उत्तराखंड : मैदानी जिलों तक ही विकास!

Last Updated 21 Mar 2019 01:21:20 AM IST

पहाड़ों से बड़े पैमाने पर हो रहे पलायन को रोकने और केंद्र और राज्य सरकारों के डबल इंजन के प्रयासों से उत्तराखंड की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से भी अधिक ले जाने के राज्य सरकार के खोखले दावों की पोल उसी के द्वारा विधानसभा में पेश की गई आर्थिक सव्रेक्षण रिपोर्ट 2018-19 ने खोल कर रख दी है।




उत्तराखंड : मैदानी जिलों तक ही विकास!

रिपोर्ट के अनुसार राज्य के विकास की गाड़ी पहाड़ पर चढ़ ही नहीं पा रही है, जिस कारण सारी विकास गतिविधियां प्रदेश के तीन मैदानी जिलों तक ही सिमट गई है।
प्रदेश की 64 प्रतिशत परिवार महज 5 हजार रुपये महीने पर गुजारा कर रहे हैं। हरिद्वार में प्रति व्यक्ति आय ढाई लाख से ऊपर चली गई है, जबकि कुछ पहाड़ी जिलों में प्रति व्यक्ति आय 90 हजार भी नहीं पहुंच पाई है। पहाड़ों की जो कुछ आय दिखाई गई है वह भी चुनिंदा कस्बों के साधन सम्पन्न लोगों की है अन्यथा अधिकांश परिवार मनरेगा की लगभग 1458 रुपये मासिक आमदनी पर गुजारा कर रहे हैं। विकास के मामले में इतनी अधिक विषमता की जानकारी के बावजूद त्रिवेन्द्र सरकार के 2019-20 के बजट में भी इन पहाड़ी परिवारों को गरीबी से मुक्ति दिलाने के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया है।

त्रिवेन्द्र सरकार पिछले दो सालों से प्रदेश के 84.37 प्रतिशत पहाड़ी भूभाग में विकास गतिविधियां तेज कर इस क्षेत्र से बड़े पैमाने पर हो रहे पलायन को रोकने के दावे कर रही है। इस दिशा में सरकार ने ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग का गठन किया था, जिसके अनुसार उत्तराखंड में पिछले 10 सालों में 3,946 ग्राम पंचायतों से 1,18,981 लोग स्थायी और 3,83,726 लोग अस्थाई रूप से अपने गांव छोड़ गए हैं। इस सीमान्त राज्य में इतने बड़े पैमाने पर हो रहे पलायन से राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरा उत्पन्न हो गया है। लेकिन इतना जानते हुए भी त्रिवेन्द्र सरकार ने कोई खास कदम नहीं उठा पाई है। त्रिवेन्द्र सरकार का दावा है कि राज्य की प्रति व्यक्ति आय 1,74,622 रुपये है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर प्रति व्यक्ति आय अभी तक 1,12,835 ही है। लेकिन यह आर्थिक उन्नति केवल तीन मैदानी जिलों हरिद्वार, देहरादून और उधमसिंहनगर तक ही सिमट गई है। उत्तराखंड के 63.41 प्रतिशत परिवार महीने में पांच हजार रुपये से कम की आय पर गुजारा कर रहे हैं। 21 प्रतिशत परिवार 10 हजार रुपये महीने से कम जबकि 14 प्रतिशत लोग महीने में दस हजार से अधिक कमाते हैं। हरिद्वार की प्रति व्यक्ति आय जहां 2,54,050 तक पहुंच गई, वहीं रुद्रप्रयाग जिले की प्रति व्यक्ति आय 83,521 रुपये से आगे नहीं बढ़ पाई। प्रदेा के 9 पहाड़ी जिलों में औसत प्रति व्यक्ति आय केवल 89994.88 रुपये के करीब है वहीं तीन मैदानी जिलों की औसत प्रति व्यक्ति आय 2,12,429 से अधिक पहुंच गई है। इस हिसाब से 10 पहाड़ी जिलों में प्रति व्यक्ति की प्रति माह आय 7499.57 रुपये बैठती है। यह आय भी पहाड़ी नगरों तक ही सीमित है। सामान्यत: पहाड़ के ग्रामीण मनरेगा में 100 दिन के रोजगार की गारण्टी के तहत औसतन 1458 रुपये प्रति माह की कमाई पर गृहस्थी चला रहे हैं।
पहाड़ों में भी सारी आर्थिक गतिविधियां चारधाम यात्रा मार्ग, जिला, तहसील और ब्लाक मुख्यालयों के छोटे बड़े नगरों तक ही सीमित हैं। राज्य सरकार का सारा ध्यान प्रदेश के 15.63 प्रतिात मैदानी भूभाग पर ही केंद्रित होने के कारण पहाड़ों पर विकास की गतिविधियां केवल औपचारिकता के तौर पर चल रही है। राज्य की अर्थव्यवस्था में मुख्य रूप से कृषि, बागवानी, विनिर्माण, निर्माण, व्यापार, होटल एवं जलपान गृह, परिवहन, भण्डारण, संचार एवं प्रसारण से संबंधित सेवा आदि गतिविधियों का योगदान रहता है। इसी आधार पर सकल राज्य घरेलू उत्पाद तय होता है। मगर इस राज्य में सारी आर्थिक गतिविधियां मैदानी जिलों तक सिमट गई है। पहाड़ों में जो गतिविधियां हैं भी वे पहाड़ी नगरों के इतर कहीं नहीं हैं। इसीलिए प्रचलित भावों पर राज्य का कुल घरेलू उत्पाद 2,14,933 करोड़ रुपये तक और 2018-19 में यह 2,37,147 करोड़ रुपये तक पहुचने का अनुमान है। इसमें भी सर्वाधिक 58,168.24 लाख रुपये सकल घरेलू उत्पाद हरिद्वार जिले का और सबसे कम 2,510.40 लाख रुपये रुद्रप्रयाग जिले का है। राज्य के 10 में से 9 पहाड़ी जिलों का औसत सकल घरेलू उत्पाद 4849.20 लाख करोड़ है तो अकेले तीन मैदानी जिले हरिद्वार, देहरादून और उधमसिंहनगर का औसत सकल घरेलू उत्पाद 45,447.39 लाख रुपये है।

जयसिंह रावत


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