आतंकवाद : नये किस्म का क्रूसेड्स

Last Updated 18 Mar 2019 05:04:52 AM IST

न्यूजीलैंड जैसा देश, जहां हिंसा की घटना वर्षो से अपवाद रही हो, अचानक किसी मजहबी स्थल पर खून की होली खेली जाए, सरकार, पुलिस और आम नागरिक की क्या मानसिक दशा होगी, इसका अनुमान ही लगाया जा सकता है।


आतंकवाद : नये किस्म का क्रूसेड्स

‘ग्लोबल पीस इंडेक्स’ यानी ‘वैश्विक शांति सूचकांक’ में न्यूजीलैंड 2017 एवं 2018 में दुनिया का दूसरा सबसे शांत देश माना गया।
2007 से 2016 के बीच यहां हत्याओं के मामले दहाई अंक में भी नहीं थे। हां, 2017 में हत्या के 35 मामले सामने आए और पूरे देश में चर्चा का विषय बने। ऐसे देश में 49 लोगों को दिनदहाड़े गोलियों से भून दिया गया। वह भी मजहब विशेष को निशाना बनाकर। हमलावर ने क्राइस्टचर्च के अल नूर मस्जिद और उपनगरीय इलाके लिनवुड मस्जिद में जुमे की नमाज का समय चुना ताकि एकत्रित मुसलमानों को अधिक से अधिक संख्या में मार सकें। दुनिया भर में हो रहे आतंकवादी हमलों की प्रवृत्ति के बीच इस हमले के पीछे का विचार इतना खतरनाक है कि अगर इसका विस्तार हो गया तो दुनिया का बड़ा भाग हिंसा-प्रतिहिंसा का शिकार हो जाएगा। इसे व्हाइट सुप्रीमेसी यानी ेत सबसे उच्च हैं, और उनका ही वर्चस्व होना चाहिए जैसी सोच की परिणति भी माना गया है। हमारे पास पूरी जानकारी मुख्य हमलवार 28 वर्षीय ब्रेंटन टैरंट के सोशल मीडिया पोस्ट एवं उसके द्वारा बनाए गए मैनिफेस्टो पर आधारित है। हमलावर ने व्हाइट सुप्रीमैटिस्ट होने का संदेश दिया है पर इसका प्रयोग किस संदर्भ में किया है, यह मूल बात है। जरा सोचिए, हमलावर ने हमले के पूर्व फेसबुक पर घोषणा कर दी थी कि हिंसा की लाइव स्ट्रीमिंग करेगा। उसने 17 मिनट तक फेसबुक पर लाइव किया।

टैरंट ने फेसबुक पोस्ट में-हमला क्यों किया-शीषर्क के तहत लिखा है कि यह विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा हजारों लोगों की मौत का बदला लेने के लिए है। उसके द्वारा बनाए मैनिफेस्टो का शीषर्क है-द ग्रेट रिप्लेसमेंट यानी महान बदलाव। मैनिफेस्टो में टैरंट ने 2017 में स्वीडन के स्टॉकहोम में एक उज्बेक मुसलमान द्वारा भीड़ पर ट्रक चढ़ाने की घटना का जिक्र किया है, जिसमें 5 लोगों की मौत हो गई थी। हमले में 11 साल की एक स्वीडिश बच्ची की मौत ने उसे झकझोर दिया था। यहां से जब वह फ्रांस पहुंचा तो शहरों और कस्बों में प्रवासियों की भीड़ देखकर हिंसा का निश्चय कर बैठा। प्रवासियों से उसका मतलब मुस्लिम शरणार्थियों और प्रवासियों से है।
हाल के वर्षो में जेहादी आतंकवादियों द्वारा ब्रिटेन, फ्रांस, बेल्जियम, स्वीडन..में हमलों ने उसके अंदर विचार पैदा किया कि मुसलमान श्वेतों पर विजय पाने के लक्ष्य से हिंसा कर रहे हैं। उसकी नजर में इसका जवाब श्वेतों की प्रतिहिंसा ही हो सकती है। इन विचारों से साफ हो जाता है कि उसके अंदर हिंसा द्वारा श्वेत सर्वोच्चता का नासमझ विचार पनपा तो जेहादी आतंकवादी हमलों के कारण। यह विचार किसी एक टैरंट के अंदर पैदा नहीं हुआ होगा। ऑस्ट्रेलिया से लेकर यूरोप, अमेरिका..सब जगह जेहादी आतंकवाद को लेकर मुसलमानों के बारे में ऐसी भावना व्यापक रूप से फैली है। शरणार्थियों एवं प्रवासियों पर छोटे-बड़े हमलों की घटनाएं चारों ओर हुई हैं।
मुसलमानों को शरण देने का इन देशों में तीव्र विरोध हो रहा है। नई पीढ़ी के अंदर इस्लाम एवं ईसाइयत के संबंधों का इतिहास पढ़ने की प्रवृत्ति बढ़ी है। इस पर पुस्तकें और वेबसाइट आ रही हैं। इनमें क्रूसेड्स यानी इस्लाम एवं ईसाइयत के बीच चले धर्मयुद्धों का इतिहास भी है। बताया जाता है कि जिन देशों में इस्लाम है, उनमें ज्यादातर में कभी ईसाइयत थी यानी इस्लाम ने हिंसा और मारकाट से इस्लाम का फैलाव किया है।  न्यूजीलैंड में किसी को शरण मिलना अत्यंत आसान है। न्यूजीलैंड की करीब 49.5 लाख की आबादी में मुसलमानों की संख्या डेढ़ लाख के आसपास होगी। लेकिन इनकी बिल्कुल अलग मजहब आधारित जीवन शैली को एक वर्ग पचा नहीं पाता। हमलावर के ट्विटर अकाउंट पर पोस्ट किए गए संदेश में मुस्लिमों और अल्पसंख्यकों पर होने वाले हमले का जश्न मनाने की बात कही गई। टैरंट ऑस्ट्रेलिया का नागरिक है, लेकिन उसने हमला करने की जगह न्यूजीलैंड को चुना। उसने लिखा कि न्यूजीलैंड जैसे देश में हमले से स्पष्ट संदेश जाएगा कि धरती पर कोई जगह उनके लिए सुरक्षित नहीं है। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने उसे दक्षिणपंथी, हिंसक आतंकवादी करार दिया है। आप इसके लिए जो भी नाम दे दीजिए, यह विचार गलत है लेकिन शून्य में पैदा नहीं हुआ। आईएसआईएस, अल कायदा, अल सबाब, तालिबान जैसे संगठन अपने घृणित मजहबी विचारों पर आधारित आतंकवादी घटनाओं को अंजाम नहीं देते और पश्चिम को पराजित करने का विष विचार नहीं फैलाते तो प्रतिक्रिया का कोई कारण ही नहीं रहता। यह हमला उसी तरह है, जैसे आईएसआईएस ने ‘लोन वूल्फ’ का सिद्धांत दिया यानी जो जहां है, और उसके पास जो कुछ भी उपलब्ध है, उसी से हमला करे। टैरंट के किसी संगठन का सदस्य होने का प्रमाण नहीं है।
हां, उसने अति राष्ट्रवादी संगठनों को दान देने और एंटी-इमिग्रेशन ग्रुप से संपर्क करने की बात लिखी है। वह पहले कम्यूनिस्ट था। उसने अपने लिए इको-फासिस्ट शब्द का प्रयोग किया है। ट्विटर हैंडल से एक फोटो ट्वीट की गई, जिसमें दिखी बंदूक का इस्तेमाल हमले में किया गया। इस पर एक संदेश था, जिसमें ऐसे लोगों के नाम लिखे थे, जिन्होंने नस्ल और मजहब के नाम पर लोगों को मारा था। उसके विचारों और तौर-तरीकों से आप इको फासिस्ट का मतलब समझ सकते हैं। यह निश्चय ही खतरनाक विचार है, जिसको आगे बढ़ने से पहले हर हाल में रोका जाना चाहिए किंतु जब तक जेहादी विचारधारा पर आधारित आतंकवाद खत्म नहीं होगा, पश्चिमी यूरोप एवं अन्य जगह रहने वाला मुस्लिम समुदाय अपने मजहबी कर्मकांड का पालन करते हुए भी अन्य धर्मावलंबियों के साथ घुलने-मिलने का स्वाभाविक व्यवहार नहीं करता इसे रोकना संभव नहीं है। नहीं रु का तो यह दो मजहबों के बीच जगह-जगह हिंसक हमले और प्रतिहमले का कारण बन सकता है। यह एक नये किस्म का क्रूसेड्स होगा।

अवधेश कुमार


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