भाजपा : दलितों की संवैधानिक रक्षक

Last Updated 14 May 2019 02:19:41 AM IST

बाबा साहेब डॉ. भीमराव आम्बेडकर दलितों, पिछड़ों, महिलाओं और अन्य कमजोर वगरे का सामाजिक-आर्थिक उत्थान कानून एवं संविधान के माध्यम से करना चाहते थे।


भाजपा : दलितों की संवैधानिक रक्षक

बीजेपी की वर्तमान एवं पूर्व की सरकारें भी बाबा साहेब के सिद्धांतों के अनुसार दलितों के कानूनी एवं संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के प्रति अग्रणी रही हैं। इसका ज्वलंत उदाहरण है- डॉ. सुभाष काशीनाथ महाजन बनाम महाराष्ट्र सरकार के केस में फैसला (20-03-2018), जिसके द्वारा सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत तब तक मुकदमा नहीं लिखा जा सकता जब तक डिप्टी एसपी रैंक का अधिकारी जांच कर संतुष्ट न हो जाए कि वास्तव में अनुसूचित जाति के विरु द्ध गैर-अनुसूचित जाति के व्यक्ति ने कोई अपराध किया है।
इस निर्णय के बाद अनुसूचित जाति को जो सुरक्षा प्रदान की गई थी, वह प्राय: व्यावहारिक रूप से समाप्त हो जाने की संभावना बन जाती। सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय के विरुद्ध अनुसूचित जाति/जनजाति के तमाम संगठनों ने विरोध प्रकट किया। परिणामत: वर्तमान सरकार ने दो अप्रैल, 2018 को एक पुनर्विचार याचिका दाखिल की लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने उक्त याचिका को भी खारिज कर दिया।

नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने दलितों के हितों की रक्षा के लिए साहसिक कदम उठाते हुए अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम में संशोधन धारा 18ए जोड़ते हुए सर्वोच्च न्यायालय के उक्त निर्णय को निष्प्रभावी करते हुए अनुसूचित जाति/जनजाति को प्रदत्त सुरक्षा की बहाली की। सर्वविदित है कि इस संशोधन के बाद सवर्ण समाज ने मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में बीजेपी से नाराज होकर कांग्रेस को वोट दिया। फलस्वरूप, इन तीनों राज्यों में बीजेपी चुनाव हार गई। इसके बावजूद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बिना हार-जीत की परवाह किए दलितों, पिछड़ों एवं अन्य गरीब वगरे के उत्थान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाते हुए दलित हितों को सुरक्षित रखने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के दिशा-निर्देश में संशोधन कर यूनिर्वसटिी एवं कॉलेजों को यूनिट माना।

परिणामस्वरूप अब दलित एवं पिछड़े वर्ग के लोग भी शिक्षक/असिस्टेंट प्रोफेसर बन सकेंगे। अत: वर्तमान अध्यादेश दलित हित का नवीनतम प्रमाण है। बताते चलें कि इससे पूर्व भी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने भी दलित हितों को सुरक्षित रखने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के जिन पांच निर्णयों से अनुसूचित जाति/जनजाति के आरक्षण पर कुठाराघात हो रहा था, उनमें से तीन निर्णयों को निष्प्रभावी करने के लिए संविधान का 81वां, 82वां एवं 85वां संशोधन कर अनुच्छेद 16(4ए), 16(4बी) एवं अनुच्छेद 335 में नये प्रावधान जोड़ते हुए दलित समाज के नौकरीपेशा लोगों के हितों को पुन: बहाल कर दिया। सारांश यह है कि दलितों के हितों के विरु द्ध जब कभी कानूनी एवं संवैधानिक बाधा उत्पन्न हुई, बीजेपी की सरकार ने साहसी कदम उठाते हुए बाबा साहेब के सिद्धांतों के अनुरूप संवैधानिक एवं कानूनी अधिकारों को बहाल किया। उपरोक्त दृष्टांत ये साबित करते हैं कि बीजेपी की सरकारें दलित हितों के प्रति ठोस कार्यवाही करते हुए कानूनी एवं संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए कटिबद्ध हैं, जबकि अन्य राजनीतिक दल दलित हित के नाम पर दिखावा करते हुए केवल घड़ियाली आंसू बहाते हैं।
मैं बाबा साहेब का सच्चा अनुयायी हूं एवं उनके ‘सौ कहन एक लिख’ के सिद्धांत में विश्वास करता हूं। भारत में दलितों एवं पिछड़ों की संख्या बहुतायत है, लेकिन आज भी वे सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक क्षेत्र में पिछड़े हुए हैं। अत: देशहित में इनका उत्थान अति आवश्यक है। मेरा मानना है कि जब तक ये ‘टैक्स ईटर्स, टैक्स पेयर’ नहीं बन जाते हैं, तब तक भारत विकसित देश नहीं बन सकता है। मेरा यह भी मानना है कि इनका सर्वागीण विकास केवल दिखावे या वोट की राजनीति से नहीं, बल्कि सच्चे मन से ही किया जा सकता है। उपरोक्त उदाहरणों से साबित होता है कि छप्पन इंच के सीने वाले प्रधानमंत्री में यह क्षमता एवं साहस है कि वे पं. दीनदयाल उपाध्याय के अन्त्योदय के सिद्धांत को मूर्त रूप देते हुए इन वंचित वगरे का सर्वागीण विकास अवश्य करेंगे। बीजेपी के दलित हित में उठाए गए इन ठोस कदमों/कार्यक्रमों से प्रभावित होकर मैंने बीएसपी छोड़कर बीजेपी की सदस्यता ग्रहण की है। मुझे विश्वास है कि इन वंचित वगरे के हितों के प्रति एक सजग प्रहरी के रूप में बीजेपी में मेरी उपयोगिता साबित होगी।
(लेखक पूर्व आयकर आयुक्त हैं)

डॉ. रामसमुझ


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