लाजपत राय : रग-रग में आजादी का संकल्प
आजादी के मर्म को जनांदोलन बनाने वाले राष्ट्रवादी, समाज सुधारक, लेखक और संपादक अजेय क्रांतिकारी लाला लाजपत राय भारत के उन महान् सपूतों में से थे, जिन्होंने अंतिम सांस तक अंगेजी हुकूमत को निर्भीकता से ललकारते रहे।
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जिन्होंने अंग्रेजी कु-शासन के सामने निडरता के साथ जान हथेली पर रखकर भारत की गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए कतरा-कतरा कुर्बान कर दिया। साइमन कमीशन के भारत आने के विरोध में लाला जी ने भारतीय इंकलाब को एक नई दिशा देने के लिए लोगों को जागृत करने का अखंड प्रयास किया। इसी प्रयास में अंग्रेजी पुलिस की लाठियां उन्हें खानी पड़ी।
अंग्रेजी शासन की लाला जी पर पड़ी लाठियां भारत में एक नई फिरंगी विरोधी लहर पैदा करने का कारण बनीं। ऐसे अजेय साहसी योद्धा का शहीद होना निर्थक नहीं गया। सारे देश में साइमन कमीशन के विरोध और अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने का नया संग्राम ही छिड़ गया। लाला लाजपत राय का जन्म पंजाब के फिरोजपुर जिले के गांव ढुडीके में एक साधारण परिवार में 28 जनवरी 1865 को हुआ। उनका गांव ढुडीके 1905-07 में किसान लहर में सरगर्म और सबसे लोकप्रिय रहा था। यह वही गांव है, जो 1914-15 की गदर पार्टी लहर का दूसरे चरण का प्रमुख केंद्र रहा। पंजाब के क्रांतिकारी इसी गांव से अपनी गतिविधियों को संचालित कर रहे थे।
इसी गांव में पाला सिंह ढुडीके और ईश्वर सिंह ढुडीके ने भारत की आजादी के संग्राम की ज्वाला धधकाई थी। लालाजी पर इसका बहुत गहरे तक असर हुआ। वह आजादी के लिए संकल्पित हो गए। बचपन से ही शिक्षा, समाज और संस्कृति के प्रति रुचि होने के कारण सामाजिक और शैक्षिक विषयों में रुचि लेने लगे थे। हाईस्कूल की शिक्षा हासिल करने के बाद लाजपत राय 1881 में गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर में दाखिला लिया। लाहौर में उस वक्त दो सुधारवादी जनांदोलनों का केंद्र था। ब्रrा समाज और दूसरा आर्य समाज का जनांदोलन। ये दोनों जनांदोलनों का उद्देश्य राष्ट्रवादी और समाज सुधार था। लाहौर में लालाजी पहले ब्रrा समाज के सदस्य बने लेकिन ब्रrा समाज में गुटबाजी देखकर उनका वहां से मोहभंग हो गया। वे समाज में एक सुधारवादी क्रांति के लिए उत्सुक थे। उनके साथी पं. गुरुदत्त उस वक्त के एक प्रसिद्ध आर्यसमाजी नेता थे। गुरुदत्त और साईदास की प्रेरणा से लाला जी ने आर्य समाज में प्रवेश किया। इसके बाद उन्होंने 1888 में तत्कालीन कांग्रेस के सदस्य बनें और भारतीय स्वाधीनता के समर में खुद को झोंक दिया। 1892 में वह हिसार छोड़कर हमेशा के लिए लाहौर आकर बस गए। यहां उन्होंने वकालत के साथ ही साथ स्वतंत्रता संग्राम की गतिविधियों और वकालत करना शुरू किया। लाहौर आकर लालाजी कई तरह की गतिविधियां चलाने लगे। उन्होंने जनता को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जागरूक करने और समाज सुधार के नजरिये से ‘भारत सुधार’ और ‘आर्य मैसेंजर’ में लेख लिखना प्रारम्भ किया।
भारत के बाहर लालाजी ने विदेश में बसे भारतीयों को जागरूक करने और विदेशी शासन को अपनी गतिविधियों से अवगत कराने के लिए अमेरिका में 1914 में ‘इडियन होम रूल लीग’ की स्थापना की। इसके साथ ही उन्होंने असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया और गिरफ्तारी दी। उनकी गिरफ्तारी से भारत के उन सपूतों को प्रेरणा मिली जो देशहित में क्रांतिकारी बन गए थे। 1926 में उन्होंने देश में एक अलग जागृति लाने के लिए ‘नेशनलिस्ट पार्टी’ की स्थापना की। साथ उनका इंकलाबी सफर भी आगे बढ़ता रहा। ‘भारत माता सोसाइटी’ के साथ उनका बहुत नजदीकी रिश्ता था। उनके साथ सरदार भगत सिंह के पिता सरदार किशन सिंह, अजीत सिंह (भगत सिंह के चाचा) सूफी अंबा प्रसाद, और आनंद किशोर जैसे देशभक्त उस समय लैंड रिव्यू बढ़ा देने के खिलाफ दोआब बारी एक्ट और कलोनाइजेशन एक्ट के खिलाफ लोगों को जागरूक करने में लगे हुए थे। इसका असर यह हुआ कि सारा पंजाब उनके साथ हो गया।
लाला लाजपत राय ने शिक्षा, स्वधर्म, स्वसंस्कृति, स्वराज और स्वभाव को भारतीय समाज के लिए जिन आधारों को लेकर प्रेरणा दी, वे आधार आज भी भारतीयता के आधार बने हुए हैं। समाज में सबको बेहतर शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य, बेहतर आय के साधन और श्रम के मूल्य, स्वधर्म की प्रासंगिकता और स्वसंस्कृति की चेतना के महत्त्व को लालाजी ने अपने जीवन ही नहीं रेखांकित किया बल्कि समाज के लिए इसकी महत्ता को बेहतर ढंग से प्रतिपादित किया।
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