बतंगड़ बेतुक : ..तो वह राष्ट्रवादी देशभक्त था

Last Updated 21 Apr 2019 12:35:23 AM IST

वह अचानक सामने आकर खड़ा हो गया, उसकी मुद्रा में अकड़ झलक रही थी, आंखों में चुनौती छलक रही थी। हमने प्रश्नाकुल दृष्टि से देखा तो वह बोला, ‘मैं आपसे बहस करने आया हूं।’ हमने अपनी निरीह भाषा में कहा, ‘भाई, मुझे देखकर आपको लगता है कि मैं किसी से बहस कर सकता हूं?


बतंगड़ बेतुक : ..तो वह राष्ट्रवादी देशभक्त था

मैं तो जब कभी कुछ मन में आता है तो कह देता हूं या लिख देता हूं। लेकिन बहस से डरता हूं, उससे बचता हूं।’ वह थोड़ा निराश सा दिखता हुआ बोला, ‘उधर कुछ लोग कह रहे थे कि आप थोड़े पढ़े-लिखे इंसान हैं, थोड़े विद्वान हैं, इसलिए राष्ट्रवाद पर मुझसे बात कर सकते हैं, मेरी सुन सकते हैं, और अपनी सुना सकते हैं।’ हमने कहा, ‘भाई राष्ट्रवादी बहस तो टीवी पर शिफ्ट..।’ वह हमारी बात काटकर बोला, ‘हमें मालूम है समाचार चैनलों में राष्ट्रवादी युग आ गया है, राष्ट्रवाद देशभर में छा गया है। पर हमें तो बहस यहां करनी है आपके पास बैठकर, पार्क की इस बैंच पर।’

अजीब जबर्दस्ती है। पर हम जानते थे कि यह रोज का किस्सा है, जबर्दस्ती आज के राष्ट्रवाद का अहम हिस्सा है। हमने अपनी हताश नजर उससे मिलाई तो उसकी आंखों में व्यंग्य भरी मुस्कान उतर आई। वह बोला, ‘तो बताइए, आपके विचार में राष्ट्रवाद क्या है? और यह भी बताइए कि देशभक्ति और राष्ट्रवाद में क्या अंतर है? देशभक्त राष्ट्रवादी बड़ा होता है, या राष्ट्रवादी देशभक्त?’ हमारी सारी पढ़ाई-लिखाई कांपने लगी और हमारी विद्वता जैसी भी थी जिस हाल में थी बगलें झांकने लगी। हमने राष्ट्रवाद के बारे में थोड़ा-बहुत पढ़ा-लिखा था। सो, अपनी सीमित समझ के अनुसार उसे तो थोड़ा बहुत समझा सकते थे, मगर जो विराट अंतर हमारे सामने रखा गया था, उसे समझाने की बारीक समझ कहां से ला सकते थे? हमने कहा, ‘भाई, जिस विचार से, जिस व्यवहार से राष्ट्र के सब लोगों का भला होता हो, जिससे सबको न्याय मिलता हो, सबका समान विकास होता हो, सबको सुरक्षा का अहसास होता हो, हमारे विचार से वही विचार राष्ट्रवाद है, फिर चाहे यह काम धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद के सहारे हो या सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के सहारे। और रही देशभक्ति और राष्ट्रवाद में अंतर की बात तो हमारी समझ से अपने देश से प्यार करने का भाव देशभक्ति है और अपने राष्ट्र पर जरूरत से ज्यादा गर्व करना और इस गर्व को ही सब कुछ मानने का भाव राष्ट्रवाद है, जो कभी-कभी खासा नुकसान भी पहुंचा देता है क्योंकि यह लोगों का विवेक हर लेता है..।’
हम आगे कुछ कह पाते इससे पहले ही उसने हमें रोक दिया और कुछ खिन्न से, कुछ घिन्न से भाव से बोला, ‘बुरा मत मानिए, मगर आप जैसे तथाकथित विद्वान लोगों का यही सबसे बड़ा संकट है। आप पवित्र से पवित्र वस्तु में भी अपवित्रता की मिलावट कर देते हैं, और उसे महामिलावटी माल से भर देते हैं। राष्ट्रवाद धर्मनिरपेक्ष नहीं सिर्फ  सांस्कृतिक होता है, मिलावटी नहीं महज प्राकृतिक होता है। राष्ट्रवाद एक चरम भाव है, इसमें सुख की गहरी अनुभूति है, गर्व की प्रतीति है। इसमें स्वाभिमान का शौर्य है-विजय का दर्प है, शक्ति का उत्तेजन है। अन्याय, अत्याचार, भेदभाव, भ्रष्टाचार, दोहन-शोषण जैसे मानवीय विरूपों से ऊपर उठा देता है, और आपको भावभूमि के सर्वोच्च सिंहासन पर बिठा देता है।’ वह बोले जा रहा था और हमें लगा राष्ट्रवाद उसके भीतर अपने कुंडली खोले जा रहा था।
हमने धीमे से पूछ लिया, ‘मगर भाई, तुम्हारे इस राष्ट्रवाद की भौतिक शक्ति क्या है, इसकी अभिव्यकित क्या है?’ उसने हमें ऐसे देखा जैसे हमारी समझ पर तरस खा रहा हो और हमारे भौतिक अस्तित्व पर दया दिखा रहा हो। वह हमारा मजाक सा बनाता हुआ बोला,‘हमारे राष्ट्रवाद की शक्ति भौतिक नहीं आध्यात्मिक है। मगर आप जैसे लोग न अध्यात्म को समझते हैं,  न संस्कृति को समझते हैं, न संस्कार को समझते हैं। और आप अभिव्यक्ति की बात करते हो तो आंख खोलकर देखिए, कान खोलकर सुनिए, आपको सर्वत्र राष्ट्रवाद की गूंज सुनाई देगी, इसकी छटा दिखाई देगी। मंदिर की घंटियों में, गंगा की आरती में, संत-महात्माओं के भजन-कीर्तन में, हमारी परंपराओं में, हमारी आस्थाओं में, हमारी व्यवस्थाओं में राष्ट्रवाद गूंज रहा है। और यह नहीं दिखाई-सुनाई दे तो हमारे नेताओं के कथनों-भाषणों को सुनो। भारत माता के जयकारों में सुनो, दुश्मन विरोधी नारों में सुनो, शहीदों की श्रद्धांजलियों में सुनो, सेना की कार्रवाइयों में सुनो, हमारी फड़कती भुजाओं में, धड़कते दिलों में सुनो, देश विरोधियों को हमारी चेतावनियों में सुनो..। मगर आप जैसे लोग..।’
इस बीच कुछ दशर्क-श्रोता जुट गए थे जो तालियां बजा रहे थे, उसका उत्साह बढ़ा रहे थे। वह जीत चुका था, बहस में हमें चारों खाने चित कर चुका था। वह बोला, ‘हम समझ गये आपकी इतनी पतली हालत क्यों है। आपने हमारे राष्ट्रवाद को समझ लिया होता तो चार-छह श्रोता आप भी पा जाते, दो-चार टीवी वाले आपके पास भी आ जाते। खैर, नसीब आपका.. और हां, राष्ट्रवादी देशभक्त बड़ा होता है देशभक्त राष्ट्रवादी नहीं .. राम-राम!’ वह हमें चित करके चल दिया, शायद किसी अन्य अ-राष्ट्रवादी को चित करने के लिए।

विभांशु दिव्याल


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