मीडिया : मीडिया की फिसलन

Last Updated 04 Nov 2018 06:44:05 AM IST

पिछले पांच-छह दिनों के दौरान खबर चैनलों में ये सुर्खियां हजारों बार बजी हैं। मीडिया का ऐसा निपट ‘हिन्दुत्ववादी’ चेहरा जितना इन दिनों दिखा है, पिछले तीस साल में कभी नहीं दिखा।


मीडिया : मीडिया की फिसलन

- मंदिर अब न बनेगा तो कब बनेगा?
- यहां न बनेगा तो क्या पाकिस्तान में बनेगा?
- अगर आप नहीं बनाएंगे तो हम बना देंगे?
- हम कोर्ट का सम्मान करते हैं लेकिन कोर्ट को भी हिन्दुओं की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए।
- कोर्ट हमारी विनती सुने और अपनी व्यवस्था पर फिर से विचार करे।
- मंदिर बनाने के लिए हम निजी बिल लाएंगे-एक भाजपा सांसद। 
- सरयू किनारे अयोघ्या में एक सौ इक्यावन मीटर ऊंची राम की मूर्ति का निर्माण, आदि इत्यादि।
खबर चैनलों की यह एक ‘निर्णायक फिसलन’ है। मुख्यधारा के ज्यादातर हिन्दी-अंग्रेजी खबर चैनल इस तरह के हिन्दुत्ववादी नारों और विचारों की जाने-अनजाने पैरवी करते नजर आते हैं। कभी-कभी तो वे हिन्दुत्व के ‘भोंपू’ जैसे प्रतीत होते हैं। कहने की जरूरत नहीं कि हिन्दुत्ववादी ताकतों को इससे अधिक अनुकूल मीडिया कभी नहीं मिला।

कुछ पहले तक मंदिर के आइडिया को लेकर मीडिया की प्रस्तुतियों में कुछ आलोचना सक्रिय नजर आती थी, जो उसे एक उदार मिजाज वाला मीडिया बनाती थी, जिसमें हिन्दुत्व या इस्लामी तत्ववाद के बरक्स एक आलोचनात्मक नजरिया बोलता रहता था, लेकिन इन दिनों तो कई चैनल आलोचना की जरा-सी जगह तक को सरेंडर करते दिखते हैं। लगता है कि हमारे कई चैनल पाक मीडिया की लाइन पर चल रहे हैं। जिस तरह वहां मीडिया तालिबानों और कठमुल्लावादी विचारों को पोसता रहता है, उसी तरह यहां भी चैनल हिन्दुत्चवादी विचारों को पोसते दिखते हैं।
मीडिया का नियम है कि वह खबर दे और खबर की खबर ले। इसलिए कोई धर्म समूह कोई खबर बनाता है, तो मीडिया को उसे भी देना चाहिए। लेकिन खबर देने में और उस खबर को ‘गोद’ लेने, उसे ‘अपना’ बना लेने में फर्क है। यह जरूरी ‘फर्क’ मिटता नजर आता है। अब तो धार्मिक नारे और उनकी खबरनबीसी तक एक दूसरे में ‘मिक्स’ की जाने लगी है। मीडिया का एक काम यह भी है कि ‘खबर’ से अपने को हर हाल में ‘निरपेक्ष’ रखे। वह खबर का ‘प्रदाता’ है। इसी मानी में वह ‘मीडियम’ है, जो हर ‘कच्ची’ खबर को देने से पहले उसे ‘मीडिएट’ करता है, संपादित कर ‘सर्व-जन-योग्य’ बनाता है। अगर वह खबर को ‘मीडिएट’ नहीं करता और उसे ‘यथातथ्य’ अपनी ‘वाणी’ बना लेता है, तो वह ‘मीडियम’ नहीं रहता। मीडिया का काम खबर को ‘मध्यमा प्रतिपदा’ में ढालना है। उसके पक्ष-विपक्ष और अन्य पक्षों को भी देना है। खबर का ‘माध्यमन’ (मीडिएशन) नहीं करता तो किसी का का ‘पम्पलेट’ या ‘प्रचारक पोस्टर’ या ‘लाउड स्पीकर’ बना रह जाता है। 
यों, हमारे टीवी एंकर या रिपोर्टर अपने काम की इस नाजुक-मिजाजी को अच्छी तरह जानते हैं। खबर और प्रोपेगेंडा के बीच की लक्ष्मण रेखा को भी समझते हैं। इसीलिए अच्छे चैनल खबर देते वक्त उसके संदर्भों को भी देते हैं। खबर का जनतंत्र इसी तरह बनता है। ल्ेकिन इस धार्मिक कट्टरतावादी दौर में मीडिया किसी खबर या चरचा के बहाने एक खास तत्ववादी  विचार या एजेंडे की खुली तरफदारी करने लगे, खुली वकालत करने लगे तो फिर वह ‘मीडियम’ नहीं रह जाता, बल्कि किसी दल या समूह के प्रचार का ‘पक्षकार’ बन जाता है। यही हो रहा है।
पिछले दिनों जैसे ही एक हिन्दुत्ववादी संगठन के बड़े नेता ने कहा कि मंदिर के लिए ‘सरकार कानून बनाए’ और ‘मंदिर बनाए’ वैसे ही लगभग सारे खबर चैनल ‘मंदिर’-‘मंदिर’ चिल्लाने लगे। धार्मिक तत्ववाद से मीडिया का ऐसा ‘लिपसिंक’ अभूतपूर्व रहा। मंदिर के ऐसे प्रसंगों में कई एंकर तो हिन्दुत्ववादी नेताओं से भी अधिक उग्र हिन्दुत्ववादी नजर आते रहे। हम कह दें कि अगर खबर और मीडिया के बीच की जरूरी दूरी टीवी एंकरों और रिपोर्टरों द्वारा इसी तरह खत्म की जाती रही तो यह टीवी खबर चैनलों के लिए भी अच्छा न होगा। जिन दिनों जनतंत्र पर, समाज के स्वायत्त संस्थानों पर और न्यायपालिका तक पर वैचारिक दबाव और हमले बढ़ रहे हों, उन दिनों में मीडिया अपनी स्वायत्तता को तिलांजलि देकर किसी खास विचार का लठैत बन जाए तो फिर जनतंत्र की पहरेदारी कौन करेगा? उसका चौथा पाया अपनी परिचित भूमिका को त्याग देगा तो जनतंत्र ही लंगड़ा हो जाएगा। सावधान! अगर मीडिया भी निरंकुशतावाद और कट्टरतावादी धार्मिक संदेशों का प्रचारक हो गया तो यह निरंकुशता सबसे पहले उसे ही दबोचेगी।

सुधीश पचौरी


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