बतंगड़ बेतुक : चहुंदिश बम-बम राफेल की

Last Updated 17 Mar 2019 01:35:23 AM IST

अच्छा हुआ या बुरा हुआ, यह अभी तक तय नहीं हुआ। मगर राफेल बहुत खुश हुआ। कभी बोफोर्स नाम की तोप आई थी, उसने भी खूब धूम मचाई थी।


बतंगड़ बेतुक : चहुंदिश बम-बम राफेल की

खूब गोले छूटे, लेकिन जहां पहुंचने चाहिए थे, वहां नहीं पहुंचे और जहां नहीं पहुंचने चाहिए थे, वहां पहुंचे और खूब फूटे। तकदीरें इधर से उधर हो गयीं, सत्ताएं उलट-पलट हो गयीं। अब भी उसकी धमक सुनाई दे जाती है, राजनीति की मंडी में अब भी उसके  नाम की कसम खाई जाती है। और अब राफेल! जिस कंपनी की कोख से उसने जन्म लिया उसे पता नहीं लगा, जिस देश से उड़ान भरनी थी उसे पता नहीं लगा, जिस देश में उतरना था उसे पता नहीं लगा और खुद राफेल को पता नहीं लगा कि उसकी मारक क्षमता इतनी कराल-विकराल होगी और उसकी प्रहार भूमि इतनी विराट-विशाल होगी।
राफेल ने संसद में धमाके किये, कैग में धमाके किये, सर्वोच्च न्यायालय में धमाके किये। उसे कोई कष्ट भी नहीं उठाना पड़ा, धमाके के लिए बालाकोट नहीं जाना पड़ा। कभी वह सत्ता पक्ष की ओर से विपक्ष पर गोले गिराता है तो कभी विपक्ष के गोले सत्ता पक्ष पर गिराता है। चोर को साहूकार बनाता है और चौकीदार को चोर बनाता है। कभी नेताओं के दिमाग पर धमाके करता है तो कभी मीडिया से दिमाग छीन कर निरीह दर्शकों पर बमबारी करता है। विपक्ष उसकी मारक क्षमता का कायल हो गया है और सत्ता पक्ष उसके औचक प्रहार से काफी कुछ घायल हो गया है।

राफेल खुश है अपनी अद्भुत मारक क्षमता का साक्षात्कार कर, अपनी अब तक की गोपन शक्तियों का उद्घाटन कर। वह हवा से जमीन पर या हवा से हवा में ही नहीं लोगों के दिल-दिमाग पर भी वार कर सकता है। पक्ष से विपक्ष और विपक्ष से पक्ष पर वार कर सकता है। मतदाताओं का मन बदल सकता है, नेताओं की तकदीर बदल सकता है और इतने विशाल भारत का भविष्य बदल सकता है।
वह चारों तरफ घूमा, अपनी विजित भूमि को देखा और गर्व से झूमा। सोचा, कंपनी के गोदाम से बिना निकले, बिना उड़े, बिना कहीं उतरे ही वह इतने बम गिरा सकता है, भारत के खर-दिमाग से लेकर खरे-दिमाग तक सबका संतुलन डिगा सकता है, किसी को देशद्रोही तो किसी को देशभक्त बना सकता है, देश को सुरक्षित कर सकता है तो सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है। जब पक्ष-विपक्ष की हार-जीत उस पर टिक गयी है, इतने बड़े देश की अस्मिता उसके आगे झुक गयी है, तब अपनी पवन-पराजेय रफ्तार से वह सचमुच यहां उतरेगा तब तो न जाने क्या-क्या कर गुजरेगा।
तभी किसी ने उसकी पीठ पर धौल जमायी और उसने अपनी गर्दन घुमायी। देखा, एक कुछ निराकार-सी, कुछ-कुछ साकार सी, कुछ धुंधली और कुछ उजली-सी बृहदाकार मूरत खड़ी है, जिसकी व्यंग्य-दृष्टि उसके चेहरे पर गढ़ी है। वह अमूरत-सी मूरत बोली, ‘मन में ज्यादा भ्रम मत पाल, दिमाग को ज्यादा मत उछाल। तू जब तक नहीं उड़ा है, तभी तक लोगों के दिल-दिमाग पर चढ़ा है। जिस दिन उड़ान भरकर तू सचमुच यहां आ जाएगा, तेरा सारा मुलम्मा उतर जाएगा। तू ज्यादा से ज्यादा दो-चार पेड़ उखाड़ेगा और तीन-चार कौवे मार पाएगा। आज जो तू ताकतवर दिख रहा है उसके पीछे तेरी नहीं मेरी ताकत है, जिस पर भी तू खुद को ताकतवर समझता है तो ये तेरी हिमाकत है।’
राफेल ने कुछ सहमते-झिझकते पूछा, ‘मान्यवर, आप मुझे क्यों डरा रहे हैं? मेरी ताकत को अपनी ताकत क्यों बता रहे हैं?’ वह धुंधली-सी, उजली-सी मूरत हंसी, ‘तू बता, बोफोर्स तोप ने जो ताकत पायी थी वह कहां से आयी थी। वह उसने मेरी गोद में बैठकर पायी थी। तू अगर अपनी ताकत पर इठलाया हुआ है तो उसकी वजह यह है कि मैंने तुझे अपनी गोद में बिठलाया हुआ है।’ राफेल बोला, ‘महाशय, कुछ समझाइए, अपना परिचय बताइए, मेरे दिमाग की धुंध मिटाइए।’ वह निराकार-साकार मूरत बोली, ‘मैं तो वह हूं जो इस देश के कण-कण में व्याप्त है। मैं सर्वकालिक हूं, नेता-अधिकारी-व्यापारी सबका मालिक हूं। मैं अजर हूं, अमर हूं। न मुझे कोई शस्त्र छेद सकता है न अस्त्र भेद सकता है। न मुझे अग्नि जला सकती है, न जल डुबा सकता है, न पवन सुखा सकता है। मैं जहां होता हूं वहां तो होता ही हूं, जहां नहीं होता वहां भी दिखता हूं। लोगों के भाग्य अपने हाथ से लिखता हूं। जो भी चुनाव में जाता है मुझे मिटाने की बात करता है मगर खुद मिट जाता है। जो मिटना नहीं चाहता वह मेरी गोद में आ जाता है। मैं इस देश की सड़ी-गली आत्मा हूं, मैं ही परमात्मा हूं। मैं कभी मुखर तो कभी मौन हूं। मैं कदाचार-अनाचार का बाप हूं। अब समझा मैं कौन हूं।’
राफेल के ज्ञान चक्षु खुल गये, उसके सारे संशय धुल गये। उसने सम्मुख खड़ी महाशक्ति के आगे सर झुका दिया, उससे आशीर्वाद लिया और आगे का कार्यक्रम तय किया। अब उसे सर्वोच्च न्यायालय से उड़ान भरनी थी और चुनावी यु़द्ध में जोर-शोर से बमबारी करनी थी।

विभांशु दिव्याल


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