कुशल श्रमबल : इस ताकत का इस्तेमाल करें
इन दिनों देश और दुनिया में भारत के कुशल और प्रशिक्षित युवाओं की मांग बढ़ रही है। भारतीय पेशेवरों की आवश्यकता बताने वाली कई और महत्त्वपूर्ण रिपोर्टे दुनिया और देशभर में रेखांकित हो रही हैं।
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ये रिपोर्टे बता रही हैं कि भारत के आईटी, मैनेजमेंट, इंजीनियरिंग, मेडिकल, लॉ, अकाउंटिंग आदि पेशेवर पढ़ाई वाले शिक्षित-प्रशिक्षित युवाओं की जरूरत बढ़ती जा रही है। गौरतलब है कि मानव संसाधन परामर्श संगठन कॉर्न फेरी ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि जहां दुनिया में 2030 तक कुशल कामगारों का संकट होगा, वहीं भारत के पास 24.5 करोड़ अतिरिक्त कुशल श्रमबल हो सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2030 तक दुनिया के 19 विकसित और विकासशील देशों में 8.52 करोड़ कुशल श्रमशक्ति की कमी होगी। वहीं, भारत इकलौता देश होगा जिसके पास अतिरिक्त कुशल कामगार उपलब्ध हो सकेंगे। भारत ऐसे में विश्व के तमाम देशों में कुशल कामगारों को भेजकर फायदा उठा सकेगा। इसी तरह विश्व बैंक की वैश्विक रोजगार से संबंधित नवीनतम रिपोर्ट में भी कहा गया है कि दुनिया के अधिकांश विकसित और विकासशील देशों में कामकाजी आबादी कम हो रही है। ऐसे में इन देशों में भारत के कौशल-प्रशिक्षित युवाओं की मांग बढ़ रही है। लेकिन इसके लिए कौशल प्रशिक्षण के नये प्रयासों की जरूरत है। इन दिनों भारत सहित पूरी दुनिया में भारत की नई पीढ़ी की प्रतिभा-क्षमता और कौशल-क्षमता से संबंधित हाल ही में प्रकाशित तीन रिपोटरे को गंभीरतापूर्वक पढ़ा जा रहा है।
पहली रिपोर्ट विश्व विख्यात आईएमडी बिजनेस स्कूल स्विट्जरलैंड द्वारा प्रकाशित की गई ग्लोबल टैलेंट रैंकिंग, 2018 है। इसमें भारतीय प्रतिभाओं में कौशल प्रशिक्षण की भारी कमी बताई गई है। दूसरी रिपोर्ट भारत सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की आईटी पेशेवरों में रोजगार योग्यता की कमी से संबंधित चिंताओं पर है। तीसरी रिपोर्ट कामकाजी पेशेवरों के लिए काम करने वाली ऑनलाइन एजुकेशन फर्म ग्रेटर लर्निग की है। इसमें भारत में टैलेंट की कमी के कारण आर्टििफशियल इंटेलिजेंस (एआई) में बड़ी संख्या में पद खाली होने की बात कही गई है। उल्लेखनीय है कि आईटीएमडी बिजनेस स्कूल की रिपोर्ट में भारत 63 देशों की सूची में पिछले वर्ष के 51वें स्थान से दो पायदान फिसल कर 53वें स्थान पर आ गया है। इस टैलेंट रैंकिंग में स्विट्जरलैंड लगातार पांचवें साल शीर्ष पर रहा है। डेनमार्क दूसरे, नॉर्वे तीसरे, ऑस्ट्रिया चौथे और नीदरलैंड पांचवें स्थान पर है। एशिया में सिंगापुर सूची में सबसे ऊपर है। यह 13वें स्थान पर है। चीन इस सूची में 39वें स्थान पर है। ब्रिक्स देशों में ब्राजील 58वें, दक्षिण अफ्रीका 50वें और रूस 46वें स्थान पर है। इसी प्रकार भारत सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की एक हालिया रिपोर्ट में यह बताया गया है कि भारत में 91 फीसदी आईटी पेशेवर नौकरी के योग्य नहीं हैं। केवल नौ फीसदी आईटी पेशेवर ही सीधे नौकरी पर रखने योग्य हैं।
वस्तुत: आईटी क्षेत्र में नई तकनीकों पर काम हो रहा है, और उसके मद्देनजर भारतीय आईटी पेशेवर उपयुक्त रूप से प्रशिक्षित नहीं हैं। ऐसे में नये तकनीकी बदलावों के कारण भारतीय आईटी पेशेवरों के सामने आने वाले समय में रोजगार संबंधी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 2019 के अंत तक आईटी क्षेत्र में करीब 72 लाख नये पेशेवरों की जरूरत होगी। इनमें ग्रेजुएट और नॉन-ग्रेजुएट आईटी पेशेवर, दोनों शामिल हैं। लेकिन उपयुक्त नये तकनीकी प्रशिक्षण के बाद ही इन लोगों को रोजगार मिल पाएगा। इसी तरह ‘एनालिटिक्स मैग्जीन’ ने कामकाजी पेशेवरों के लिए काम करने वाली ऑनलाइन एजुकेशन फर्म ग्रेट लर्निग के साथ मिलकर जो रिपोर्ट तैयार की है, उसके मुताबिक वर्ष 2018 में भारत में एआई सेक्टर 30 प्रतिशत बढ़कर 23 करोड़ डॉलर यानी करीब 1,650 करोड़ रु पये तक पहुंच गया है। लेकिन टैलेंट की कमी के कारण मीडियम और सीनियर लेवल पर 4,000 से ज्यादा पद खाली हैं। आईटी, फाइनेंस, हेल्थकेयर और ई-कॉमर्स सेक्टर की कंपनियों में मध्यम और वरिष्ठ क्रम पर नौकरी के बड़ी संख्या में मौके बने हुए हैं। ऐसे में जरूरी है कि भारत डिग्री के साथ टेक्निकल स्किल्स एवं प्रोफेशनल स्किल्स से दक्ष प्रतिभाओं का निर्माण करे।
देश में रोजगार के लिए कौशलयुक्त प्रतिभाओं का निर्माण इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि रोजगार के मोर्चे पर तेजी से आगे बढ़ रहे रोबोट बड़ी चुनौती देते हुए दिखाई दे रहे हैं। जहां रोबोट ने मनुष्य को शारीरिक क्षमताओं के मामले में पीछे छोड़ दिया है, वहीं अब दिमागी कामों के मामले में भी रोबोट इंसान को पछाड़ सकते हैं। जापान की सॉफ्ट बैंक कॉर्प जैसी दुनिया की कई कंपनियां मानवीय मस्तिष्क की तरह काम करने वाले रोबोट विकसित कर रही हैं। सचमुच यह विडम्बना ही है कि सरकार द्वारा प्रतिभाओं के विकास और कौशल प्रशिक्षण को उच्च प्राथमिकता दिए जाने के बाद भी प्रतिभाओं के विकास में हम बहुत पीछे हैं। देश में कौशल विकास के लिए विशेष मंत्रालय गठित करके कौशल विकास के काम को गतिशील बनाने की पहल के भी आशाजनक परिणाम नहीं आए हैं। देश की नई पीढ़ी को कौशल प्रशिक्षित करने के लिए छात्रों को 9वीं कक्षा से ही व्यावसायिक पाठय़क्रम से शिक्षित-प्रशिक्षित करना होगा। व्यावसायिक पाठय़क्रम को स्कूली और विश्वविद्यालयों के पाठय़क्रम का हिस्सा बनाया जाना होगा। पाठय़क्रम में तकनीकी बदलावों के साथ-साथ गतिशीलता के साथ उपयुक्त रूप से नये परिवर्तन करना होंगे। उच्च शिक्षा की ओर आगे बढ़ रही नई पीढ़ी को कौशल विकास और रोजगार की जरूरत के अनुरूप मानव संसाधन (ह्यूमन रिसोर्स) के रूप में गढ़ना होगा।
भविष्य में ज्यादातर भर्तियां आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस, ब्लॉक चेन, बिग डाटा आदि क्षेत्रों में होंगी। इन क्षेत्रों में पेशेवर देश और दुनिया में अच्छा कॅरियर बनाना चाहते हैं। हम आशा करें कि सरकार ग्लोबल टैलेंट रैंकिंग और सूचना प्रौद्यौगिकी मंत्रालय की रोजगार योग्यता में नई तकनीकी की कमी से संबंधित रिपोर्ट में बताए गए विभिन्न पहलुओं पर विचार मंथन करके देश की नई पीढ़ी को देश और दुनिया की नई रोजगार जरूरतों के मुताबिक कौशल प्रशिक्षण से सुसज्जित करके प्रतिभाशाली बनाने की डगर पर आगे बढ़ाएगी। जिससे रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी, युवाओं के चेहरे पर मुस्कराहट आएगी तथा देश विकास की डगर पर आगे बढ़ेगा।
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