काशी विश्वनाथ : पुनरुद्धार से बदलेगी सूरत
वाराणसी के धार्मिंक-सांस्कृतिक महत्त्व को बताने की आवश्यकता नहीं। गंगा यहीं उत्तर वाहिनी होती है और द्वादश ज्योर्तिलिंगों में एक काशी पुराधिपति भी यहीं हैं।
![]() काशी विश्वनाथ : पुनरुद्धार से बदलेगी सूरत |
वाराणसी में पिछले करीब एक वर्ष से ज्यादा समय से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पुनर्निर्माण योजना को लेकर विरोध और समर्थन दोनों सघन हुए हैं। मोदी और भाजपा के सनातन विरोधियों के लिए तो यह सबसे बड़ा मुद्दा था ही, उनके समर्थकों का एक वर्ग भी विरोध में उतर गया। इनका मानना है कि मोदी वाराणसी की प्राचीनतम विशेषताओं को विकास की वेदी पर ध्वस्त कर रहे हैं। इसे राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने की भी कोशिशें हुई हैं।
मोदी वहां के सांसद हैं, इसलिए अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी यह विषय उछला है। पिछले 8 मार्च को मोदी ने बतौर प्रधानमंत्री काशी विश्वनाथ धाम का शिलान्यास किया तो इसका विरोध स्वाभाविक था। इसे ‘काशी विश्वनाथ कॉरिडोर परियोजना’ कहा गया है। विरोधी अपने स्टैंड पर कायम हैं और इसका उपहास उड़ा रहे हैं। दूसरी ओर मोदी ने संकल्प व्यक्त किया कि वे वाराणसी के कायाकल्प के साथ विश्वनाथ धाम का भी पुनरोद्धार करेंगे ताकि सोमनाथ की तरह यह भी भव्य हो, श्रद्धालुओं व साधकों को सारी सुविधायें सुलभ हों एवं यह तंग गलियों से मुक्त हो सके। वारणसी भारत के दक्षिण एवं उत्तर दोनों के लिए समान रूप से पवित्र स्थल है। बावजूद सच यही है कि वहां जाने वाले श्रद्धाभाव में भले कुछ न बोलें, पर बाधाएं व कठिनाइयों से उन्हें कदम-कदम पर चार होना पड़ता था। चारों तरफ से बने मकानों-दूकानों के बीच वहां पहुंचना भी सामान्य चुनौती नहीं है। मोदी विरोधियों का तर्क है कि वाराणसी की पहचान ही गलियों से हैं और अगर आप उसे ही नष्ट कर देंगे तो फिर यह वाराणसी नहीं होगा।
वाराणसी में अनेक छोटे-छोटे प्राचीन मंदिर हैं, जिनका ऐतिहासिक और धार्मिंक महत्त्व है जो पुनर्निर्माण योजना की भेंट चढ़ रहे हैं। माना जाता है कि मुस्लिम आक्रमणकारियों ने जब मंदिरों और मूर्तियों को ध्वस्त करना आरंभ किया तो काशीवासियों ने उनको अपने घरों के अंदर छिपा लिया था। चूंकि पुनर्निर्माण योजना में आसपास के मकानों को हटाना और गंगा तट तक सीधे रास्ता बनाना शामिल है इसलिए आरंभ में वहां केवल विध्वंस ही दिखता है। आलोचनाओं और प्रखर विरोधों पर बिना कुछ बोले मोदी अपनी कार्ययोजना पर अडिग रहे और अंतत: बहुत सारी बाधाएं हटने के बाद शिलान्यास भी कर दिया। प्रश्न है कि इसे किस तरह देखा जाए? एक ओर विरोधी हैं तो दूसरी ओर प्रवासी सम्मेलन में आए भारतवंशियों की प्रतिक्रियाएं, जिनके उद्गार बता रहे थे कि उन्होंने सपने में नहीं सोचा था कि इस तरह का वाराणसी उन्हें देखने को मिलेगा? कोई भी वारणसी में जाकर बदलाव देख सकता है। स्टेशन या हवाई अड्डे से ही परिवर्तन दिखने लगता है। काशीवासी स्मार्ट सिटी बनने के साथ नगर की आध्यामिकता, सांस्कृतिक-पौराणिक धरोहरों और स्मारकों के संरक्षण-संवर्धन भी चाहते हैं और स्वच्छता और पर्यावरण के पैमाने पर भी इसे एक मानक बनाने का सपना रखते हैं।
साफ है कि कॉरिडोर निर्माण के साथ विश्वनाथ मंदिर को भव्य रूप मिलेगा, मंदिर से गंगा तक जाने और गंगा से स्नान कर मंदिर आना आसान हो जाएगा। शिलान्यास के बाद मोदी ने कहा कि सालों बाद बाबा विश्वनाथ को मुक्ति मिली है। जो उन मकानों को ही वाराणसी की संस्कृति मानते रहे हैं, वे भी गलत नहीं हैं, पर इसमें बदलाव के बगैर उसे विश्व के महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक और आध्यात्मिक स्थल में बदलना संभव ही नहीं। जिन भवनों के अधिग्रहण और ध्वंस को विरोधी वाराणसी की पहचान का ध्वंस कहते हैं, वही सरकार के लिए सांस्कृतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण शहरों के पुनर्निर्माण प्रबंधन की मिसाल है। एक बार पुनर्रचना की वृहत्तर योजना और कार्यों पर संक्षिप्त दृष्टि डालना जरूरी है। काशी विश्वनाथ मंदिर में आने वाले दर्शनार्थियों को सुगम दर्शन की सुविधा को ध्यान में रखते हुए श्री काशी विश्वनाथ धाम की रचना की जा रही है। मंदिर सीधे गंगा नदी से जुड़ेगा।
वर्तमान परियोजना का कुल क्षेत्रफल 39310.00 वर्ग मीटर है, जिसके अंतर्गत कुल 296 आवासीय, व्यावसायिक, सेवईत, न्यास भवने हैं। अब तक करीब 240 भवन खरीदे गए, जिनको गिराने के बाद लगभग 21505.92 वर्ग मीटर जमीन उपलब्ध हुआ है। 500 से ज्यादा परिवारों को विस्थापित किया जा चुका है। इसके लिए योगी सरकार ने कुछ उपयुक्त अधिकारियों को वहां नियुक्त किया और कॉरिडोर निर्माण के लिए 600 करोड़ रु पये भी दिया। अब प्रश्न इन भवनों में स्थित मंदिरों का है। भवनों को गिराने के दौरान 41 प्राचीन मंदिर पाए गए हैं, जिनका उल्लेख धार्मिंक पुस्तकों में है। ये सभी मंदिर काशी के प्राचीन धरोहर हैं। इन मंदिरों को भी जीर्णोद्धार एवं सौंदर्यीकरण परियोजना का अंग बनाया गया है। ये सारे मंदिर लोगों के दर्शन के लिए उनके पुराने नामों से उपलब्ध रहेंगे। आलोचक जो भी कहें अब वे मंदिर श्रद्धालुओं के लिए ज्यादा आकषर्क ढंग से सुलभ होंगे। परियोजना में काशी विश्वनाथ मंदिर प्रांगण का विस्तार कर इसमें विशाल द्वार बनाए जाएंगे और एक मंदिर चौक का निर्माण किया जाएगा। इसके दोनों ओर विश्रामालय, संग्रहालय, वैदिक केंद्र, वाचनालय, दर्शनार्थी सुविधा केंद्र, व्यावसायिक केंद्र, पुलिस एवं प्रशासनिक भवन, वृद्ध एवं दिव्यांग के लिए एक्सीलेटर एवं मोक्ष भवन इत्यादि निर्मिंत किए जाएंगे।
कहने का तात्पर्य यह कि कॉरिडोर निर्माण के बाद श्री काशी विश्वनाथ मंदिर जकड़न से मुक्त होगा और वहां आने वाले करोड़ों देशी-विदेशी श्रद्धालुओं का आवागमन, वास एवं दर्शन-पूजन पहले की अपेक्षा सुगम होगा। यह एक उदाहरण होगा कि हम अपने धार्मिंक स्थलों के सांस्कृतिक स्वरूप को बनाए रखते हुए किस तरह उसका आवश्यकता के अनुरूप कायाकल्प कर सकते हैं। वाराणसी की उपग्रह तस्वीरों से एक-एक स्थान का अध्ययन कर पूरे शहर और आसपास के लिए योजनाएं बनीं, उनमें ही यह परियोजना भी शामिल है। आलोचनाओं के राजनीतिक जोखिम को समझते हुए भी साकार करने के लिए काम करते रहना साहस का विषय है। विरोध हर बदलाव का होता है किंतु बदलाव जरूरी हो तो उसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखानी होती है।
| Tweet![]() |