किशोरों के लिए सहमति से यौन संबंध की वैधानिक आयु पर न्यायालय 12 नवंबर को सुनवाई करेगा

Last Updated 24 Sep 2025 05:23:00 PM IST

उच्चतम न्यायालय ने किशोरों के लिए सहमति से यौन संबंध की वैधानिक आयु के मुद्दे पर सुनवाई के लिए बुधवार को 12 नवंबर की तारीख तय की। न्यायालय ने यह भी कहा कि वह इस मामले को ‘‘टुकड़ों’’ में सुनने के बजाय ‘निरंतरता’ में सुनना पसंद करेगा।


यह मामला न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संदीप मेहता और न्यायमूर्ति एन वी अंजारिया की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आया। 

पीठ ने कहा, ‘‘हम चाहेंगे कि इस मामले को टुकड़ों में सुनने के बजाय लगातार सुना जाए।’’

पीठ ने मामले की सुनवाई के लिए 12 नवंबर की तारीख निर्धारित करते हुए कहा कि इस पर लगातार सुनवाई होगी।

केंद्र ने सहमति से यौन संबंध की वैधानिक आयु 18 वर्ष निर्धारित करने का बचाव करते हुए कहा कि यह निर्णय नाबालिगों को यौन शोषण से बचाने के उद्देश्य से एक ‘‘सोद्देश्य, सुविचारित और सुसंगत’’ नीतिगत विकल्प है।

केंद्र ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी के माध्यम से अपने लिखित निवेदन में कहा है कि ‘किशोर प्रेम संबंधों’ की आड़ में सहमति की उम्र को कम करना या अपवाद पेश करना न केवल कानूनी रूप से अनुचित होगा, बल्कि खतरनाक भी होगा।

इस मामले में शीर्ष अदालत की मदद कर रहीं (न्यायमित्र) वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने उच्चतम न्यायालय से सहमति की वैधानिक आयु 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष करने का आग्रह किया है।

जयसिंह ने भी शीर्ष अदालत को अपना लिखित निवेदन सौंपा, जिसमें उन्होंने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम, 2012 और भारतीय दंड संहिता (आईपीएस) की धारा 375 के तहत 16 से 18 वर्ष की आयु के किशोरों से जुड़ी यौन गतिविधियों को अपराध घोषित करने का विरोध किया।

जयसिंह ने बुधवार को सुनवाई के दौरान एक ऐसी स्थिति का उल्लेख किया, जिसमें 16 से 18 वर्ष की आयु का एक व्यक्ति सहमति से संबंध बनाता है और उस पर मुकदमा चलाया जाता है।

उन्होंने कहा कि ‘निपुण सक्सेना एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य’ मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अलग-अलग मुद्दों पर फैसला सुनाया था।

जयसिंह ने कहा कि ‘‘निपुण सक्सेना मामला’’ और यौन अपराधों के जवाब में आपराधिक न्याय प्रणाली के आकलन पर स्वत: संज्ञान का मामला पीठ के समक्ष एक साथ सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है।

पीठ ने कहा, ‘‘हम इसे समग्र रूप से देखेंगे। हम मुद्दों को अलग-अलग नहीं करेंगे। इसे खुलने दीजिए, फिर देखेंगे।’’

शीर्ष अदालत को इस मामले में हस्तक्षेप याचिकाओं के बारे में भी सूचित किया गया।

पीठ ने पूछा, ‘‘क्या हम वकीलों को अर्जी दायर करने से रोक सकते हैं?’’ उन्होंने जोर देकर कहा कि यह अदालत का विवेकाधिकार है कि वह इन पर विचार करे या नहीं।

केंद्र ने कहा है कि सहमति की मौजूदा वैधानिक आयु को सख्ती से और समान रूप से लागू किया जाना चाहिए।

पीठ ने कहा, ‘‘इस मानक से कोई भी विचलन- सुधार या किशोर स्वायत्तता के नाम पर भी, बाल संरक्षण कानून में दशकों की प्रगति को पीछे धकेलने के समान होगा, और पॉक्सो अधिनियम 2012 और बीएनएस (भारतीय न्याय संहिता) जैसे कानूनों के निवारक चरित्र को कमजोर करेगा।’’

भाषा
नई दिल्ली


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