वैश्विकी : जीतना होगा कश्मीरियों का मन

Last Updated 17 Mar 2019 01:37:27 AM IST

जैश-ए-मोहम्मद का आतंकवादी सरगना मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने की भारतीय मुहिम असफल नहीं हुई है। उसमें कुछ समय के लिए व्यवधान आया है।


वैश्विकी : जीतना होगा कश्मीरियों का मन

विदेश मंत्रालय का मानना है कि सुरक्षा परिषद के पंद्रह में से चौदह सदस्यों का उसके साथ आना उसकी बड़ी कूटनीतिक जीत है। चीन के विरोध के कारण मसूद को वैश्विक आतंकवादी घोषित किए जाने की मुहिम केवल कुछ महीनों के लिए ही टली है। तीन महीने बाद भारत फिर इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उठाएगा। विदेश मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि चीन के अड़ियल रुख के कारण वे अपना धैर्य खोने वाले नहीं हैं।
भारत ने इस मुद्दे पर जो लामबंदी की है, उसका दबदबा चीन भी महसूस कर रहा है। चीन के विदेश मंत्रालय ने अपने स्पष्टीकरण में कहा है कि वह इस मुद्दे पर विचार करने के लिए कुछ समय चाहता है। जाहिर है कि चीन नहीं चाहता कि विश्व बिरादरी में संदेश जाए कि किसी कुख्यात आतंकवादी का बचाव कर रहा है। चीन ने यह भी गौर किया होगा कि सुरक्षा परिषद में इस मुद्दे को टाले जाने के बाद फ्रांस सरकार ने मसूद के खिलाफ अपने स्तर पर ऐसे ही प्रतिबंध लगा दिए हैं। आने वाले दिनों में भारतीय भूमि पर यदि और कोई आतंकवादी कार्रवाई हुई तो चीन के पास कोई बहाना नहीं रहेगा। मौजूदा हालत यह है कि भले ही औपचारिक रूप से मसूद को वैश्विक आतंकवादी घोषित न किया गया हो, लेकिन दुनिया ने मान लिया है कि वह ऐसा अवांछनीय व्यक्ति है, जिसकी गतिविधियों को सभ्य समाज में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। जहां तक भारत और चीन के द्विपक्षीय संबंधों का सवाल है, दोनों देश मसूद को लेकर आपसी संबंधों को बिगड़ने नहीं देंगे।

गौर करने वाली बात है कि भारत ने जब बालाकोट के आतंकी अड्डे पर हवाई कार्रवाई की थी, तब चीन ने तटस्थ रुख अपनाया था। भारत के लिए यह स्थिति बहुत अनुकूल है कि पाकिस्तान के साथ उसके शक्ति परीक्षण में चीन तटस्थ रहे और भारत-चीन सीमा पर शांति और सामान्य स्थिति बनी रहे। भारत मसूद के खिलाफ योजनाबद्ध तरीके से अपनी मुहिम को आगे भी जारी रहेगा और रखना भी चाहिए, लेकिन वास्तविकता है कि पिछले बीस वर्षो का आतंकवादियों से संबंधित सुरक्षा परिषद का इतिहास देखा जाए तो इस वैश्विक संगठन को कोई विशेष सफलता नहीं मिली है। 26/11 के मुंबई हमले के बाद हाफिज सईद को संयुक्त राष्ट्र ने वैश्विक आतंकवादी घोषित किया था। मगर पाकिस्तान की अदालत से वह छूट गया और आज खुलेआम घूमता और आतंकी प्रशिक्षण केंद्र चलाता है। सुरक्षा परिषद की 1267 अल कायदा प्रतिबंधित समिति के तहत प्रतिबंधित करने के प्रस्ताव की धार कुंद करने के लिए पाकिस्तान ने जैसी रणनीति बनाई है, वह समझने वाली बात है। लादेन के विरुद्ध हो या तालिबान के विरुद्ध, इन सभी में अमेरिका और यूरोपीय देशों की कार्रवाइयां ही प्रभावी रही हैं।
इन सब घटनाओं से भारत को सबक लेने की जरूरत है। उसे सुरक्षा परिषद पर निर्भर रहने के साथ-साथ व्यक्तिगत तौर पर भी कार्रवाई करने में सक्षम होना चाहिए। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद मसूद को आतंकवादी सूची में ला पाई या नहीं, भारत को जरूरत इस बात की है कि वह स्वयं अपने घर को मजबूत करे। वह सबसे पहले तो यह सुनिश्चित करे कि पाकिस्तान में जमे हुए आतंकवादी समूह भारतीय सीमा में घुस न सकें। इसके लिए उसे अपनी सीमाओं की चौकसी और अधिक मजबूत करनी होगी। लेकिन इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि उसे गंभीरता से इस पर विचार करना होगा कि जम्मू-कश्मीर में जैश-ए-मोहम्मद, लश्करे तैयबा, हिज्बुल मुजाहिद्दीन जैसे आतंकी समूह फिर से प्रभावशाली क्यों हो उठे हैं? और क्यों इनका प्रभाव बढ़ता जा रहा है?
भारत को इस पर भी गंभीरता से विचार करना चाहिए कि वह अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था को, लोकतांत्रिक वैचारिकता को कश्मीरी मन में प्रभावी ढंग से स्थापित क्यों नहीं कर पाया? पिछले चार दशकों में वह कश्मीरी आतंकवाद का प्रभावी समाधान क्यों नहीं खोज पाया? भारत को ध्यान रखना चाहिए कि कश्मीरी जनता का मन बदले बिना वह न तो अलगाववाद पर काबू पा सकता है, और न ही पाकिस्तान प्रेरित आतंकवाद को नियंत्रित कर सकता है। भारत की गंभीर समस्या यही है, जिस पर गहन विचार की जरूरत है।

डॉ. दिलीप चौबे


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