प्रसंगवश : राजनीति में देश का स्मरण

Last Updated 04 Nov 2018 06:41:14 AM IST

आम चुनाव की आहट आते ही वायुमंडल में नेताओं को देश और लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी तेज-तेज बजती सुनाई देने लगती है।


प्रसंगवश : राजनीति में देश का स्मरण

देश का भविष्य भी इन्हें अंधकाराच्छन्न दिखने लगता है। उनको इन सबसे  बचने, देश को बचाने और उसे आगे ले जाने का रास्ता उनकी अपनी-अपनी गली से ही हो कर गुजरता है। उस गली के वे बादशाह होते हैं, और उसी की तरह पूरे देश को एक बड़ी गली मान कर राह दिखाने के लिए पूरी तरह तत्पर रहते हैं। इन दिनों भी देश में चुनावी मौसम का आगाज हुआ जा रहा है। चुनाव का बिगुल बजने के साथ सभी दल अपना दम-खम आजमाने के लिए जुटने शुरू हो रहे हैं। चुनावी महाभारत में छोटे-बड़े सभी दल अपनी पात्रता को स्थापित करने की मुहिम चलाना शुरू कर चुके हैं। पर उनके सारे के सारे तर्क अक्सर दूसरे की खामियां गिनाने में ही चुकते जाते दिख रहे हैं। यह सब करते हुए उनका असलहा यानी तार्किक गोला-बारूद जल्दी ही खत्म होने लगता है, और तब वे व्यक्तिगत छींटाकशी पर उतर आते हैं।
राजनीति के खिलाड़ियों की साख संदेह के घेरे में आती जा रही है। संदिग्ध चरित्र के बाहुबलियों की राजनीति में पैठ बढ़ने के साथ राजनीति का सामाजिक चरित्र अविसनीय होता जा रहा है।  चुनाव, सरकार बनाना और देश की सेवा करना आदि मुद्दे धरे के धरे रह जाते हैं। जल्दी ही नेताओं को आभास होने लगता है कि किस दल में जीतने और पद पाने की अच्छी संभावनाएं बन सकती हैं, और उसी के आकलन के साथ वे (अंतरात्मा की पुकार पर) दल-परिवर्तन की तैयारी करने लगते हैं। किसी को क्या करना है, किधर जाना है, इसका गणित लगाया जाता है। चुनाव-पूर्व या पश्चात के समीकरण बैठाए जाते हैं। जाति, धर्म, क्षेत्र और आर्थिक हैसियत के आधार खड़े होने वाले उम्मीदवारों के बीच ‘टिकट’ का बंटवारा होता है।

ऐसे बदले-बदले राजनैतिक परिवेश में लौह पुरु ष सरदार वल्लभ भाई पटेल की स्मृति मन को सुकून देने वाली और प्रेरणादायी प्रतीत होती है, जिनके लिए  देश ही सर्वस्व था। सरदार पटेल में चरित्र-बल, तीक्ष्ण बुद्धि, उदारता, दूरदर्शिता, आत्मविश्वास और  संगठन-कौशल जैसे नेतृत्व गुणों का अद्भुत मेल था। एक साधारण किसान परिवार से आने वाले सरदार एक तरह के दुर्दमनीय व्यक्तित्व वाले राजनेता थे। 31 अक्टूबर, 1875 में गुजरात में जन्मे इस लोकप्रिय जन नेता ने देश के स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।  
सरदार पटेल आयु में गांधी जी से छह वर्ष छोटे थे और उन्हें अपना बड़ा भाई और शिक्षक मानते थे। बाइस वर्ष की आयु में मेट्रिकुलेशन किया था और 36 वर्ष की आयु में इंग्लैंड से बैरिस्टर की परीक्षा उत्तीर्ण कर वकालत शुरू की और खूब शोहरत हासिल की।  परंतु सामाजिक दायित्व की अनदेखी करना उनके स्वभाव में नहीं था। अंग्रेज शासकों द्वारा किसानों की भूमि का गैर-कानूनी ढंग से सताने के लिए अनाधिकार अधिग्रहण का डट कर विरोध किया। नागपुर में आंदोलन का नेतृत्व कर अंग्रेजी हुकूमत का कड़ा विरोध प्रदशर्न किया। उन्होंने अस्पृश्यता, जाति-भेद और नशाखोरी आदि सामाजिक समस्याओं को लेकर गुजरात में जन जागरण का बड़ा कार्य हाथ में किया। खेड़ा और बारडोली में किसान आंदोलन का सफलतापूर्वक नेतृत्व कर ‘सरदार’ कहलाए। उन्होंने पहली बार 1915 में गांधी जी को अहमदाबाद में सुना और फिर उनके अनन्य भक्त हो गए। वे वर्ष 1931 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष हुए। फिर 1946 में भी यह पद मिला परंतु महात्मा गांधी की इच्छा के अनुरूप पं. नेहरू को प्रतिष्ठित किया। देश को स्वतंत्रता मिलने पर गृह मंत्री का दायित्व निभाया।
भारत के प्रथम गृह मंत्री की विकट भूमिका में उनकी उपलब्धि विलक्षण रूप से प्रभावशाली रही। भारत का विभाजन एक बड़ी मानवीय त्रासदी के रूप में आया। भारत की छोटी-बड़ी सैकड़ों रियासतों और रजवाड़ों को समझा-बुझा कर सरदार ने देश को नई राजनैतिक इकाई का आकार दिया। पटेल ने सामंजस्य, विश्वास और शक्ति के साथ जनता में एकता-देश भक्ति का संचार किया। उन्हें नब्बे के दशक में ‘भारत रत्न’ से सम्मानित कर देश गौरवान्वित हुआ था। इस वर्ष एकता स्मारक के रूप में भव्य स्मरणांजलि के लिए उनकी विशाल प्रतिमा स्थापित हुई है। आशा है कि यह स्मारक देश को सामने रखने व विचार के केंद्र में लाने के लिए आगाह करता रहेगा।

गिरीश्वर मिश्र


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment