अकेलापन : ढूंढ़ना होगा समाधान

Last Updated 29 Jan 2019 03:53:48 AM IST

इंसान को सामाजिक प्राणी कहने का अभिप्राय है कि वह अकेले जिंदगी बसर नहीं कर सकता पर दुनिया में अकेलापन बढ़ रहा है।


अकेलापन : ढूंढ़ना होगा समाधान

हालांकि ऐसा कहने वाले भी मिल जाएंगे जिनकी नजर में अकेलापन एक उपलब्धि है। खास तौर से महिलाओं के अकेलेपन को कथित प्रगतिशीलता और उनकी स्वतंत्रता से जोड़कर महिमामंडित करने की पुरजोर कोशिशें होती रही हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि मनुष्य के लिए तनहाई अंतत: त्रासद साबित होती है।
कहने को आज फेसबुक जैसे सोशल मीडिया के मंच लोगों की तनहाई दूर करने में काफी मददगार माने जाते हैं, लेकिन बुढ़ापे में अकेलापन कितना दुखद होता है, कई शहरों में अकेले बुजुगरे की मिलने वाली हफ्तों-महीनों पुरानी लाशें इसी सच्चाई को सामने लाती हैं। अकेलापन दुनिया के कई समाजों में समस्या बन गया है। भारत समेत ब्रिटेन-जापान जैसे मुल्क इस समस्या से बुरी तरह घिरा पा रहे हैं। तनहाई कितनी बड़ी ट्रेजडी है-इसका ठोस आकलन पिछले साल ब्रिटेन में सांसद जो. कॉक्स की अगुवाई में एक आयोग ने किया। आयोग ने प्रधानमंत्री टेरीजा मे को सौंपी अपनी रिपोर्ट में बताया कि अकेलापन एक व्यक्ति को हर महीने साढ़े चार सौ सिगरेट पीने के बराबर नुकसान पहुंचाता है। रेडक्रॉस सोसायटी के हवाले से बताया गया कि ब्रिटेन में 90 लाख से अधिक लोग तनहाई का शिकार हैं।
सिर्फ  बुजुर्ग ही नहीं, विकलांग और 17 से 25 साल के युवाओं, प्रवासियों और शरणार्थियों में तन्हाई की प्रवृत्ति देखी गई है। रिपोर्ट ने टेरीजा मे को दुनिया में पहली बार अकेलेपन पर सबसे गंभीर सरकारी पहल करने को मजबूर कर दिया और उन्होंने ब्रिटेन को अकेलेपन की व्याधि से निजात दिलाने का जिम्मा ट्रेसी क्राउच को सौंपते हुए अकेलापन मंत्रालय ही बना दिया है।

तनहाई हमारे देश में भी कितनी बड़ी समस्या है, इसका उदाहरण कुछ अरसा पहले मुंबई की एक पॉश सोसायटी में रहने वाली बुजुर्ग आशा साहनी का है। उनके जीवन की इकलौती आस अमेरिका में बसा उनका इंजीनियर बेटा है, लेकिन उससे उनकी एक साल तक फोन पर भी बात नहीं हुई। आखिरकार, लोखंडवाला के आलीशान फ्लैट में तनहाई और गुमनामी के बीच वे जीते-जी कंकाल में बदल गई और इसका पता उनके बेटे के लौटने के बाद चला। कुछ दिन पहले ऐसा ही हादसा ग्रेटर नोएडा की एक पॉश सोसायटी में हुआ, जहां करोड़ों की संपत्ति के बावजूद बच्चों-पत्नी से अलग रह रहे बुजुर्ग की 15 दिन पुरानी लाश पंखे से झूलती मिली थी। अकेलेपन में हुई ये मौतें चेताती हैं कि हमारे देश में सदियों पुरानी परंपराओं और परिवारों का टूटना कितना घातक साबित हो रहा है। मुमकिन है कि भारत में हालात ब्रिटेन से भी ज्यादा गंभीर हों क्योंकि यहां तो लोग अपनी मानसिक समस्याओं के लिए मनोचिकित्सकों के पास तक नहीं जाते। वर्ष 2017 में एजवेल फाउंडेशन की रिपोर्ट में कहा गया था कि देश में अकेलेपन और रिश्तों की उदासीनता से 43 प्रतिशत बुजुर्ग मनोवैज्ञानिक समस्याओं के शिकार थे। नेशनल सैंपल सर्वे के 2004 के आंकड़ों के मुताबिक देश में 12.3 लाख मर्द और 36.8 लाख औरतें अकेलेपन की समस्याओं से पीड़ित हैं। अकेली महिलाओं का बड़ा आंकड़ा चौंकाता है।  सिंगल महिलाओं की संख्या (इस श्रेणी में विधवाएं नहीं, बल्कि अविवाहित, तलाकशुदा और पति से अलग रहने वाली महिलाएं भी आती हैं) काफी ज्यादा है। वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक देश की कुल महिला आबादी का 12 फीसद (करीब 7.3 करोड़) सिंगल वुमन हैं। बदलते सामाजिक-आर्थिक हालात में इस तबके का आकार काफी तेजी से बढ़ा है।
अमेरिका में सिंगल महिलाओं की संख्या 2009 में ही विवाहित महिलाओं से आगे निकल गई थी। देर-सबेर भारत में भी ऐसा हो सकता है। माना जा रहा है कि अगर यही ट्रेंड जारी रहा तो अगले कुछ ही वर्षो में अपने यहां भी विवाहित महिलाओं से ज्यादा सिंगल महिलाएं होंगी। निश्चित ही आने वाले वक्त में अकेले पुरु षों से ज्यादा समस्याएं अकेली महिलाओं की होंगी। उनसे जुड़े सवाल ज्यादा परेशान करने वाले होंगे क्योंकि अभी तो परिवार के घेरे से बाहर महिलाओं को इज्जत की नजर से देखना, उनकी निजता का सम्मान करना हम न तो एक समाज के रूप में सीख पाए हैं, न ही शासन व्यवस्था के रूप में। हमारे यहां किसी भी स्त्री को कदम-कदम पर या तो पति का नाम बताना पड़ता है, या घोषित करना पड़ता है कि उसकी अभी शादी ही नहीं हुई है। अकेलापन उपलब्धि की बजाय बड़ी समस्या के रूप में नजर आ रहा है, जिसका फिलहाल कोई ठोस निदान न तो समाज के पास है, न सरकार के पास।

अभिषेक कुमार


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