बतंगड़ बेतुक : भारतीय राजनीति में भूकंपवाद

Last Updated 30 Dec 2018 06:42:31 AM IST

बात पिछले दिनों आए भूकंप की है। जो भूकंप कुछ समय से थमे-थमे दिख रहे थे, जो झटके थोड़े रुकके-रुकके लग रहे थे वे एक बार फिर महसूस हुए।


बतंगड़ बेतुक : भारतीय राजनीति में भूकंपवा

रिक्टर पैमाना इस भूकंप की तीव्रता भले ही न माप पाया हो लेकिन कंप-प्रकंपमापी मीडिया ने बताया कि भूकंप था, जबरदस्त था। मीडिया के उछलबच्चों ने अपने-अपने समाचार कक्षों में इसे पूरी शिद्दत से महसूस किया। मीडिया में पूरी बहस हुई, इस बात पर कि भूकंप स्वत: आया था, आदतन लाया गया था, या किसी टाइपोग्राफिक गलती की वजह से आ गया था।
तो यह भूकंप प्रस्ताव का चोला ओढ़कर आया। भूकंपी प्रस्ताव आप की सरकार ही ला सकती थी, और वही लाई। किसके गुदरे में दम था कि ऐसा प्रस्ताव ला सके और जिसे जो मरणोपरांत मिला है, मरणोपरांत ही उसकी वापसी का ऐलान कर सके। जिसकी मां की मौत पर नरसंहार हुआ हो उसे भारत रत्न से नवाजा जाए तो इसे कैसे सहन किया जाए। अत: इतिहास की इस विराट गलती को सुधारने का कोई विराट प्रयास किया जाए। आप विधायकों ने प्रस्ताव बना लिया कि जिन राजीव गांधी को अपने जीवनकाल में पता भी नहीं था, वह भारत रत्न हैं, उनसे उनकी भारत रत्नीयता छीन ली जाए और भूकंप लाया जाए। भारत की भूकंपी राजनीति अपने प्रसव-पैदाइश काल से ही प्रचंड भूकंपवादी रही है। जैसे ही वह कोई भूकंप उठाती थी बड़ों-बड़ों की कंपकंपी छूट जाती थी। सबसे ज्यादा झटके समाचार कक्षों, प्रकोष्ठों और समाचारवाची एंकरी उछलबच्चों के दिल-दिमाग में लगते थे। झटकों की तीव्रता उनकी हमलावरी मुद्राओं, भाव-भंगिमाओं, बोल-वाणियों, वाक्प्रहारों-प्रतिप्रहारों में महसूस होती थी। भूकंपमापी पैमाने पर झटकों की तीव्रता 1 से 5 अंकों तक मापी जाती रही। तीव्रता दो-चार अंक और ऊपर चढ़ जाती तो सोचिए क्या होता, कितना ध्वंस होता, जान-माल की कितनी हानि होती, कितने बड़े-बड़े नेता बेघरबार और न जाने कितने शणार्थी शिविरों में पहुंच जाते। दिल्ली दहल जाती। भाजपा-कांग्रेस में से एक न एक जरूर जमींदोज हो जाती।

साथ ही हुआ यह कि उसके उठाए हर भूकंप में उसके अपने महल का ही कोई न कोई कोना दरकता रहा, कोई न कोई स्तंभ ढहता रहा। आप के पहलू में बैठकर जो लोग खांटी भूकंपवादी लगते थे, वे उसके पहलू से छिटककर भूकंपरोधी हो गए। कपिल मिश्रा जैसे कुछ स्तंभ तो भयानक प्रतिभूकंपवादी। शाजिया इलमी जैसे लोग भाजपा जैसी सुरक्षित इमारतों के स्तंभ बन गए, कुछ भ्रमित-दिग्भ्रिमित, कुछ जड़ हो गए, कुछ भ्रष्टाचार विरोधी बोझिल जुए को कंधे से उतार कर पुनर्स्वतंत्र हो गए और कुछ अपने-अपने मूल धंधों में वापस लौट गए। मगर जनता तो भूकंपों की आदी हो चुकी थी। फर्क इतना था कि पहले दहलने लगती थी, अब बहलने लगी थी। पहले क्षुब्ध-विक्षुब्ध हो जाती थी, अब गुद होने लगी थी। शनै:-शनै: भूकंप थम गए। मीडिया के गलियारों में सन्नाटा पसर गया, जनता की गुदी बाधित हो गई।..और फिर अचानक भूकंप आ गया। मगर बहस विवादित हो गई कि भूकंप था, या नहीं था। लेकिन एक बात निर्विवाद तय हो गई कि प्रस्ताव भूकंप लाते हैं, मीडिया में हलचल मचाते हैं। आप को चाहिए कि जन गुदी की खातिर वह अपनी भूकंपवादी परंपरा को निर्बाध जारी रखे। अपने काम से भूकंप नहीं उठा सके तो अपने प्रस्तावों से ही भूकंप उठाती रहे।
अपन के पास भी आप के लिए कुछ भूकंपी प्रस्ताव हैं, जिनसे छोटे-बड़े भूकंप भी लाए जा सकते हैं, और मीडियाई मंडी में भी दावेदारी बनी रह सकती है। पहला प्रस्ताव उस व्यक्ति के बारे में होना चाहिए जिसके प्रधानमंत्रित्व ने आप की राह में हमेशा कांटे बिछाए हैं, और जिसके सिपहसालारों ने आप की योजनाओं पर हमेशा अपनी दुयरेजनाओं का पानी फेरा है। प्रस्ताव पारित किया जाए कि मोदी नामक व्यक्ति को तत्काल पदमुक्त किया जाए ताकि आप निरापद हो सके। इसी तरह अगला प्रस्ताव पारित किया जाए कि उपराज्यपाल पद सरकारी कामकाज के लिए अवरोधक पद है, इसलिए इसे तत्काल खत्म किया जाए। आप से जिन्हें निकाला गया है, या जो स्वयं निकल गए हैं, उनके विचार-व्यवहार जनहित में नहीं हैं, इसलिए उन्हें सार्वजनिक जीवन से बेदखल किया जाए। प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव को वापस आप में भेजा जाए। इस शर्त पालन के साथ कि वे न कुछ सुनेंगे, न देंखेंगे, न बोलेंगे। कुमार विश्वास के कवि सम्मेलन बंद कराए जाएं। आशुतोष की टेलीविजनिया तेजतर्रारियों पर प्रतिबंध लगाया जाए और जो चैनल कपिल मिश्रा को बुलाएं उन पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलाया जाए।
ये सब लोग आप की भ्रष्टाचार विरोधी प्रत्यक्ष मुहिम के परोक्ष भ्रष्टाचार हैं, इसलिए इनकी पथभ्रष्टता मिटाकर भ्रष्टाचार मिटाया जाए। आप का प्रवक्ता जो बोले केवल उसे ही अंतिम सत्य समझा जाए और जो विरोध करे उसे निरस्त माना जाए। अगर प्रवक्ता कहे कि प्रस्ताव पास हुआ है, तो पास माना जाए और कहे कि प्रस्ताव पास नहीं हुआ तो कैमरा फुटेज के बावजूद प्रस्ताव को किसी भी सूरत में पास न माना जाए। यह प्रस्तावी भूकंपवाद की मांग है। भारतीय राजनीति में भूकंपवाद अब स्थापित धारा है। याद होगा कि कुछ समय पहले हमारे न्यारे-दुलारे राहुल बाबा ने भी भूकंप लाने की कोशिश की थी, लेकिन यह दीगर बात है कि सर्वोच्च न्यायालय ने उसे पत्ताकंप तक मानने से इनकार कर दिया था।

विभांशु दिव्याल


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