बतंगड़ बेतुक : यह आदर्शवादी सैद्धांतिकता है बिरादर!

Last Updated 24 Mar 2019 06:49:23 AM IST

‘देख भाई, हमारी अपनी विचारधारा है, हमारा अपना सिद्धांत है, अपना आदर्श है और इनसे हम कभी समझौता नहीं करते। अपने रास्ते से हम कभी नहीं हटते।’


बतंगड़ बेतुक : यह आदर्शवादी सैद्धांतिकता है बिरादर!

नेताजी ने चिरकुट से दिखने वाले, चुनावों से पार न देख सकने वाले और अपने तथा अपने चैनल के लिए रेटिंग प्वाइंट्स की सतत जुगाड़ में रहने वाले पत्रकार के माइक में मुंह डालकर निद्र्वद्व और निश्चिंत भाव से कहा। पत्रकार का दिमाग चौंधिया गया। उसे नेताजी का इतिहास पता था। नेताजी पहले ग्रांड ओल्ड पार्टी के सिपहसालार थे, इस पार्टी की गुड्डी गिरी तो उन्होंने समाजवाद का दामन थाम लिया था और जब समाजवाद रास नहीं आया तो उन्होंने राष्ट्रवाद को पकड़ लिया था। और अब राष्ट्रवाद ने उनसे पल्ला छुड़ा लिया था और टिकटार्थियों की सूची से उनका नाम हटा लिया था। नेताजी अभी-अभी पार्टी को अपना इस्तीफा थमा आये थे और इस पत्रकार से जा टकराये थे।
पत्रकार ने अचकचा कर कहा, ‘लेकिन लोग कहते हैं कि पार्टी ने आपको टिकट नहीं दिया इसलिए आपने पार्टी छोड़ दी। पार्टी सूत्र कहते हैं कि आप पार्टी सिद्धांतों पर खरे नहीं उतरे..।’ नेताजी तपाक से बोले, ‘एकदम गलत बात। जो ऐसा कहते हैं एकदम गलत कहते हैं, फालतू बकते हैं। सच्चाई यह है कि पार्टी हमारे सिद्धांत पर खरी नहीं उतरी। खरी उतरती तो क्या हमारा टिकट काटती, किसी और को बांटती?’ पत्रकार ने फिर सवाल दागा, ‘पार्टी सूत्रों का कहना है कि आप जनाकांक्षाओं पर भी खरे नहीं उतरे।

पार्टी की उम्मीद बनकर नहीं उभरे।’ नेताजी ने मुंह में मसाले की जुगाली की, पीक खाली की और बोले, ‘सच्चाई यह है कि पार्टी ही जनाआकांक्षाओं पर खरी नहीं उतरी। जो हमारी आकांक्षा वही जनता की आकांक्षा। जब पार्टी हमारी आकांक्षाओं पर खरी नहीं उतरी तो जनता की आकांक्षाओं पर कैसे खरी उतर सकती है, मगर पार्टी तो पार्टी है यह बात कैसे कह सकती है।’ पत्रकार ने कहा, ‘पार्टी सोचती थी कि आपको चुनाव लड़वाएंगे तो आप चुनाव हार जाएंगे।’ नेताजी बोले, ‘पार्टी का गलत सोचना है और यही उसका विचारधारा से हटना है। जब हम पार्टी को खिलाएं-पिलाएं, पार्टी को मजबूत बनाएं, तन-मन-धन उसकी सेवा में लगाएं तो हम पार्टी के कहलाएं, नहीं तो अपना रास्ते नापें, टहल जाएं। ऐसी सिद्धांतविहीन पार्टी के साथ कैसे रहा जाये, इसे कैसे सहा जाये।’ पत्रकार ने फिर अपनी शंका रखी, ‘लोग कहते हैं आपने पार्टी में और पार्टी सरकार में रहते हुए खूब पैसा बनाया। खुद भी खाया, दोस्त-रिश्तेदारों को भी खिलाया। न खाऊंगा न खाने दूंगा में आपने कभी भरोसा नहीं किया इसलिए पार्टी ने आप पर भरोसा नहीं किया।’
नेताजी बोले, ‘हमें नहीं मालूूम भरोसा करने न करने में पार्टी का क्या मंतव्य है लेकिन हम आदर्शवादी व्यक्ति हैं और अपने मूल आदर्श पर डटे रहना ही हमारा कर्तव्य है।’ पत्रकार बोला, ‘लोग कहते हैं कि आप हमेशा दल-बदल करते हैं, जहां आपके स्वार्थ पूरे नहीं होते वहां से उड़ जाते हैं और जहां स्वार्थ पूरे हों वहां जुड़ जाते हैं।’ नेताजी मुस्कुराए, ‘देख बिरादर पत्रकार, हम जो कुछ करते हैं अपने सिद्धांत और अपनी विचारधारा के अनुसार करते हैं, इसीलिए हर काम सोच समझकर करते हैं। हमारी राजनीति सिद्धांत और समझदारी की राजनीति है। जो हमारे सिद्धांत के अनुकूल हो वही हमारी नीति है अन्यथा अनीति है।’ पत्रकार ने पूछा, ‘मगर आपकी दल-बदल,,,’ नेताजी फिर मुस्कुराए, ‘भाई जब पार्टियां पाला बदलती हैं, कल कुछ और कहती थीं आज कुछ और कहती हैं, कल जिन्हें गालियां देती थीं आज उन्हीं के साथ गलबहियां करती हैं, तब तो तुम लोग तवज्जो नहीं देते हो, इसे रणनीति और गठबंधन बताते हो और हम कोई सैद्धांतिक कदम उठाएं तो आसमान सर पर उठा लेते हो। यह सरासर अवसरवादिता है, पीत-पत्रकारिता है।’ पत्रकार व्यवहारवादी था, नेताओं के ऐसे आरोपों का आदी था, बोला, ‘लोग कहते हैं कि आपने अपने क्षेत्र के मतदाताओं की भावनाओं पर ध्यान नहीं दिया है और पार्टी छोड़कर उनका अपमान किया है।’ नेताजी बोले, ‘फिर वही उलटी बात। सीधी बात यह है कि मतदाता चाहते थे कि टिकट हमें मिले और हमारी जीत से उनकी भावनाओं को बल मिले। हमें टिकट न देकर पार्टी ने मतदाताओं का असम्मान किया है, उनकी भावनाओं का अपमान किया है। हम जिधर जाएंगे, मतदाता हमारे हैं वे उधर ही आएंगे।’ पत्रकार ने पूछा, ‘तो यही बता दीजिए कि अब किधर जाएंगे, किसके साथ गोटी बिठाएंगे?’ नेता हंसा, ‘देख पत्रकार, जो हमारी आकांक्षाओं को समझ पाएगा, कभी उनके आड़े नहीं आएगा वही हमारा समर्थन पाएगा। सवाल सिद्धांत का है, विचारधारा और आदर्श का है। जिस दल को हम अपने विचार और सिद्धांत के अनुकूल पाएंगे, हम उसी के साथ गठबंधन बनाएंगे।’
बिना हैरानी-परेशानी के जो उसे सूझा पत्रकार ने उसे ही अंतिम सवाल बनाकर पूछा, ‘तो अब अपने सिद्धांत, आदर्श और विचारधारा का मतलब बताइए, इनसे आपका क्या आशय है थोड़ा समझाइए?’ नेताजी ने पत्रकार को ऐसे देखा जैसे किसी उजबक को देख रहे हों। फिर प्यार से बोले, ‘तू अभी तक हमारे विचार, सिद्धांत और आदर्श को नहीं समझ पाया, तुझे आखिर पत्रकार किसने बनाया? हमारे बारे में थोड़ी समझदारी बढ़ाना तब अगला इंटरव्यू लेने आना।’

विभांशु दिव्याल


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