मिशन शक्ति : अंतरिक्ष में सामरिक बढ़त

Last Updated 29 Mar 2019 04:52:29 AM IST

सामरिक और अंतरिक्ष क्षेत्र में एक बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए भारत ने सैटेलाइट को मार गिराने वाली एंटी-सैटेलाइट मिसाइल की सफल लॉचिंग की है।


मिशन शक्ति : अंतरिक्ष में सामरिक बढ़त

भारतीय मिसाइल ने प्रक्षेपण के तीन मिनट के भीतर ही धरती की निचली कक्षा में 300 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित लो अर्थ ऑर्बिट में एक सैटेलाइट को मार गिराया। इसके साथ भारत भी अंतरिक्ष में मारक क्षमता हासिल करने वाले देशों की सूची में शामिल हो गया। अब तक ऐसी शक्ति केवल अमेरिका, रूस और चीन के पास थी। एंटी सैटेलाइट (ए सैट) द्वारा भारत अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम को सुरक्षित रख सकेगा। दुनिया के सभी युद्ध विश्लेषक और रणनीतिकार इस मसले पर एक मत हैं कि भविष्य में वही विश्व पर हुकूमत करेगा जिसके जखीरे में स्पेस वार जीतने के ब्रह्मास्त्र होंगे। जाहिर है कि अंतरिक्ष युद्ध की सामथ्र्य विकसित करनी होगी। भारत ने इस दिशा में पहला, लेकिन प्रभावी कदम बढ़ा दिया है और वह दुनिया में ऐसी उपलब्धि हासिल करने वाले चार देशों के क्लब में शामिल हो चुका है।
अभी तक भारत ने चंद्रमा और मंगल मिशनों के अलावा लंबी दूरी की मिसाइलें विकसित कर परचम लहराया है। दुनिया इसके किफायती और सटीक अंतरिक्ष कार्यक्रमों से हतप्रभ है। ‘मिशन शक्ति’ के तहत कक्षा में घूम रहे सैटेलाइट को धरती से निशाना बनाना इसलिए भी बड़ी उपलब्धि है क्योंकि दुनिया भर के देश अपनी समस्त गतिविधि सैटेलाइट केंद्रित कर चुके हैं। संचार, जीपीएस, नेवीगेशन, सैन्य, मौसम, वित्त सहित आम जीवन से जुड़े मनोरंजन के टेलीविजन चैनल्स, बिजली आदि तमाम चीजें कहीं न कहीं सैटेलाइट से नियंत्रित होने लगी हैं। ऐसे में अगर दुश्मन देश के सैटेलाइट को नेस्तनाबूद कर दिया जाए तो एक तरह से उस पर संपूर्ण काबू हो जाएगा और वह बेबस हो जाएगा। उसके सारे गुप्त कोड लॉक हो जाएंगे। आपातकाल में मिसाइल जैसी चीज का भी इस्तेमाल नहीं कर पाएगा। लड़ाकू विमान और युद्ध पोत जहां के तहां खड़े रह जाएंगे। भारत ने ‘मिशन शक्ति’ से न केवल सैटेलाइट को मार गिराने की विधा विकसित की है, बल्कि इसके जरिये बैलिस्टिक मिसाइलों को पकड़ने वाली तकनीक का आधार भी तैयार कर लिया है।

अंतरिक्ष में भारत का दबदबा बनाने और अंतरिक्ष में देश की संपदा को सुरक्षित रखने के लिए ‘मिशन शक्ति ऑपरेशन’ को अंजाम दिया गया है। इस बड़ी कामयाबी के पीछे देश के वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत है। अग्नि 5 मिसाइल के सफल परीक्षण के समय ही कई विशेषज्ञों ने यह संभावना जताई थी कि भारत के पास अंतरिक्ष में मार करने की क्षमता है। लेकिन उस समय आधिकारिक रूप से इसकी पुष्टि नहीं की गई थी। 2007 में चीन ने जब अपने एक खराब पड़े मौसम उपग्रह को मार गिराया, तब भारत की चिंता बढ़ गई थी। दरअसल, चीन ने अपने दक्षिणी चीन सागर में बढ़ते अमेरिकी दखल को रोकने और अपनी सामरिक क्षमता में अभिवृद्धि के लिए 2007 में इस क्षमता को प्राप्त किया था। हालांकि भारत तब भी ऐसा करने में सक्षम था। लेकिन उस समय राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण इसे अंजाम नहीं दिया जा सका था। इस बाबत इसरो के पूर्व चेयरमैन जी माधवन नायर का यह कथन सच है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वर्तमान में बढ़ते सामरिक खतरों को देखते हुए बिना किसी हिचकिचाहट के इसकी औपचारिक घोषणा कर दी। भारत द्वारा एंटी मिसाइल टेस्ट के बाद किसी अंतरिक्ष युद्ध की स्थिति में अंतरिक्ष में हमें काफी मदद मिलेगी। विशेषज्ञों के अनुसार अगर हमारे किसी सैटेलाइट को नुकसान हुआ तो अब हमारे पास भी दुश्मन देश के सैटेलाइट को गिराने की क्षमता होगी।
लो अर्थ ऑर्बिट धरती के सबसे पास वाली कक्षा होती है। यह धरती से 2000 किमी ऊपर होती है। धरती की इस कक्षा में ज्यादातर टेलीकम्युनिकेशन सैटेलाइट्स को रखा जाता है। इतनी ऊंचाई पर किसी सैटेलाइट को मार गिराना आसान नहीं है, क्योंकि सैटेलाइट बेहद तेज़ गति से, यानी सैकड़ों किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रहा होता है, और इतने छोटे लक्ष्य को सटीकता से भेदना एक बड़ी चुनौती है। यह बंदूक से निकली गोली को 300 किलोमीटर की दूरी पर दूसरी गोली से भेदने जैसा है। एंटी-सैटेलाइट टेस्ट दुर्लभ और बेहद खतरनाक परीक्षण होता है। इसमें सफलता की गारंटी भी नहीं होती लेकिन भारत ने इसे इसरो और डीआडीओ के संयुक्त प्रयास से इसे कर दिखाया। भारत के पास हालिया वक्त तक 48 उपग्रह थे, जो कक्षा में चक्कर काट रहे थे, और यह इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में उपग्रहों को सबसे बड़ा ज़खीरा है, जिसकी सुरक्षा बेहद ज़रूरी है। ‘मिशन शक्ति’ ने इसके प्रति आश्वस्त कर दिया है। 
अंतरिक्ष में दखल की शुरुआत अमेरिका के पहले एंटी-सैटेलाइट टेस्ट 1959 से शुरू हुई थी। इसके कुछ समय बाद ही सोवियत यूनियन ने 1960 और 1970 में यह टेस्ट किया। रूस ने ऐसे हथियार का टेस्ट किया, जिसे ऑर्बिट में लॉंच किया जा सकता है, जो दुश्मन की सैटेलाइट तक पहुंच सकता है और उसे तबाह कर सकता है। इसके बाद अमेरिका ने 1985 में एफ-15 फाइटर जेट से एजीएम-135 का परीक्षण किया और अमेरिकी उपग्रह सोलविंड पी78-1 को तबाह किया। इसके बाद 2007 में चीन भी इस दौड़ में शामिल हो गया। इसके अगले साल अमेरिका ने ऑपरेशन बन्र्ट फॉरेस्ट को अंजाम दिया। इसमें एक शिप का इस्तेमाल करते हुए एसएम-3 मिसाइल का इस्तेमाल कर खुफिया सैटेलाइट को तबाह किया। एंटी सैटेलाइट टेस्ट से मलबा निकलता है, जो दूसरी सैटेलाइट और स्पेस क्रॉफ्ट के लिए समस्या पैदा कर सकता है। मलबे के छोटे-छोटे कण स्पेस में राइफल बुलेट से भी ज्यादा नुकसान पहुंचा सकते हैं। यह कितना खतरनाक है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इंटरनेशनल स्पेस सेंटर किसी भी तरह के मलबे से बचने के लिए नियमित तौर पर अपने ऑर्बिट को बदलते रहते हैं। चीन के 2007 के टेस्ट को अब तक का सबसे विध्वंसकारी टेस्ट माना जाता है। इस टेस्ट के बाद काफी मात्रा में मलबा स्पेस में ही रह गया था। चीन ने यह टेस्ट स्पेस में करीब 800 किमी की दूरी पर किया था।
लेकिन माधवन नायर और विदेश मंत्रालय भी भारत के इस परीक्षण से अंतरिक्ष में मलबा जमा होने की आशंका से इनकार करते हैं। चूंकि यह टेस्ट काफी नीचे किया गया है, जिससे मलबा स्पेस में न रहेगा और वह कुछ हफ्तों में धरती पर आ जाएगा। स्पष्ट है कि पूरी तरह मेड इन इंडिया ‘मिशन शक्ति’ का सफल ऑपरेशन ऐतिहासिक है।

शशांक द्विवेदी


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