होली : अपना-अपना देख लीजिए

Last Updated 21 Mar 2019 01:23:42 AM IST

बतौर मुल्क हम बहुत बड़े फाड्र हैं या अगंभीर हैं, उन मुद्दों पर चर्चा-विमर्श नहीं करते, जिन पर संवाद वक्त की जरूरत है।


होली : अपना-अपना देख लीजिए

विश्व के सबसे प्रदूषित दस शहरों में सात भारत के हैं। इन पर कहीं कोई चिंता नहीं है। हैप्पी होली कहकर हम आगे निकल लेते हैं। हैप्पी करना सिर्फ  होली के बूते की बात नहीं है। होली उल्लास का पर्व है, ऐसा हमें बताया जाता है। बताने भर से उल्लास आ जाए, तो क्या कहने। चुनाव भी सिर पर हैं, झऊआ भर-भर के शुभकामनाएं नेता दे रहे हैं। होली की शुभकामनाएं और चुनावी शुभकामनाएं अगर ठोस कूड़े में बदली जा सकतीं, तो हर नागरिक को अपने घर से कूड़ा उठवाने के लिए कई-कई ट्रकों की दरकार होती। चलिये अच्छा सोचते हैं। अगर इन शुभकामनाओं से बिजली बनाना संभव होता, तो भारत विश्व का सबसे बड़ा बिजली निर्यातक मुल्क बन जाता।
विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों में तो दो दिल्ली के अगल बगल हैं-गाजियाबाद और गुरुग्राम। नोएडा विश्व का छठा सबसे प्रदूषित शहर है। नोएडा में भारत के महत्त्वपूर्ण टीवी चैनलों के मुख्यालय हैं। चौबीस घंटे टीवी चैनलों से पाकिस्तान पर मिसाइलें बरस रही हैं। नार्थ कोरिया के तानाशाह किम जोंग के एटम बम गिर रहे हैं। जाने क्या-क्या गिर रहा है, बस ये चिंताएं नहीं दिखतीं कि हाय हम किस कदर प्रदूषित माहौल में जी रहे हैं? दुनिया भर का गंदा माहौल हमारे शहरों का हो रहा है। राजनीतिक दलों के एजेंडे पर दूर-दूर तक प्रदूषण की चिंता नहीं है। दिल्ली में हर साल अक्टूबर के आसपास सांस लेना दूभर हो जाता है मारे प्रदूषण के। पर कोई बात नहीं है,सब चलता है।

कोई रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली में सांस लेकर लाइफ दो से तीन साल कम हो सकती है, तो इसका जवाब यह हो जाता है कि साठ नहीं जीये, 57 जी लिये, तो क्या हो गया? तीन साल एक्सट्रा जीकर क्या तीर मार लेंगे? भारतीय जनता उल्लसित होने के तैयार बैठी होती है, ऐसा लगता है। कभी होली पर उल्लसित, कभी चुनावों को देखकर उल्लसित। उल्लास जैसा कुछ न हो, तो भी उल्लसित। उल्लास ही उल्लास मिल तो लें। आम भारतीय या तो उल्लसित रहता है, या परम संतोषी। इतना संतोषी कि कई बार तो एक बोतल शराब में ही अपना वोट बेचकर संतोष कर लेता है। संतोषी कहें या समझदार वह जानता है कि लोकतंत्री की लूट में लूट का बड़ा माल-यानी ठेके, पेट्रोल पंप तो बड़े वालों को हाथ लगेंगे, ये छोटे-मोटे आइटम उसके हाथ लग रहे हैं, तो ले लेने चाहिए। चुनाव के बाद तो कोई ये भी नहीं देने वाला। अपनी इस समझ से भी कई भारतीय उल्लसित रहते हैं। वैसे उल्लास की कई वजहें हैं। कोई इस बात पर उल्लसित हो सकता है कि बचपन में वह बीमार हुआ तो उस अस्पताल में गया, जहां डिप्थीरिया की दवाई उपलब्ध थी वरना दिल्ली देश की राजधानी में कई बच्चे इसलिए भी मरे कि वहां डिप्थीरिया की दवाई ही नहीं थी। डिप्थीरिया युक्त दवाईवाले अस्पताल की याद में कोई उल्लसित हो सकता है। कोई उल्लसित हो सकता है कि इस बात पर भी जिन राहों पर वह अब तक गुजरा है, वहां मेनहोल के ढक्कन किसी ने चोरी ना कर रखे। चोरों को धन्यवाद देता हुआ, खुद को जिंदा पाता हुआ, कोई परम उल्लसित हो सकता है।
कोई उल्लसित इस बात पर हो सकता है कि वह उस दिन मुंबई में उस पुल के नीचे नहीं था, जो गिर गया और कई लोगों क मार गया था। इस गिरे हुए पुल की जिम्मेदारी न रेल विभाग की है न मुंबई के नगर निगम। मरने वाले खुद जिम्मेदार थे, क्यों आ गए थे पुल के नीचे। जो उस पुल के नीचे नहीं थे, बच गए, वह उल्लसित हो सकते हैं कि आत्मबधाई उस दिन पुल के नीचे नहीं थे। कोई इस बात पर उल्लसित हो सकता है कि इस बार जब डेंगू मच्छर ने काटा, तो उसके पास दो-तीन लाख रु पये थे और प्राइवेट अस्पताल में जाकर जान बच गई, यद्यपि लूट से न बच पाए। लुटने और जान जाने की च्वाइस के बीच में लुट जाने को समझदार वरीयता दे देते हैं। तो अपने जेब के धन और अपनी समझ से जान बचाने वाले उल्लसित हो सकते हैं। बंदा सोच पॉजीटिव रखे, तो हर हाल में उल्लसित हो सकता है। दिल्ली का कोई कामगार इसलिए उल्लसित हो सकता है कि उसे दस हजार रु पये  की नौकरी मिल गई, यद्यपि दिल्ली में न्यूनतम मजदूरी 14000 रुपये के आसपास है। पर उल्लास की वजह यह हो सकती है कि वह सात हजार रुपये महीने की उस नौकरी में जाकर नहीं मर गया, जिसमें उसे बिना सुरक्षा इंतजामों के सीवर में घुसना पड़ता। जान बची और लाखों पाए-वाले फंडे के हिसाब से बंदा जान बचाकर ही खुश हो सकता है और इस तरह से पंद्रह बार जान बच जाए,तो संबित पात्रा यह भी कह सकते हैं कि देखिये मोदीजी के नेतृत्व में 15-15 लाख रुपये हरेक को दिए जा चुके हैं।
चिंताएं नेता करेंगे आपकी, इस होली पर यह ख्याल छोड़ दें, तो जीवन में  उल्लास आ सकता है। दिग्विजय सिंह को अपने बेटे को विधायक बनवाना है, कमलनाथ को अपने बेटे को सांसद बनाना है, कांग्रेस की सोनिया गांधी अपने बेटे को पीएम देखना चाहती हैं। भाजपा के नेता पुत्र अनुराग ठाकुर पितृछाया में आगे बढ़ेंगे। भाजपा की वसुंधरा सिंधिया अपने एमपी बेटे को मंत्री देखना चाहेंगी। शरद पवार अपने पूरे खानदान को ही मंत्री बने देखना चाहेंगे। चंद्राबाबू नायडू फुल कुनबे के साथ तेलंगाना और आंध्र पर छा जाना चाहेंगे, पर तेलंगाना तो चंद्रशेखर राव के घर की दुकान है।
भाजपा कांग्रेस पर वंशवाद का आरोप लगाती है, पर सच यह है कि वंशवाद भाजपा में भी है, यह अलग बात है कि वंशवाद का स्तर भाजपा में अभी कुटीर उद्योग टाइप का है, कांग्रेस में वंशवाद विराट शोरूम स्तर का है। यानी वंशवाद के कारोबार में कांग्रेस बहुत आगे है।  यूपी और बिहार के तमाम यादव परिवार की शाखाएं राजनीति में फलें-फूलें, ऐसी यादव बुजुगरे की इच्छा होगी। तो अगर आपके पिता या मां किसी टॉप राजनीतिक पोस्ट पर नहीं हैं, तो समझ लीजिए कि आपको अपना भला खुद ही करना पड़ेगा। होली की शुभकामनाएं आपका भला नहीं कर सकतीं। चुनाव में उन्हें चुन लीजिए, जो सबसे कम चोर या सबसे छोटा उचक्का है। पर इसके बाद जो भी भला आप खुद अपनाकर पाएंगे, वही आपका होगा। बाकी तो मन का भरम है। उल्लास भी भरम है, बस होली की गुजिया ठोस सत्य है। इसे उड़ाइए।

आलोक पुराणिक


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