ईवीएम : बेमतलब का विवाद

Last Updated 29 Jan 2019 04:00:17 AM IST

ईवीएम पर मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने जितना कड़ा वक्तव्य दिया है, उससे पता चलता है कि इस पर विवाद पैदा किए जाने को लेकर चुनाव आयोग के अंदर कितनी पीड़ा और क्षोभ है।


ईवीएम : बेमतलब का विवाद

अरोड़ा ने स्पष्ट कर दिया है कि ईवीएम बिल्कुल परीक्षित, सुरक्षित और सफल है। इसको कतई बदला नहीं जाएगा। यह भारत देश है, जहां एक हैकर लंदन के एक कार्यक्रम में अमेरिका से मुंह ढके हुए दावा करता है कि चुनावों में ईवीएम की हैकिंग बड़े पैमाने पर होती है, और हमारे यहां उस पर हंगामा मच जाता है।
हैकर सैयद शुजा ने 2014 के आम चुनाव में बड़े पैमाने पर हैकिंग का दावा करते हुए यह भी कह दिया कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान चुनावों में उसने हैकिंग को नाकाम कर दिया। उसने आम आदमी पार्टी से लेकर सपा, बसपा सब पर हैकिंग के लिए संपर्क करने का आरोप लगा दिया है। इन सबका क्या अर्थ है? लंदन में यह ‘हैकथॉन’ कार्यक्रम ‘इंडियन जर्नलिस्ट एसोसिएशन’ द्वारा आयोजित किया गया। कार्यक्रम में कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल की मौजूदगी प्रश्नों के घेरे में है। वैसे आयोजकों का दावा है कि उन्होंने सभी दलों को आमंत्रित किया था, चुनाव आयोग को भी। इस संगठन ने पिछले वर्ष पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के पूर्व अगस्त, 2018 में भी लंदन में एक कार्यक्रम आयोजित किया था, जिसमें राहुल गांधी शामिल हुए थे। मूल प्रश्न है कि क्या एक हैकर का दावा स्वीकार कर आम चुनाव के पहले ईवीएम पर हमें घमासान करना चाहिए? चुनाव आयोग ने शुजा के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करा दी है। उसे पकड़ कर भारत लाया जाए ताकि पता चल सके कि उसके पीछे कौन सी शक्तियां हैं? 

मान लें कि ईवीएम में गड़बड़ी हो सकती है किंतु ऐसा करने के लिए चुनाव आयोग, राज्यों के चुनाव आयोग, ऊपर से नीचे तक का पूरा प्रशासन, हजारों की संख्या में ऐसा करने वाले विशेषज्ञ चाहिए। हर क्षेत्र में उम्मीदवार अलग होते हैं, और उसी अनुसार ईवीएम में बटन बनाए जाते हैं। तो प्रत्येक क्षेत्र में गड़बड़ी के लिए आपको अलग टीम चाहिए। इतने व्यापक पैमाने पर धांधली संभव है क्या? वस्तुत: यह एक प्रश्न सारे आरोपों पर भारी पड़ता है। जहां तक हैकिंग का प्रश्न है, तो न यह इंटरनेट से जुड़ा होता है और न ही अन्य मशीन से कि इसे हैक किया जाए या ऑनलाइन दूसरी गड़बड़ियां पैदा की जा सकें। यहां ईवीएम की तकनीक और प्रक्रिया का भी उल्लेख आवश्यक है। ईवीएम का सॉफ्टवेयर कोड वनटाइम प्रोग्रामेबल नॉन वोलेटाइल मेमोरी के आधार पर बना है। निर्माता से बगैर कोड हासिल किए छेड़छाड़ हो ही नहीं सकती। ईवीएम में एक कंट्रोल यूनिट, बैलेट यूनिट और पांच मीटर केबल होता है। कंट्रोल यूनिट मतदान अधिकारी के पास होती है और बैलेटिंग यूनिट वोटिंग कंपार्टमेंट के अंदर रखा होता है। कंट्रोल यूनिट के प्रभारी मतदान अधिकारी द्वारा बैलेट बटन दबाने के बाद ही मतदाता बैलेटिंग यूनिट पर उम्मीदवार एवं चुनाव चिह्न के सामने बटन दबाकर मत डाल पाता बनाता है। मतदान अधिकारी मतपत्र को कंट्रोल यूनिट के साथ जोड़गा नहीं तो वोट नहीं हो सकता। ईवीएम मशीन की कौन-सी सीरीज किस मतदान केंद्र पर होगी इसका पता मतदान कराने वाले दल को एक दिन पहले चलता है।
मतदान शुरू होने से पहले ईवीएम के हर पहलू की जांच की जाती है। इससे पहले मॉक पोलिंग की प्रक्रिया भी संपन्न होती है। सभी पोलिंग एंजेट वोट डालते हैं, जिससे पता चल जाता है कि उनके दबाए गए बटन से सही उम्मीदवार को वोट गया या नहीं। पोलिंग एजेंट द्वारा मतदान पार्टी के प्रभारी को सही मॉक पोल का प्रमाण पत्र देने के बाद मतदान शुरू होता है। अब इसमें वीवीपैट यानी वोटर वेरीफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल मशीन जोड़ दी गई है। मतदान करने के बाद वीवीपैट में लगे शीशे की स्क्रीन पर, जिसे वोट दिया गया हो उस, उम्मीदवार का नाम और चुनाव चिह्न छपी पर्ची सात सेकेंड तक दिखाई देती है। कोई विवाद होने पर ईवीएम में पड़े वोट के साथ पर्ची का मिलान की जा सकती है। हमारे देश की हालत यह है कि कोई ईवीएम या वीवीपैट खराब हुआ और कुछ देर मतदान रु क गया तो भी उसे ईवीएम के साथ छेड़छाड़ बताने का हास्यास्पद तर्क दिया जाता है। कोई मशीन नहीं जिसमें खराबी न आए। खराबी आने पर उसे ठीक करने या तुरंत बदल देने की व्यवस्था होनी चाहिए। हर चुनाव में 20 से 25 प्रतिशत अतिरिक्त मशीनें सेक्टर अधिकारी की निगरानी में रखी जाती हैं। मतदान के पूर्व मतदानकर्मिंयों को ईवीएम एवं वीवीपैट चलाने का प्रशिक्षण दिया जाता है।
बावजूद कुछ भूलें हो जाती हैं। गरमी या अन्य कारणों से कुछ समय के लिए सेंसर वगैरह में समस्या आती है, जिससे मशीनें हैंग होती हैं। पिछले वर्ष चार लोक सभा एवं 10 विधानसभा उपचुनावों में प्रचार किया गया कि करीब 25 प्रतिशत ईवीएम में गड़बड़ी हुई और मतदान प्रभावित हुआ। चुनाव आयोग के अनुसार कुल 10365 ईवीएम में से केवल 96 को खराबी की वजह से बदलना पड़ा। नेताओं ने तो यहां तक आरोप लगाया कि जहां भाजपा विरोधी मत पड़ने हैं, वहां ईवीएम में खराबी पैदा की गई ताकि मतदान बाधित हो सके। यह कितना दुखद है इसे व्यक्त करने के लिए शब्द छोटे पड़ जाएंगे। यह अपराध है जो राजनीतिक दल कर रहे हैं। ईवीएम पर थोड़ी भी शंका होगी तो चुनाव आयोग इसे बनाए रखने पर अड़ा क्यों रहेगा? चुनाव आयोग राजनीतिक दलों के हाथों खेलेगा ऐसा मान लें तो कोई संस्था विसनीय बचेगी ही नहीं। न्यायालयों में हर बार याचिकाकर्ताओं को मुंह की खानी पड़ी। सर्वोच्च  न्यायालय 13 बार इस पर अपना मत दे चुका है। पिछले वर्ष 23 नवम्बर को मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने ईवीएम की जगह मतपत्रों से चुनाव कराने की याचिका खारिज कर दी थी। लगता है कि कुछ शक्तियां भारत की हर संस्था, हर व्यवस्था को संदेह के घेरे में लाने के लिए सक्रिय हैं।
दुर्भाग्य से हमारी पार्टयिां, नेता उसमें अपनी भूमिका निभाते हैं। 2004 के आम चुनाव से हमारे यहां ईवीएम की संपूर्ण व्यवस्था हो गई और पूरी तरह सफल है। मतपत्रों के काल में हमने मतपत्रों को लूटकर मुहर लगाते और बाहुबल से परिणाम प्रभावित होते देखा है। मतपत्रों से मतदान में धांधलियों के बाद ही तो बदलाव की मांग हुई और ईवीएम का प्रयोग शुरू हुआ। यहां तक आने के बाद पीछे लौटने की सोच राजनीतिक दलों के दिशाभ्रम के अलावा और कुछ नहीं। मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा है कि हम मतपत्र लूटने, धांधलियां करने और परिणाम आने में देरी के दौर में नहीं जा सकते।

अवधेश कुमार


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