करतारपुर साहिब : पाकिस्तान से सतर्क रहे भारत
गुरदासपुर सीमा पर स्थित डेरा बाबा नाकर गुरु द्वारा से करतारपुर तक सीधा रास्ता बन जाने के बाद श्रद्धालु चाहें तो 3-4 किलोमीटर का फासला पैदल भी तय कर सकते हैं।
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गुरु नानक देव का जन्मस्थान और जहां उन्होंने जीवन के अंतिम 18 वर्ष बिताए उसे भारत का भाग होना चाहिए था। यह तो विभाजन के समय सीमा रेखा खींचने वाले रेडक्लिफ की नासमझी या बदमाशी थी कि ऐसे महत्त्वपूर्ण स्थल को उसने पाकिस्तान के हिस्से कर दिया। कायदे से करतापुर भारत का भाग होना चाहिए था। जिस तरह अचानक पाकिस्तान ने अपना उदार रवैया प्रदर्शित किया है वह अनायास नहीं है। करतारपुर साहिब तक गुरदासपुर सीमा से सीधा रास्ता दिया जाए, इसकी मांग वर्षो से की जा रही थी।
प्रश्न है कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने गए नवजोत सिंह सिद्धू के पास आकर पाकिस्तान के थल सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने कह दिया कि हम करतारपुर साहिब सीमा को खोलने जा रहे हैं? सेना प्रमुख द्वारा ऐसा कहे जाने के मायने वही नहीं हो सकते जो भक्ति के भाव में डूबे हमारे सिख और हिन्दू भाई-बहन समझ रहे हैं। इमरान खान ने गलियारे की नींव डालने को एक बड़े समारोह का रूप दिया, भारतीय विदेश मंत्री तक को आमंत्रित किया एवं भारत से चुनिंदा 31 पत्रकारों को वीजा दिया गया। इमरान ने वहां जो भाषण दिया, उसमें कश्मीर का जिक्र तो था लेकिन आतंकवाद को रोकने का नहीं। उसके बाद विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने भोजन पर आमंत्रित कर और उनके बाद इमरान खान ने भारतीय पत्रकारों से बातचीत में जिस तरह चालाकी से कश्मीर का जिक्र किया एवं संबंध सुधारने के रास्ते में भारत को बाधा बता दिया, उससे उनकी नेकनीयति साफ हो गई।
करतारपुर शिलान्यास के दो दिनों पूर्व 26 नवम्बर 2008 के मुंबई हमले की दसवीं बरसी थी। इमरान उस दिन हमले के गुनाहगारों को सजा दिलाने का ऐलान भी कर देते तो माना जा सकता था कि वाकई वह भारत से रिश्ते सुधारने के प्रति गंभीर हैं। करतारपुर शिलान्यास समारोह में उन्होंने कह कि जब दोनों देश नाभिकीय हथियारों से लैस हैं तो युद्ध हो ही नहीं सकता। जब युद्ध नहीं हो सकता तो रिश्ते सामान्य करने में ही भलाई है। यह विचित्र सा तर्क है। भारत पाकिस्तान संबंधों के रास्ते की मूल बाधा आतंकवाद है। उस पर उन्होंने कुछ बोला ही नहीं। उल्टे करतापुर में उनके एवं सेना प्रमुख के साथ पिद्दी खालिस्तानी आतंकवादी गोपाल सिंह चावला दिखा जो भारत को तोड़ने की धमकियां देता है। चावला ने ननकाना साहिब एवं सच्चा सौदा साहिब में दर्शन करने वाले भारतीय राजनयिकों को अपमानित किया। भारत की शिकायत के बावजूद उसके खिलाफ कदम उठाना तो दूर उसके साथ वीवीआईपी व्यवहार किया जा रहा था। करतापुर साहिब का मामला धार्मिंक दृष्टि से इतना संवेदनशील है कि भारत सरकार नकारात्मक रु ख नहीं अपना सकती थी। किंतु इसकी आड़ लेकर पाकिस्तान की चाल को कामयाब होने भी नहीं दिया जा सकता।
इसलिए सुषमा स्वराज का वहां न जाना और सार्क सम्मेलन का निमंतणठ्रुकराना सही निर्णय है। हरसिमरत कौर और हरदीप पुरी जैसे दो सिख मंत्रियों को भेजकर सरकार ने इसे धार्मिंक सीमाओं तक ही रहने की उपयुक्त रणनीति अपनाई। पाकिस्तान यह प्रदर्शित कर रहा था कि उसने करतारपुर साहिब सीमा खोलने और वहां तक आने-जाने का मार्ग देकर ऐसी उदारता बरती है, जिसके बाद भारत को उसके सामने बिछ जाना चाहिए। कुरैशी ने इसे कूटनीतिक विप्लव और इमरान की गुगली कहकर यह जताने की कोशिश की, किस तरह भारत को हमने प्रस्ताव मानने को मजबूर किया। यह आशंका निराधार नहीं है कि करतारपुर साहिब की आड़ में पाकिस्तान खालिस्तान भाव को जिन्दा करने की चाल चल सकता है। ननकाना साहिब से लेकर सच्चा सौदा तक खालिस्तान के पोस्टर लगे पड़े हैं। जब इसका विरोध किया गया तो पाकिस्तान सरकार का जवाब था कि गुरुद्वारों का प्रबंधन सिख समुदाय करता है और उसमें हमारी कोई भूमिका नहीं। वहां भारत को तोड़ने वाले, सिखों को भड़काने वाले, हिन्दू सिखों के बीच तनाव पैदा करने वाले पोस्टर डाले जाएं, भाषण दिए जाएं और सरकार कह दे कि उससे उनका कोई लेना-देना नहीं तो यह संबंध सुधारने की मंशा नहीं हो सकती।
पाकिस्तान ने ब्रिटेन से लेकर कनाडा, अमेरिका आदि से आने वाले ‘सिख फॉर जस्टिस’ के लोगों को भारी संख्या में वीजा दिया है। यह वही संगठन है, जो 2020 में खालिस्तान के लिए जनमत संग्रह की मांग कर रहा है। 1980 के दशक से पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित खालिस्तानी आतंकवाद की भारत ने कितनी बड़ी कीमत चुकाई है यह सभी को पता है। पाकिस्तान में अहम गुरुद्वारों और सिख समुदाय की उपस्थिति का उसे लाभ मिलता है। हालांकि आज पाकिस्तान के साथ अमेरिका नहीं है, जहां से आने वाले हथियार और धन का इस्तेमाल वह कर सके। इस मामले पर चीन भी उसके साथ नहीं हो सकता। बावजूद करतापुर साहिब का रास्ता खोलने के निर्णय के साथ जो संकेत मिल रहे हैं वे चिंताजनक हैं। गुरु नानक जी की 550 वीं जयंती सिख समुदाय वहां मना सकेंगे, यह हमारे लिए संतोष का विषय है। किंतु सिख भाई-बहनों को भी पाकिस्तान की चालों के प्रति सतर्क रहना होगा। वहां जाने वाले भारतीयों को खालिस्तान के पोस्टर और बैनर देखने होंगे, जिन पर भारत विरोधी बातें लिखीं होंगी। हमारे लिए चिंता का विषय यही है कि वहां खालिस्तानी तत्व अगर धार्मिंक वाणी के नाम पर भड़काने वाले भाषण देते रहे, इसके साहित्य बांटते रहे तो पता नहीं कुछ नवजवान भ्रमित हो जाएं?
तात्पर्य यह कि करतारपुर साहिब तक पहुंचने का रास्ता मिलने से यदि वर्षो की आकांक्षाएं पूरी हो रहीं हैं तो खतरे भी बढ़े हैं। हजारों की संख्या में जाते-आते लोगों के साथ आतंकवादियों की भी घुसपैठ कराने की साजिश हो सकती है। अमृतसर के निकट संत निरंकारी मिशन पर हुए आतंकी हमले के सूत्र पाकिस्तान से जुड़े मिले हैं। कैप्टन ने नवजोत सिद्धू को वहां जाने से रोकने की भी कोशिश की। केंद्र सरकार की पाकिस्तान को इसका गलत लाभ उठाने नहीं दे सकता था, इसलिए दो सिख मंत्रियों को भेजा। न भूलें कि पाकिस्तान उच्चायोग ने चुनकर उन्हीं पत्रकारों को वीजा दिया, जिनकी छवि पाकिस्तान विरोधी की नहीं है। इनमें से एकाध को छोड़कर किसी ने इमरान या कुरैशी के सामने दृढ़तापूर्वक भारत के मुद्दों को नहीं उठाया।
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