वैश्विकी : लीबियाई संकट और भारत

Last Updated 21 Apr 2019 12:36:57 AM IST

पश्चिमी एशिया और अफ्रीकी देशों में पिछले दो दशकों से जारी गृह युद्ध, इस्लामी आतंकवाद के बढ़ते प्रभाव और इस क्षेत्र में महाशक्तियों एवं इस्लामी देशों की प्रतिस्पर्धा ने भारत की विदेश नीति के लिए नई समस्या पैदा की है।


वैश्विकी : लीबियाई संकट और भारत

दूरगामी दृष्टि से भारत के सामने दुविधा है कि वह परस्पर विरोधी देशों के साथ अपने कूटनीतिक संबंधों में संतुलन कैसे कायम रखे। तात्कालिक समस्या है कि इन देशों में गृह युद्ध के हालात में वहां फंसे भारतीयों की जान-माल की सुरक्षा कैसे की जाए। पिछले कुछ वर्षो के दौरान विदेश मंत्रालय ने विदेशों में फंसे भारतीयों को बाहर निकालने का अभियान सफलतापूर्वक संचालित किया है। इस दृष्टि से भारत के पास अनुभव है, लेकिन हर देश की स्थिति और संकट का स्तर अलग-अलग है। इसके मद्देनजर विदेश मंत्रालय को अलग-अलग तरीके से अपनी रणनीति बनानी पड़ती है।
नवीनतम संकट अफ्रीकी देश लीबिया में पैदा हुआ है। वहां पांच सौ से अधिक भारतीय फंसे हुए हैं। राजधानी त्रिपोली से उन्हें जल्द से जल्द बाहर निकालने और स्वदेश लाने की कोशिश की जा रही है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा है कि लीबिया के हालात बदतर होते जा रहे हैं तथा भारतीय नागरिकों को जल्द से जल्द लीबिया छोड़ देना चाहिए। फिलहाल, त्रिपोली में हवाई सेवाएं काम कर रही हैं, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि हवाई अड्डा कब तक काम कर सकेगा।

लीबिया के हालात इस समय ऐसे ही हैं, जैसे कभी अफगानिस्तान, इराक और सीरिया में थे। इन तीनों देशों में अपेक्षाकृत स्थिरता आई है, और संघर्ष की स्थिति काफी हद तक नियंत्रण में है। इन देशों के भूभाग पर हथियारबंद विरोधी गुटों का कब्जा है, लेकिन काबुल, बगदाद और दमिश्क पर राष्ट्रीय सरकार का नियंत्रण है, जहां से प्रशासन और सुरक्षा संबंधी उपाय किए जाते हैं। लीबिया की स्थिति इनसे अलग है। वहां राजधानी त्रिपोली पर संकट मंडरा रहा है।
 त्रिपोली का संकट करीब दस वर्ष पहले शुरू हुआ था, जब वहां सक्रिय बाहुबली विद्रोही गुटों ने अफ्रीका के बाहुबली नेता कर्नल गद्दाफी की सत्ता को चुनौती दी थी। पश्चिमी देशों ने लीबिया में सत्ता परिवर्तन की रणनीति के तहत विद्रोही गुटों को सक्रिय समर्थन दिया था। गद्दाफी की स्वतंत्र विदेश नीति और पश्चिमी देशों से उनकी पुरानी अदावत के कारण उन्हें बाहरी हस्तक्षेप का सामना करना पड़ा।
पश्चिमी देशों की मदद से विद्रोही सेनाओं ने उन्हें अपदस्थ करके उनकी हत्या कर दी। इसके बाद से लीबिया गृह युद्ध की जिस स्थिति में पहुंचा है, वह आज तक जारी है। पश्चिमी देश लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्थापना करने और मानवीय पहलुओं की दुहाई देकर सत्ता परिवर्तन का अभियान शुरू करते हैं। लेकिन पिछले दो दशकों का अनुभव बताता है कि अधिनायकवादी सत्ता को हटाने और तानाशाह से मुक्ति दिलाने के इरादे से किया गया बाहरी हस्तक्षेप किस तरह उस देश के नागरिकों के लिए अमानवीय स्थिति का निर्माण करता है। गद्दाफी के पतन के बाद लीबिया के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग हथियारबंद गुटों ने कब्जा कर लिया है। अंतरराष्ट्रीय प्रयासों से त्रिपोली में कायम की गई राष्ट्रीय सरकार के कब्जे वाला क्षेत्र सिकुड़ता चला गया। नागरिकों की दयनीय स्थिति का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि लीबिया में आज खुले बाजार में महिलाओं और गुलामों की खरीद-फरोख्त हो रही है। यहां सत्ता परिवर्तन का आदेश देने वाले पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा अब अपनी गलती का अहसास कर रहे हैं।
लीबिया में प्रधानमंत्री फैय्याज मुस्तफा अल सराज के नेतृत्व वाली सरकार को अंतरराष्ट्रीय प्रयासों से स्थापित किया गया था। इस सरकार को जनरल खलीफा हफ्तार की सेना से चुनौती मिल रही है। हफ्तार ने लीबिया के करीब तीन-चौथाई इलाके पर कब्जा कर लिया है। अब उनकी सेना त्रिपोली की ओर बढ़ रही है। आशंका है कि आने वाले दिनों में वह त्रिपोली पर कब्जा कर लेगी। जनरल हफ्तार को मिस्त्र, सऊदी अरब जैसे देशों का समर्थन हासिल है। अमेरिका और रूस भी इनके साथ संपर्क बनाए हुए हैं। इन देशों को यह आशा है कि  बाहुबली नेता के रूप में जनरल हफ्तार देश में अपेक्षाकृत स्थिरता कायम कर सकेंगे। कब ऐसा होगा, फिलहाल यह नहीं कहा जा सकता।

डॉ. दिलीप चौबे


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