सरोकार : कोई जाति-धर्म नहीं होता प्रदूषणों का भी

Last Updated 11 Nov 2018 05:39:16 AM IST

लैंसेट जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2015 में वायु, जल और दूसरे तरफ के प्रदूषणों की वजह से भारत में 25 लाख लोगों ने जान गंवाई।


सरोकार : कोई जाति-धर्म नहीं होता प्रदूषणों का भी

दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने दिवाली की पाबंदी वाली रात के बाद आंकड़े जारी कर बताया कि सुबह 6 बजे अलग-अलग जगहों पर प्रदूषण का स्तर अपने सामान्य स्तर से कहीं ज्यादा ऊपर था। यहां तक कई जगहों पर यह 24 गुना से भी ज्यादा रिकार्ड किया गया है। सुबह 6 बजे के आंकड़ों की बात करें तो पीएम 2.5 का स्तर पीएम 10 से कहीं ज्यादा बढ़ा हुआ है। पीएम 2.5 वह महीन कण हैं जो हमारे फेफड़े के आखिरी सिरे तक पहुंच जाते हैं और कैंसर की वजह भी बन सकते हैं। चिंता की बात यह है कि पीएम 2.5 का स्तर इंडिया गेट जैसे इलाकों में जहां हर रोज सुबह कई लोग आते हैं, वहां 15 गुने से भी ज्यादा ऊपर आया है।
यह अब सभी जानते हैं कि आतिशबाजी से लोगों के सुनने की क्षमता प्रभावित होती है, उससे निकले धुएं से हजारों लोग सांस लेने की दिक्कतों के स्थाई मरीज बन जाते हैं, पटाखों का धुआं कई महीनों का प्रदूषण बढ़ा जाता है। इसको ले कर स्कूली बच्चों की रैली, अखबारी विज्ञापन, अपील आदि का दौर चलता रहा है। दुखद बात यह है कि झाड़ू ले कर सफाई करने के फोटो अखबार में छपवाने वाले बगैर आतिशबाजी के दीपावली मनाने की मुहिम को ‘धर्म-विरोधी’ निरूपित कर रहे हैं। कुछ लोग इदउलजुआ पर मांसाहार का विरोध व दीपावली पर पटाकों के विरोध करने को फैषन बता कर मखौल उउ़ा रहे हैं। कुछ लोग इसे निजी व देश की खुशी बढ़ने से जोड़ रहे हैं। हकीकत तो यह है कि कई साल पहले सुप्रीम कोर्ट भी आदेश दे चुका है कि रात में 10 बजे के बाद आतिशबाजी न हो क्योंकि इससे बीमार, अशक्त लोगों को असीम दिक्कतें होती हैं। धमाकों की आवाज को ले कर भी 80 से 100 डेसीमल की सीमा है, लेकिन दस हजार पटाकों की लड़ी या दस सुतली बम एक साथ जला कर अपनी आस्था या खुशी का इजहार करने वालों के लिए कानून-कायदे कोई मायने नहीं रखते।

इस बार पूरे देश में आतिशबाजी के कारण छोटे-बड़े हजार से ज्यादा अग्निकांड हो चुके हैं, चीन से आए गैरकानूनी पटाकों को चलाने में ना तो देश प्रेम आड़े आया और न ही वैचारिक प्रतिबद्धता। कुछ लोग सफाई कर्मचारियों को कोस रहे हैं कि सड़कों पर आतिशबाजी का मलवा साफ करने वे सुबह जल्दी आए नहीं, यह सोचे बगैर कि वे भी इंसान हैं और उन्होंने भी बीती रात दीवाली मनाई होगी। यह बात लोग, विशेष रूप से झाड़ू हाथ में ले कर दुनिया बदलने के नारे देने वाले राजनीतिक कार्यकर्ता, यह नहीं समझ लेते कि हमारे देश में सफाई से बड़ी समस्या अनियंत्रित कूड़ा है। पहले कूड़ा कम करने के प्रयास होना चाहिए, साथ में उसके निस्तारण के। दीवाली के धुएं व कूड़े ने यह बात तो सिद्ध कर दी है कि अभी हम मानसिक तौर पर प्रधानमंत्रीजी की अपील के क्रियान्वयन व अमल के लिए तैयार नहीं हुए हैं। जिस घर में छोटे बच्चे, पालतू जानवर या बूढ़े व दिल के रोग के मरीज हैं जरा उनसे जा कर पूछें कि परंपरा के नाम पर वातावरण में जहर घोलना कितना पौराणिक, अनिवार्य तथा धार्मिक है। एक बात और भारत में दिवाली पर पटाके चलाने की परंपरा भी डेढ़ सौ साल से ज्यादा पुरानी नहीं है।  

पंकज चतुर्वेदी


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