था, जो कुछ इतर संकेत देता था।
इसमें आतिशी से ज्यादा खुन्नस सिसोदिया और केजरीवाल पर निकाली गई थी। उनके नाम के साथ बेहद अभद्र गालियां चस्पा की गई थीं। वे तीनों जन्मना सवर्ण जाति के हैं। तब सवर्ण पुरुषों को यानी मनीष और अरविंद को गाली देने का आशय यही रहा होगा कि वे सवर्ण हिंदू होकर भी एक पथच्युत सवर्ण हिंदू औरत को सर पर बिठा रहे हैं। लेकिन पच्रे की भाषा दूसरा इशारा भी कर रही थी। मनीष और केजरीवाल के प्रति जो गुस्सा इस पच्रे में फूट रहा था उससे लगता था जैसे गाली देने वाला इनके प्रति व्यक्तिगत आक्रोश से भरा हुआ था मानो इन दोनों ने उसे कोई गहरी व्यक्तिगत क्षति पहुंचाई हो, या उसे प्रताड़ित-अपमानित किया हो। जिस तरह दुत्कारा हुआ नौकर मालिक के बच्चे की हत्या कर अपने अपमान का बदला लेना चाहता है, बदले का कुछ-कुछ ऐसा ही भाव पच्रे में निहित था। जांच-पड़ताल में आम आदमी पार्टी का कोई दिग्भ्रमित पूर्व कार्यकर्ता ही पकड़ में आए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। बहरहाल, मुद्दा उस विगलित औरत विरोधी घोर सवर्णतावादी मानसिकता का है, जो आज भी न केवल पूरी तरह जिंदा है बल्कि इतनी मजबूत भी है कि इसे चुनावों में तुरुप के पत्ते की तरह चला जा सकता है। यह मानसिकता संपूर्ण सभ्य समाज के लिए आज भी ऐसी बड़ी चुनौती है, जिससे मात्र कानून से नहीं निपटा जा सकता। इससे निपटने के लिए प्रतिबद्ध सामाजिक प्रयासों के साथ संयुक्त राजनीतिक प्रयास की भी जरूरत है। विडंबना है कि चुनावी राजनीति इससे निपटने के बजाय इसे भुनाने के लिए इसे संरक्षण प्रदान करती है। रही आम आदमी पार्टी की बात तो जब भी इतिहास इसे किसी बड़ी चुनौती से निपटने का मौका उपलब्ध कराता है तो वह या तो इसे आदतन कूड़ेदान में डाल देती है या अन्य दलों की तरह इसका क्षुद्र चुनावीकरण कर देती है। इस बार भी उसने यही किया।
आप ने इस प्रकरण का आरोप सीधे-सीधे आतिशी के प्रतिद्वंद्वी भाजपा के गौतम गंभीर पर मढ़ दिया। मैं न तो गंभीर को व्यक्तिगत तौर पर जानता हूं और न उनका और उनकी पार्टी का समर्थक हूं, लेकिन जब उन्होंने कहा कि न तो इस पर्चा-प्रसारण में उनका कोई हाथ है और न ही वह नारी विरोधी हैं तो उन पर यकायक अविश्वास करने का कोई कारण मेरी समझ में नहीं आया। अन्य अनेक कथित समतावादी पार्टियों के नेताओं की तरह उनका कभी कोई नारी विरोधी बयान या व्यवहार भी सामने नहीं आया। उन्हें  कहना पड़ा कि पर्चा कांड में उनका हाथ सिद्ध हुआ तो वह सार्वजनिक तौर पर फांसी लगा लेंगे। उन्हें कानूनी कार्रवाई के लिए भी बाध्य होना पड़ा। आप को इस पर्चे की मानसिकता को समूचे सभ्य समाज के प्रतिकक्ष खड़ा करना चाहिए था और इस लड़ाई में गंभीर को शामिल कर क्षुद्र मानसिकता से निपटने का सह-दायित्व उन पर भी डालना चाहिए था, लेकिन उसने इसे आतिशी और गंभीर की लड़ाई बना दिया और उन्हें और उनकी पार्टी को, साथ ही अन्य पार्टियों और पक्षों को भी, किसी भी ऐसे दायित्व से मुक्त कर दिया। समूचे सभ्य समाज को दी गई गाली को उन्होंने दो प्रत्याशियों के बीच की गाली-गलौज में बदल दिया। एक बड़े मुद्दे के क्षुद्रीकरण का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है।

विभांशु दिव्याल


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment