सरोकार : खुशियों का देश बना भारत

Last Updated 24 Mar 2019 06:36:02 AM IST

संयुक्त राष्ट्र की विश्व खुशहाली सूची 2018 में भारत सात पायदान लांघ कर 144वें स्थान पर पहुंच गया है। 2017 में भारत का स्थान 133वां था।


सरोकार : खुशियों का देश बना भारत

फिनलैंड लगातार दूसरे साल भी अव्वल रहा। संयुक्त राष्ट्र सतत विकास समाधान के तहत हर साल खुशहाली की यह रिपोर्ट तैयार की जाती है। 2012 में 20 मार्च को विश्व खुशहाली दिवस घोषित किया गया था। खुशहाली का आकलन छह बिंदुओं के आधार पर तय किया जाता है। इनमें आमदनी, स्वस्थ जीवन प्रत्याशा, सामाजिक समर्थन, स्वतंत्रता, विश्वास और उदारता जैसे मानवीय तत्व शामिल हैं। रिपोर्ट के अनुसार पिछले कुछ वर्षो में पूरी दुनिया की खुशहाली में गिरावट आई है। भारत में यह संकट कुछ ज्यादा है।
इस रिपोर्ट में 156 देशों में मौजूद खुशहाली की पड़ताल की जाती है। इसमें यह भी गौर किया जाता है कि मनुष्य में चिंता और क्रोध जैसी नकारात्मक भावनाओं की किस हद तक वृद्धि हो रही है। अपनी जनता को मानसिक तनाव और अवसाद में देखते हुए कई देशों में खुशी मंत्रालय भी खोले गए हैं। भारत के मध्य प्रदेश में भी आनंद मंत्रालय अस्तित्व में आ गया है। बावजूद यहां किसान, युवा और बुजुर्ग आत्महत्याएं कर रहे हैं। हमारा पड़ोसी देश भूटान वैश्विक प्रसन्नता के मामले में विलक्षण देश है। आकार और भौतिक संसाधनों के रूप में सीमित होने के बावजूद सकल राष्ट्रीय आनंद के पैमाने पर उल्लासमय देश है। यहां आनंद की पहल 1972 में भूटान के चौथे राजा जेश्मे सिंग्ये वांगचुक ने की थी। इस अवधारणा के चलते भूटान की संस्कृति में शताब्दियों से सकल घरेलू उत्पाद वाले भौतिक विकास की बजाय जीवन की गहरी समझ पर आधारित संतोष को तरजीह दिया गया है। संतोष की इस सांस्कृतिक अर्थव्यवस्था को वर्तमान में सरंक्षित रखा गया है।

आज गरीब हो या अमीर कोई भी खुश नहीं है। कोई बेहिसाब धन-दौलत व भौतिक सुख-सुविधाएं होने के बावजूद दुखी है, तो कोई ऊंचा पद-प्रतिष्ठा हासिल करने के बाद भी दुखी है। कोई छात्र पीएमटी या पीईटी में चयन न होने की वजह से दुखी है तो कोई क्रिकेट में भारत की पराजय देखने से दुखी है। बहरहाल, दुख के कारणों का कोई अंत नहीं है। कॅरियर बनाने की होड़ और वैभव बटोरने की जिद ने इसे जटिल बना दिया है। अपेक्षाकृत कम ज्ञानी व उत्साही व्यक्ति में भी विज्ञापनों के जरिए ऐसी महत्वाकांक्षाएं जगाई जा रही हैं, जिन्हें पाना उसके वश की बात नहीं है? फिर सरकारी नौकरी हो या निजी कंपनियों की नौकरी, उनमें रिक्त पदों की एक सीमा सुनिश्चित होती है, उससे ज्यादा भर्ती संभव नहीं होती। ऐसे में एक-दो नंबर से चयन प्रक्रिया से बाहर हुआ अभ्यर्थी भी अपने को अयोग्य व हतभागी समझने की भूल कर बैठता है और कुंठा व अवसाद की गिरफ्त में आकर मौत को गले लगाने के उपाय ढूंढ़ने लग जाता है। ऐसे में परिवार से दूरी और एकाकीपन व्यक्ति को मौत के मुंह में धकेलने का काम आसानी से कर डालते हैं यानी बेहतर जिंदगी मसलन रोटी, कपड़ा और मकान की जद्दोजहद में फंसे हर शख्स को प्रसन्नचित्त बनाए रखने की जरूरत है। इस लिहाज से व्यक्ति का खुश रहना जरूरी है। ध्यान, योग, प्राणायाम और चिंतन से निराश जीवन को खुशहाली में ढाला जा सकता है।

प्रमोद भार्गव


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