वैश्विकी : पाक में अमन की कोशिशों को धक्का

Last Updated 04 Nov 2018 06:28:16 AM IST

पाकिस्तान में तालिबान के गॉडफादर कहे जाने वाले मौलाना समी-उल हक की हत्या हमें शायद महत्त्व का विषय नहीं लगे, पर वहां के लिए यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण घटना है।


वैश्विकी : पाक में अमन की कोशिशों को धक्का

हक की हत्या के साथ ही जिस तरह से सभी चैनलों पर लाइव कवरेज आरंभ हुए तथा नेताओं के बयान आने लगे उससे साफ था कि इसके मायने गंभीर हैं। प्रधानमंत्री इमरान खान इस समय चीन के दौरे पर हैं। वहीं से न केवल उन्होंने जांच के आदेश दिए बल्कि बयान भी जारी किया। इमरान ने उन्हें एक धार्मिंक नेता कहा। उन्होंने कहा कि हक को देश की सेवा के लिए हमेशा याद किया जाएगा। हालांकि हमारे-आपके लिए हक एक मजहबी कट्टरपंथी ही था। उसकी राजनीतिक पार्टी जमात उलेमा-ए-इस्लाम-समी (जेयूआई-एस) की घोषणाएं हमेशा मजहबी कट्टरपंथ को ही बढ़ावा देने वाली होती थी। वह खैबर पख्तूनख्वा के अकोरा खटक कस्बे में इस्लामिक संगठन दारु ल उलूम हक्कानिया का प्रमुख भी था। वह संस्था स्वयं में कट्टरपंथ पैदा करने का गढ़ है। जिस समय इस्लामी कट्टरपंथ में आतंकवाद की सोच प्रबल हो रही थी, उसी दौरान हक सांसद भी बना था। समीउल हक इस्लामी जम्हूरी इत्तेहाद की ओर से मार्च 1991 से लेकर मार्च 1994 तक पाकिस्तानी संसद का सदस्य भी रहा था।

वस्तुत:  83 वर्षीय हक की पाकिस्तान के राजनीतिक नेताओं, मजहबी नेताओं तथा कट्टरपंथियों तक में मजबूत पैठ थी तथा उसकी बातों का महत्त्व सभी के लिए था। वह तालिबान के संस्थापकों में से था एवं उसे इसका गॉडफादर नाम भी मिला हुआ था। इमरान खान पश्चिमोत्तर क्षेत्र में आतंकवाद के विरु द्ध जारी सैन्य अभियान को जारी रखते हुए ही हक के माध्यम से तालिबानी हिंसा को रोकने की कोशिश कर रहे थे। इमरान और उनके रणनीतिकारों को उम्मीद थी हक और उनके अन्य सहयोगियों के प्रभाव से तालिबानों के लड़ाकों में से एक बड़े समूह को हिंसा से बाहर आने के लिए तैयार किया जा सकता है। यही नहीं, पिछले महीने ही अफगानिस्तान का भी एक प्रतिनिधिमंडल हक के पास आया था। उसका उद्देश्य भी अफगानिस्तान में हिंसा को कम करने में उसकी मदद लेना था।
हक एक समय नवाज शरीफ का समर्थक माना जाता था। इधर उसका झुकाव इमरान खान की तरफ हो गया था। ऐसा माना जाता है कि इमरान ने प्रधानमंत्री बनने के बाद लगातार उससे बातचीत करते थे। हाल में पाकिस्तान उच्चतम न्यायालय द्वारा एक ईसाई महिला आसिया बीबी को ईशनिंदा कानून के अपराध से मुक्त करने के खिलाफ पाकिस्तान में जिस तरह सड़कों पर तांडव चल रहा था, आसिया के कत्ल के फतवे दिए जा रहे थे, वह इमरान के लिए एक बड़ी चुनौती थी। पाकिस्तान में मजहबी उन्माद के हिंसक माहौल को देखते हुए प्रधानमंत्री इमरान को देश को संबोधित करना पड़ा। उसमें इमरान ने सभी वगरे से सद्भाव कायम करने की अपील के साथ-साथ समी-उल हक से खास तौर से मदद मांगी। हक ने कहीं भी प्रदर्शन में भाग नहीं लिया तथा अपने संपर्क के नेताओं और लोगों को भी इससे अलग होने के लिए मनाया। जाहिर है, यदि इमरान भविष्य में हक के सहयोग से आतंकवादी हिंसा एवं कट्टरपंथ में कमी की उम्मीद कर रहे थे तो उनके लिए यह बहुत बड़ा आघात है।

डॉ. दिलीप चौबे


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