लोकपाल : चयन में अड़चन

Last Updated 06 Feb 2019 03:44:00 AM IST

बहुप्रचारित लोकपाल गठन के लिए सुप्रीम कोर्ट से सरकार को लगातार मिल रही फटकारों की बात करें तो फरवरी महीने के अंत तक लोकपाल खोज समिति को नाम सुझा देना है।


लोकपाल : चयन में अड़चन

उसके बाद लोकपाल पद के लिए खोजे गए नाम में से उपयुक्त व्यक्ति का चयन प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली चयन समिति करेगी।
देखने-सुनने में तो लगता है, मानो खोज समिति के बस नाम सुझाने भर की देर है, और उसी के लिए लोकपाल  का चयन लटका हुआ है। सुप्रीम कोर्ट में पेश विवरण के अनुसार 27 सितम्बर, 2018 को लोकपाल खोज समिति का गठन हुआ। उसकी पहली बैठक चार महीने बाद 16 जनवरी, 2019 को हुई क्योंकि कोर्ट में जवाब देना था। चार जनवरी से पहले की सुनवाई में अटोर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट को इतना बता दिया था कि लोकपाल खोज कमिटी गठित कर दी जाएगी। 17 जनवरी को जब चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने खुद पूछा कि सितम्बर से अब तक लोकपाल खोज कमिटी की कितनी बैठकें हुई। उसके जवाब में सरकार की ओर से अटोर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने 16 जनवरी की बैठक की जानकारी दी, जो पहली बैठक थी। उसमें भी मुख्य समस्या थी इंफ्रास्क्ट्रचर  की कमी। उसके बाद लोकपाल खोज कमिटी की पहली बैठक 30 जनवरी को हुई। पता चला कि खोज कमिटी लोकपाल पद के लिए आवेदन मंगाएगी। लोकपाल खोज कमिटी की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट की ही रिटायर जज रंजना देसाई को सौंपी गई है। कमिटी के अन्य सदस्य हैं-इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व जज सखाराम सिंह यादव, पूर्व सोलिसिटर जनरल रंजीत कुमार, भारतीय स्टेट बैंक की पूर्व चेयरमैन अरुंधती भट्टाचार्य, रिटायर आईएएस ललित के. पंवार, गुजरात के पूर्व पुलिस प्रमुख शब्बीर हुसैन एस. खंडवावाला, प्रसार भारती के अयक्ष ए. सूर्य प्रकाश और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के पूर्व प्रमुख ए. एस. किरण कुमार।

लोकपाल आंदोलन को अनशन करके लोकपाल एक्ट बनाने तक का मुकाम पार कराने वाले चर्चित सामाजिक कार्यकर्ता अण्णा हजारे के 30 जनवरी को लोकपाल गठन के लिए अनशन पर बैठने की खबर को भी सुर्खियां मिलीं। अण्णा का आठ साल में यह चौथा अनशन है। 2011 में दिल्ली के रामलीला मैदान में अण्णा के अनशन का व्यापक असर हुआ। बहुत हाईप्रोफाइल लोग, नेता, नेतागिरी के लिए जमीन तलाश रहे युवाओं ने उस अनशन को हंगामेदार बनाया और अपनी राजनीतिक रोटी सेंकी। देर-सबेर परिणाम सामने आया कि लोकपाल बिल संसद में पेश हुआ और पारित हुआ। दिसम्बर, 2013 में बिल पास हुआ और जनवरी, 2014 में राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद लोकपाल व लोकायुक्त बिल एक्ट बना। जनवरी, 2014 से जनवरी, 2019 तक के बैक-अप पर गौर करने से पता चल जाता है कि कांग्रेस या भाजपा समेत कोई पार्टी लोकपाल गठित होते नहीं देखना चाहती। मई, 2014 तक सत्ता में रही कांग्रेस ने इसे अमल में लाना जरूरी नहीं समझा। मई, 2014 से लेकर अभी तक के विवरण से स्पष्ट है कि प्रधनमंत्री मोदी ने जिन मामलों में बिल्कुल रुचि नहीं ली, उनमें पहले नम्बर पर है लोकपाल गठन। 2014 के ही अंत में गैर-सरकारी संगठन ‘कॉमन कॉज’ ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में चाचिका दायर की। 27 अप्रैल, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को लोकपाल गठन का आदेश दिया। तीन साल गुजर गए सुप्रीम कोर्ट को लोकपाल गठन की दिक्कतें बताने में और बाकी समय में सरकार ने कोर्ट आदेश की अवमानना का जवाब देने में गुजारे। 
अब चला-चली की बेला में वर्तमान संसद का बजट सत्र चालू है। इस अल्पावधि में तो वो बिल सरकार की प्राथमिकता में नहीं है। नाम खोज के बाद लोकपाल चयन समिति की बैठक तो होगी ही और लोक सभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकाअर्जुन खड़गे फिर इसमें शामिल नहीं होंगे। अण्णा हजारे को सुप्रीम कोर्ट प्रकरण पता तो होगा ही। लेकिन अनशन शुरू करने से पहले उन्होंने सरकार की दुखती रगों पर उंगली रख दी। 17 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने लोकपाल खोज समिति को नाम सुझाने कहा और 21 जनवरी को अण्णा ने कह दिया कि लोकपाल अगर होता तो राफेल घोटाला नहीं होने देता। उतना ही नहीं, अण्णा ने अपने गांव रालेगण सिद्धि में ही अनशन शुरू करने से पहले यह भी कह दिया कि राफेल घोटाला की जानकारी वे संवाददाता सम्मेलन करके देंगे। सुप्रीम कोर्ट की नोटिसों से परेशान सरकार अण्णा को शायद ही नोटिस ले।
प्रधानमंत्री मोदी लगातार भ्रष्टाचार से लड़ाई ऊपर से शुरू करने की बात कर रहे हैं। ऊंचे ओहदे पर बैठे लोगों के भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने वाला लोकपाल गठन डंप रखा जबकि लोकपाल एक्ट में ऐसे उलझे प्रावधान डाले गए हैं कि बड़ी मछलियों को पकड़ना मुश्किल है।

शशिधर खान


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