मुद्दा : तमाशा, दिखावा और बर्बादी
शादियों में खाने व पानी की जबरदस्त बर्बादी होती है, यह किसी से छिपा नहीं है। अपने समाज में शादियों में बढ़-चढ़ कर तमाशा होता है, जबकि लाखों लोगों को अभी भी दो वक्त का भरपेट खाना नसीब नहीं है।
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सुप्रीम कोर्ट जानना चाहता है, सरकार के पास ऐसे मामलों से निपटने के लिए क्या प्लान है। कोर्ट ने कहा, मोटल और फार्म हाउस में जहां पार्टी होती है, वहां मालिकों के कमर्शियल इंट्रेस्ट सरकार के लिए पब्लिक इंट्रेस्ट से ज्यादा महत्त्वपूर्ण हैं। पहली नजर में रसूखदार और अमीर लोगों के प्रति सरकार का झुकाव दिखता है।
जस्टिस बी लोकुर की अगुवाई वाली बेंच ने कहा, समय आ गया है कि सरकार की संबंधित अथॉरिटी फॉर्म हाउस और मोटल मालिक से ज्यादा पब्लिक इंट्रेस्ट को तरजीह दे। अदालत को बताया गया कि दिल्ली में 300 हॉल हैं जबकि दिल्ली में शादी के सीजन में एक-एक दिन में 30 से 50 हजार शादियां होती हैं। शादियों के मामले में अपना पूरा समाज समान सोच रखता है। मोटल के वकील ने बताया उनके पास एक लाख लीटर का अंडरग्राउंड टैंक है। फायर विभाग उसे 1. 27 लाख लीटर की कैपेसिटी का करने को कहता है। इस पर कोर्ट ने सवाल किया कि सभी मोटल मालिकों द्वारा यदि एक-एक लाख लीटर पानी स्टोर किया जाता है, तो दिल्ली के लोगों के लिए पानी नहीं होगा। हमें बताएं 50 हजार शादियों में कितना खाना और पानी बर्बाद किया जाता है। अभी-अभी, जबकि देश भर में रणवीर सिंह-दीपिका पादुकोण व प्रियंका चोपड़ा-निक की तामझाम भरी शादी के आयोजनों को बढ़-चढ़ कर सराहा जा रहा है, एक विवाह का तरह-तरह से घूम-घूम कर स्थान-स्थान पर भव्य आयोजन हो रहा है, तो जरूरतमन्द और भूखे देशवासियों के हित में यह सवाल लाजिमी है।
बड़ी-विशाल शादियों में होने वाली खाने-पानी की बर्बादी से जिम्मेदारान पदों पर बैठे लोग व नीति-निर्धारक अच्छी तरह वाकिफ हैं। चूंकि इस तरह के आयोजनों के वे स्वयं भी हिमायती हैं, इसलिए जानबूझकर मुंह फेर लेते हैं। भुखमरी के कगार पर जीने वाले परिवारों का सालाना लेखा-जोखा सरकारी महकमे द्वारा बदस्तूर जारी किया जाता है। हैरतमंद है कि इससे निपटान को लेकर कभी-कहीं कोई सुगबुगाहट नहीं होती। किसान हाड़-तोड़ मेहनत के बूते अनाज पैदा तो करता है पर उचित रखरखाव के अभाव में उसका बड़ा हिस्सा बर्बाद हो जाता है। मोटी कीमत पर सुपर फाइन दाना-पानी खरीदने वाले समृद्ध वर्ग द्वारा की जाने वाली यह बर्बादी नजरंदाज करना गरीब के पेट पर लात मारने सरीखा ही है। प्रियंका के विवाहोत्सव पर आतिशबाजी पर सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं आई थीं। फोर्ब्स की दुनिया भर की सबसे ताकतवर औरतों की सूची में शामिल चोपड़ा पर्यावरण बचाव के पक्ष में विज्ञापन करती हैं जिसमें देशवासियों से पटाखामुक्त त्योहार मनाने की गुजारिश करती हैं। लेकिन ज्यों ही मसला स्वयं का आता है, सारी संवेदनशीलता स्वाहा हो जाती हैं। देश में हर आठवीं मौत जहरीली हवा से हो रही है। 2017 में 12.4 लाख लोगों की मौत प्रदूषण के कारण हुई। देश भर में प्रदूषण के कारण लोगों की उम्र 1.7 साल कम हो रही है। इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च ने अपनी ताजा स्टडी में आउटडोर पोल्यूशन और हाउसहोल्ड प्रदूषण यानी अंगीठी व चूल्हे पर खाना पकाने के कारण होने वाले प्रदूषण के असर को आंका। राजस्थानवासियों की सबसे ज्यादा 2.5 साल उम्र कम हो रही है।
उप्र वाले 2.2 व हरियाणावासियों की 2.1 कम हो रही है। दिल्ली वालों की उम्र 1.6 वर्ष कम हो रही है। दिल्ली में घर के भीतर होने वाला प्रदूषण जीरो पाया गया क्योंकि यहां लोग एलपीजी गैस में बनाते हैं। राजस्थान, उप्र, छत्तीसगढ, मप्र, बिहार में हाउसहोल्ड प्रदूषण बहुत मिला क्योंकि उपलों, लकड़ियों, सॉलिड वेस्ट का जलावन के रूप में प्रयोग होता है जिसका खमियाजा औरतें, बच्चे और बूढों को भरना पड़ता है। विवाहादि विशाल आयोजनों में प्रस्तुत किए जाने वाले सैकड़ों लजीज पकवानों में प्रयोग होने वाले जलावन व उससे उठने वाले भंयकर धुएं के बारे में सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। साल भर में जितने आलीशान विवाहायोजन होते हैं, उनमें इस्तेमाल होने वाले जलावन व बिजली से जरूरतमंदों की साल भर की रसोई बनती रह सकती है। हमारे देश में युवाओं की फौज है और आधे से ज्यादा देशवासी 30 वर्ष से कम उम्र के हैं। उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए ऐसे गंभीर मसलों पर चिंतन और उचित कदम उठाने की जरूरत है।
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