ईद-उल-मिलाद : पैगम्बर और उनकी तालीम

Last Updated 21 Nov 2018 05:41:17 AM IST

ईद-उल मिलाद-उन-नबी खुदा के प्यारे रसूल हजरत पैगम्बर मोहम्मद साहब की पैदाइश की खुशी में मनाया जाता है।


ईद-उल-मिलाद : पैगम्बर और उनकी तालीम

यह त्योहार ईदों की ईद है। यदि ईद मिलादुन्नबी न होती, तो ईद और ईदुल अजहा की खुशी न मिलती। इस्लाम के सबसे महान नबी और आखिरी पैगम्बर मोहम्मद साहब का जन्म मक्का शहर में इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक रबी उल-अव्वल महीने की 12 तारीख (22 अप्रेल, 571 ईस्वी) को हुआ था। अरबी कैलेंडर की इसी तारीख को पैगम्बर की वफात यानी देहावसान भी हुआ था। लिहाजा, इस दिन को बारावफात भी कहते हैं। इस्लाम के अनुयायियों के लिए इस दिन की अहमियत अलग ही है।
मोहम्मद साहब के जन्मदिन की वजह से यह दिन उनके लिए खुशियों का भी है, तो इसी दिन निधन होने की वजह से गम का भी। लेकिन सारी दुनिया के मुसलमान ईद मिलाद उन-नबी के दिन को खुशी से मनाते हैं। इस त्योहार के एक दिन पहले मस्जिदों में रात भर मोहम्मद साहब की तालीम पर बात होती है, तो दूसरे दिन हर जगह रैलियां निकाली जाती हैं और बड़े-बड़े समारोह कर पैगम्बर मोहम्मद साहब की तालीम को लोगों तक पहुंचाया जाता है। यह सिलसिला कई दिनों तक चलता है। पैगम्बर हजरत मोहम्मद का जन्म उस दौर में हुआ, जब अरब जगत में आडंबर, सामाजिक बुराइयों, महिलाओं के खिलाफ हिंसा और नवजात बच्चियों की हत्याएं आम थीं। उस जहालत भरे दौर में लड़कियों की पैदाइश को एक समाजी शर्म और तौहीन माना जाता था। लोग बच्चियों की पैदा होते ही हत्या कर देते थे। अरब सरजमीं पर मौजूद इन बुराइयों के खिलाफ पैगम्बर मोहम्मद ने सबसे पहले आवाज उठाई। जब वे इस राह पर निकले, तो उनकी राह में तरह-तरह की मुश्किलें पैदा की गई, लेकिन फिर भी वे बिना किसी परवाह के आगे बढ़ते चले गए। इंसानियत और ‘एकेरवाद’ का पैगाम देने वाले रसूल पैगम्बर हजरत मोहम्मद, समाज में महिलाओं को सम्मान एवं अधिकार दिए जाने की हमेशा पैरोकारी करते रहे।

उन्होंने बच्चियों की पैदाइश और उनकी परवरिश को जन्नत में दाखिल होने का जरिया करार दिया। मोहम्मद साहब, औरतों के प्रति भेदभाव के खिलाफ थे। उन्होंने इनके लिए समानता की वकालत की। आज से सदियों पहले ही उन्होंने लड़कियों को जायदाद में मिल्कियत का अधिकार दे दिया था। पैगम्बर साहब ने हमेशा अपने किरदार और बर्ताव से इंसान को तालीम दी कि सभी इंसान एक समान हैं। एक ईश्वर की संतान हैं। लिहाजा, सभी से समानता का बर्ताव करें। पैगम्बर हजरत मोहम्मद वह शख्स थे, जिन्होंने हमेशा सच बोला और सच का साथ दिया। अपने कट्टर से कट्टर दुश्मनों के साथ पैगम्बर साहब का बर्ताव हमेशा अच्छा होता था। जिंदगी का ऐसा कोई भी पहलू नहीं, जिसे बेहतर बनाने, अच्छाई को स्वीकार करने के लिए मुहम्मद साहब ने कोई पैगाम न दिया हो। उनकी सभी बातें इंसानों को सच की राह दिखाती हैं। उनके दुश्मनों और दोस्तों दोनों ने मुहम्मद साहब को ‘अल-अमीन’ और ‘अस-सादिक’ यानी विसनीय और सत्यवादी स्वीकार किया है। जिंदगी के सभी मामलों व क्षेत्रों में पैगम्बर हजरत मोहम्मद ने अपने उत्कृष्ट गुणों, बेदाग ईमानदारी, महान नैतिक सद्गुणों और अबाध निश्छलता और हर संदेह से मुक्त विसनीयता को साबित किया। हजरत मोहम्मद साहब का पैगाम है कि ‘कोई इंसान उस वक्त तक मोमिन (सच्चा मुसलमान) नहीं हो सकता, जब तक कि वह अपने भाई-बन्दों के लिए भी वही न चाहे जितना वह अपने लिए चाहता है।’ पैगम्बर मोहम्मद का कथन है-‘अगर कोई शख्स अपनी कामना और ख्वाहिश को पूरा करता है, तो उसका भी उसे पुण्य मिलेगा। शर्त यह है कि वह इसके लिए वही तरीका अपनाए जो जायज हो।’
पैगम्बर साहब ने हर इंसान को तालीम दी कि दूसरे की जान, माल, इज्जत को ऐहतराम की नजर से देखो। उन्होंने जिस इस्लाम मजहब की नींव डाली, वह उस दौर में काफी प्रगतिशील था। एकाधिकार (इजारादारी), सूदखोरी, अप्राप्त आमदनियों व लाभों को पहले ही निश्चित कर लेने, मंडियों पर कब्जा कर लेने, जमाखोरी, बाजार का सारा सामान खरीदकर कीमतें बढ़ाने के लिए त्रिम अभाव पैदा करना इन सब कामों को इस्लाम ने गैरकानूनी माना है। अगर पैगम्बर साहब की तालीमों पर विचार किया जाए, तो दो बातें उनमें सबसे अहम हैं। पहली, मुहम्मद साहब की शिक्षाएं किसी एक मुल्क या मजहब के लिए नहीं हैं, वे सबके लिये हैं। सारी दुनिया और पीड़ित मानवता के लिए हैं। दूसरी, उनकी शिक्षाएं सदियों साल पहले जितनी प्रासंगिक थीं, आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं। जरूरत उन शिक्षाओं को सही तरह से समझने और उन पर ईमानदारी से अनुसरण करने की है।

वसीमा खान


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